राज्य के नीति निदेशक तत्व|Directive Principles of State Policy

भारतीय संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद-36 से 51 तक "राज्य के नीति निदेशक तत्वों" का वर्णन किया गया है। ये भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है।

 नीति निदेशक तत्व एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए आवश्यक हैं। इन्हें आयरलैण्ड के संविधान से लिया गया है।

राज्य के नीति निदेशक तत्व

 वर्तमान में भारत तथा आयरलैण्ड को छोड़कर विश्व के किसी अन्य देश के संविधान में नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख नहीं है।

 नीति निदेशक तत्वों को भारतीय संविधान में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय सुलभ कराना तथा प्रजातन्त्र की स्थापना करना है।

राज्य के नीति निदेशक तत्व


◆अनुच्छेद-37 के अनुसार, नीति निदेशक तत्वों को न्यायालय द्वारा प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता है। किन्तु ये तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं। अतः राज्य का कर्तव्य होगा कि विधि निर्माण में इन तत्वों का प्रयोग करे।

 डॉ. भीमराव अंबेडकर ने राज्य के इन तत्वों को भारतीय संविधान की अनोखी विशेषता कहा।

◆अनुच्छेद-36 में राज्य को परिभाषित किया गया है इसके अनुसार, नीति निदेशक तत्वों के लिए राज्य की वही परिभाषा होगी जो मूल अधिकारों के लिए राज्य की परिभाषा है।

◆अनुच्छेद-38 के अनुसार, राज्य लोककल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाये गा।

◆अनुच्छेद-39, को निम्नलिखित खण्डों में विभाजित किया गया है।
●अनुच्छेद-39 खण्ड क, राज्य सभी नागरिकों को पुरुष या स्त्री समान रूप से जीविका के साधन उपलब्ध कराने का प्रयत्न करेगा।
●अनुच्छेद-39 खण्ड ख, राज्य के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियन्त्रण इस प्रकार विभाजित हो। कि अधिक से अधिक सार्वजनिक हित हो सके।
●अनुच्छेद-39 खण्ड ग, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि सम्पत्ति और साधनों का इस प्रकार केन्द्रीकरण न हो कि सार्वजनिक हित को हानि पहुँचे।
●अनुच्छेद-39 खण्ड घ, राज्य समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान करेगा।
अनुच्छेद-39 खण्ड ङ, राज्य ऐसी व्यवस्था करेगा कि श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो।
●अनुच्छेद-39 खण्ड च, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि बालकों को स्वस्थ रूप से विकास के लिए अवसर और सुविधाएं प्राप्त हों तथा उन्हें गरिमामय वातावरण प्राप्त हो। साथ ही बच्चों तथा अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा हो।

◆अनुच्छेद-39क, इसे 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया। यह समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता के लिए राज्य को निदेशित करता है।

◆अनुच्छेद -40, ग्राम पंचायतों का संगठन
◆अनुच्छेद -41, कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
◆अनुच्छेद -42, काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबन्ध
◆अनुच्छेद -43, कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
◆अनुच्छेद-43क, उद्योगों के प्रबन्ध में श्रमिकों का भाग लेना
◆अनुच्छेद -44, नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
◆अनुच्छेद -45, बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध
◆अनुच्छेद -46, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि
◆अनुच्छेद -47, पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
◆अनुच्छेद -48, कृषि और पशुपालन का संगठन
◆अनुच्छेद-48क, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा
◆अनुच्छेद -49, राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
◆अनुच्छेद -50, कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
◆अनुच्छेद -51, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

भाग-4 में वर्णित नीति निदेशक तत्वों के अतिरिक्त संविधान के अन्य भागों में भी नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद-350--भाषाई अल्पसंख्यक वर्ग के बालकों को मातृभाषा में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के व्यवस्था
अनुच्छेद-351--हिन्दी भाषा के प्रसार तथा विकास के लिए कार्य

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  1. नीति निदेशक तत्वों को न्यायालय में प्रवर्तित क्यों नहीं किया जा सकता है।

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