कर्नाटक का दूसरा युद्ध 1749 ई. में शुरू हुआ तथा जनवरी 1755 ई. में पांडिचेरी की सन्धि के बाद बन्द हुआ। प्रथम कर्नाटक युद्ध की भाँति यह युद्ध भी अनिर्णायक रहा।
इस युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति मजबूत रही। युद्ध स्थल पर भी अंग्रेज सेना श्रेष्ठ सिद्ध हुई। इस युद्ध ने फ्रांसीसियों के पतन के द्वारा खोल दिये।
द्वितीय कर्नाटक युद्ध के कारण
कर्नाटक के प्रथम युद्ध बाद डूप्ले की राजनैतिक पिपासा जाग उठी उसने फांसीसी राजनैतिक प्रभाव के प्रसार के उद्देश्य से भारतीय राजवंशों के परस्पर झगड़ो में भाग लेने की सोची। जिसके चलते निम्नलिखित कारण बने जिससे द्वितीय एंग्लो-फ्रेंच युद्ध हुआ।
●आसफजाह (जिससे हैदराबाद में लगभग पूर्ण स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था।) की मृत्यु 21 मई 1748 ई. में हो गयी। जिससे आसफजाह के पौत्र मुजफ्फरजंग तथा पुत्र नासिरजंग में उत्तराधिकार का युद्ध शुरू हो गया। जिसमें फ्रांसीसी मुजफ्फरजंग को तथा अंग्रेज नासिरजंग को हैदराबाद का सूबेदार बनाना चाहते थे।
●ठीक इसी समय कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के खिलाप उसके बहनोई चन्दा साहब ने नवाब पद के लिए अपना दावा पेश किया। फ्रांसीसियों ने चन्दा साहब का समर्थन किया। अंग्रेज अनवरुद्दीन के पक्ष में थे।
●इस युद्ध का तीसरा कारण था फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों एक दूसरे की शक्ति नष्ट करना चाहते थे।
●1749 ई. में अंग्रेजों ने तंजौर के उत्तराधिकार के युद्ध में भाग लेकर देवी कोटाई नामक स्थान प्राप्त कर लिया। इससे फ्रांसीसी अंग्रेजों से क्रुद्ध हो गये और उन्होंने अंग्रेजों का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया।
अम्बूर का युद्ध-- 1749 ई.
कर्नाटक तथा हैदराबाद के उत्तराधिकार के युद्ध में डूप्ले ने चांदा साहब तथा मुजफ्फरजंग को समर्थन दिया। फलस्वरूप चांदा साहब, मुजफ्फरजंग तथा फ्रांसीसी सेनाओं ने संयुक्त होकर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन पर आक्रमण कर दिया।
3 अगस्त 1749 ई. में वेल्लौर के निकट अम्बूर नामक स्थान पर दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। जिसमें अनवरुद्दीन मारा गया तथा उसका पुत्र मुहम्मद अली भाग गया। इस विजय के उपरान्त चांदा साहब कर्नाटक का नवाब बन गया। उसने फ्रांसीसियों को पांडिचेरी के निकट 80 गाँव पुरुस्कार स्वरूप प्रदान किये।
फ्रांसीसियों के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए अंग्रेजों ने नासिरजंग को कर्नाटक पर आक्रमण करने के लिए भड़काया। उसने 1750 ई. कर्नाटक पर आक्रमण कर दिया। इस संघर्ष में नासिरजंग मारा गया। अतः मुजफ्फरजंग को हैदराबाद का नया निजाम घोषित कर दिया गया।
मुजफ्फरजंग ने बुस्सी के अध्यक्षता में एक फ्रांसीसी सेना की टुकड़ी को हैदराबाद में रखना स्वीकार किया। मुजफ्फरजंग फ्रांसीसी सेनापति बुस्सी को साथ लेकर कर्नाटक से हैदराबाद के रवाना हुआ। किन्तु मार्ग में उसकी हत्या कर दी गयी।
बुस्सी ने नासिरजंग के छोटे भाई सलावतजंग को हैदराबाद के सिंहासन पर बैठाया। कृतज्ञ निजाम ने हैदराबाद रियासत के उत्तरी प्रदेश फ्रांसीसियों को उपहार स्वरूप दिये।
त्रिचनापल्ली का घेराव
अम्बूर के युद्ध से अनवरुद्दीन के पुत्र मोहम्मद अली ने भागकर त्रिचनापल्ली में शरण ली। अतः चांदा साहब और फ्रांसीसियों ने मिलकर त्रिचनापल्ली का मई 1751 ई. में घेराव किया।
मोहम्मद अली की सहायता के लिए अंग्रेज गवर्नर थॉमस साण्डर्स ने क्लाइव के नेतृत्व में एक सेना भेजी। स्थित यह बनी कि न तो फ्रांसीसी त्रिचनापल्ली जीत पाये और न ही क्लाइव इस घेरे को तोड़ सका।
अर्काट का घेरा
क्लाइव त्रिचनापल्ली के घेरे को तोड़ने में असफल रहा। अतः उसने कर्नाटक की राजधानी अर्काट पर आक्रमण कर दिया और अगस्त 1751 ई. में वह अर्काट पर विजय पाने में सफल हो गया।
अर्काट के पतन की खबर जब चांदा साहब को मिली तो उसने अपने पुत्र रजा खां के नेतृत्व में एक विशाल सेना अर्काट भेजी। रजा खां ने अर्काट को चारों तरफ से घेर लिया।
क्लाइव भूखा-प्यासा 53 दिनों तक लड़ता रहा। इसी बीच अतिरिक्त अंग्रेज सेना मेजर लॉरेन्स के नेतृत्व में वहाँ पहुँच गयी। अतः विवश होकर रजा खां को अर्काट से घेरा उठाना पड़ा।
इस जीत से उत्साहित होकर क्लाइव और लॉरेन्स आगे बढ़े और त्रिचनापल्ली में घेरा डाले हुईं फ्रांसीसी और चांदा साहब की सेनाओं को जून 1752 ई. में पराजित किया।
चांदा साहब भाग गया तथा फ्रांसीसी कमाण्डर लॉ को बन्दी बना लिया गया। चांदा साहब भागकर तंजौर पहुँचा जहां उसकी हत्या कर दी गयी। इस प्रकार अंग्रेजों ने मुहम्मद अली को कर्नाटक का नया नवाब बनाया।
त्रिचनापल्ली की इस हार ने डूप्ले के भाग्य का सर्वनाश कर दिया। डूप्ले ने जनवरी 1753 ई. में त्रिचनापल्ली का पुनः घेरा डाला किन्तु वह सफल नहीं हुआ।
1754 ई. में डूप्ले को फ्रांसीसी सरकार ने वापस बुला लिया तथा उसके स्थान पर गोडेहू को गवर्नर बनाकर भेजा।
पाण्डिचेरी की सन्धि--1755 ई.
गोडेहू ने आते ही अंग्रेजों से सन्धि-वार्ता आरम्भ कर दी। 1755 ई. में दोनों पक्षों में पांडिचेरी की सन्धि सम्पन्न हुई और युद्ध समाप्त हो गया। इस सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित क्षेत्रों को वापस कर दिया।
फ्रांसीसी सेनापति बुस्सी का हैदराबाद में रहना स्वीकार कर लिया गया। दोनों पक्षों ने आस्वासन दिया कि भारतीय राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
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