1857 की क्रान्ति|Revolution of 1857

1857 की क्रान्ति भारतीय इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। जिस समय यह "भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम" हुआ, उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री "विस्कान्ट पामर्स्टन" तथा भारत का गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग था। लार्ड कैनिंग जब 1856 ई. में भारत का गवर्नर जनरल बनकर आया तब उसने इस विद्रोह की आशंका व्यक्त की थी।

यद्यपि इस क्रान्ति की शुरुआत एक "सैनिक विद्रोह" के रूप में हुई। किन्तु शीघ्र ही इसमें कृषक, मजदूर, शिल्पकार, रजवाड़े एवं जनजातियों के लोग सम्मिलित हो गये। जिसके कारण यह एक "जनव्यापी विद्रोह" बन गया। जिसे भारत का पहला स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।

1857 की क्रान्ति का स्वरूप


1857 की क्रान्ति का स्वरूप क्या था? इस पर इतिहासकारों में मतभेद है। विभिन्न इतिहासकारों ने इस विद्रोह पर भिन्न भिन्न मत दिये। जैसे-
●सीले, जान लारेंस, ट्रेविलियन, मालसेन आदि विद्वानों के अनुसार "यह पूर्णतया सिपाही विद्रोह था।"
●चार्ल्स रेक्स के अनुसार "यह एक सैनिक विद्रोह था जिसने कुछ क्षेत्रों में जन विद्रोह का रूप ले लिया।"
●डॉ. ईश्वरी प्रसाद ने कहा कि "यह स्वतन्त्रता संग्राम था।"
● मिस्टर के. और एस. बी. चौधरी ने इसे "एक सामन्तवादी प्रतिक्रिया" माना। जबकि डॉ. राम विलास शर्मा ने इस विद्रोह को "जनक्रांति" कहा।
●अशोक महता तथा डिजरेली के अनुसार "यह राष्ट्रीय विद्रोह था।"
  ●जेम्स आउट्रम एवं W. टेलर ने अठ्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह को अंग्रेजों के विरुद्ध "हिन्दू मुस्लिम षड्यंत्र" माना।
●L R रीस ने कहा कि "यह ईसाई धर्म के विरुद्ध एक धर्म युद्ध था।"
 ●सर जे. केयी ने इसे "श्वेतों के विरुद्ध काले लोगों का संघर्ष कहा।"
●T R होम्स के अनुसार "यह सभ्यता एवं बर्बरता का संघर्ष था।"
●वीर सावरकर तथा पट्टाभि सीता रमैया ने इसे "सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम" माना। जबकि कार्ल मार्क्स ने "राष्ट्रीय क्रान्ति" कहा।
●R C मजूमदार के अनुसार "तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम, न ही राष्ट्रीय तथा न ही स्वतंत्रता संग्राम था।"
●डॉ. S. N. सेन के अनुसार "जो कुछ धर्म की लड़ाई के रूप में शुरू हुआ वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में समाप्त हुआ।"
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उपर्युक्त विवेचनाओं से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह विद्रोह एक राष्ट्रीय विद्रोह था, क्योंकि इसमें सैनिकों के साथ साथ आम लोगों ने भी भाग लिया। इस बात की पुष्टि आधुनिक इतिहासकारों में विपिनचन्द्र के कथन से होती है। उनके अनुसार "1857 का विद्रोह विदेशी सत्ता को पुराने ढंग से हटाने की आखिरी लड़ाई थी, इसे विद्रोह भी कह सकते हैं और आजादी की लड़ाई भी, खास बात यह है कि इसमें हार मिली, इससे बुद्धिजीवी वर्ग ने सबक ली वे समझ गये कि यह पुराने किस्म का विदेशी शासक नहीं है, इसलिए इसके खिलाफ लड़ाई दूसरे ढंग से लड़ी जाए। 1857 के विद्रोह के बाद भारत की आजादी की लड़ाई में इसने बहुत योगदान दिया, विद्रोहियों की बहादुरी की गाथाएं जनता को प्रेरित करतीं रहीं।"

1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ


 चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग को लेकर अंग्रेज सेना में भर्ती भारतीय सैनिकों में अशान्ति फैल गयी। 23 जनवरी 1857 ई. में दमदम के सैनिकों ने कारतूसों को प्रयोग में लाने से इंकार कर दिया।

 26 फरवरी अठ्ठारह सौ सत्तावन में बहरामपुर की 19वीं एन. आई. ने कारतूसों के प्रयोग को लेकर विद्रोह किया। इसके बाद 29 मार्च अठ्ठारह सौ सत्तावन ई. में "बैरकपुर छावनी" के 34वीं एन. आई. रेजीमेन्ट के सैनिक "मंगल पाण्डे" ने अपने अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा सारजेण्ट ह्यूरसन तथा लेफ्टिनेंट बाग को गोली मार दी। परन्तु ह्यूरसन बच गया।

8 अप्रैल 1857 ई. को मंगल पाण्डे को फांसी दे दी गयी तथा 34वीं एन. आई. रेजीमेण्ट को भंग कर दिया गया। इस विद्रोह की खबर शीघ्र ही मेरठ पहुँच गयी।

 24 अप्रैल अठ्ठारह सौ सत्तावन को 3 एल. सी. परेड मेरठ में देशी घुड़सवार सेना के 90 घुड़सवार सैनिकों में से 85 सैनिकों ने नये कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आदेश की अवहेलना के कारण इन सैनिकों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया।

 खुला विद्रोह 10 मई 1857 ई. को रविवार के दिन सायंकाल 5 या 6 बजे के बीच प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी "20 एन. आई." में विद्रोह की शुरुआत हुई तत्पश्चात 3 एल. सी. में भी विद्रोह फैल गया।

 इन सैनिकों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाईं। शीघ्र ही विद्रोहियों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। अंग्रेज अधिकारी जनरल हेबिट ने उन्हें रोकने का प्रयत्न भी नहीं किया।

 11 मई को विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुँचे और 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में अंग्रेज अधिकारी "कर्नल रिपले" मारा गया तथा दिल्ली शस्त्रागार का कार्यवाहक लेफ्टिनेंट "विलोबी" पराजित हो गया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट "बहादुर शाह द्वितीय" को पुनः भारत का सम्राट घोषित कर दिया।

 दिल्ली विजय का समाचार शीघ्र ही समूचे देश में फैल गया। दिल्ली में विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व जनरल बख्त खान उर्फ खान बहादुर खाँ ने किया था।

 अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए पंजाब से सेना बुलाई तथा कश्मीर, पटियाला, नाभा एवं जींद के राजाओं की मदद ली।

 14 सितम्बर अठ्ठारह सौ सत्तावन को अंग्रेज सेना तथा विद्रोहियों के बीच युद्ध प्रारम्भ हुआ। 21 सितम्बर को अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया। इस युद्ध में अंग्रेज सेना नायक जॉन निकलसन की मृत्यु हो गयी। मुगल सम्राट को बंदी बना लिया गया। लेफ्टिनेंट हडसन ने सम्राट के दो पुत्रों तथा एक पोते को गोली मरवा दी।

 दिल्ली निवासियों से प्रतिशोध लेने के लिए भीषण नरसंहार किया गया। इस नरसंहार पर बम्बई के तत्कालीन गवर्नर लार्ड एलफिंस्टन ने लिखा कि "दिल्ली पर पुनः अधिकार के बाद ब्रिटिश सेना के अपराधों का वर्णन नहीं किया जा सकता। इस समय जो नरसंहार हुआ उसकी भयंकरता नादिरशाह के आक्रमण से भी अधिक थी।"
 सम्राट को निर्वासित कर रंगून भेज दिया, जहाँ उसकी 7 नवम्बर 1862 ई. में मृत्यु हो गई।

1857 की क्रान्ति का प्रसार


 यह विद्रोह शीघ्र ही लगभग देश के सभी भागों में फैल गया। देश के विभिन्न भागों में लोग अंग्रेजी सत्ता के विरोध में हो गये। लेकिन कुछ भारतीय शासक राजभक्त बने रहे और विद्रोह के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया। नर्वदा नदी के दक्षिणी भाग के लोग व्यवहारतः शान्त रहे।

1857 का विद्रोह

लखनऊ

 लखनऊ में विद्रोह का आरम्भ 4 जून 1857 ई. में हुआ। इसका नेतृत्व अवध की "बेगम हजरत महल" ने किया था। इसमें उनका साथ अवध के किसानों, जमींदारों व सैनिकों दिया।

 यहाँ पर विद्रोही सैनिकों ने ब्रिटिश रेजीडेण्ट को घेरकर उसमें आग लगा दी। जिसमें अंग्रेज सैनिक अधिकारी हेनरी लॉरेंस की मृत्यु हो गयी। इसके बाद जनरल हेवलॉक व आउट्रम ने लखनऊ को पुनः जीतने का प्रयास किया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली।

  अंग्रेजों के नये मुख्य सेनापति "सर कालिन कैम्पबेल" ने अंततः गोरखा रेजीमेण्ट की सहायता से लखनऊ पर पुनः अधिकार कर लिया। "बेगम हजरत महल" नेपाल चलीं गयीं।

 मौलवी अहमद उल्ला शाह ने गोरिल्ला युद्ध जारी रखा। किन्तु पोवायां के राजा जगन्नाथ सिंह ने विश्वासघात कर उन्हें मरवा दिया। 1 मार्च 1858 ई. तक लखनऊ में विद्रोह का दमन कर दिया गया।

कानपुर

 कानपुर में विद्रोह 5 जून 1857 ई. में प्रारम्भ हुआ। जिसका नेतृत्व नाना साहेब (धोंधू पंत) ने किया। विद्रोहियों ने नाना साहेब को पेशवा घोषित किया। "तात्या टोपे तथा अजीमुल्ला खां" ने उनका सहयोग किया।

 27 जून को अंग्रेज कमाण्डर "जनरल सर व्हीलर" ने विद्रोहियों के आगे आत्म समर्पण कर दिया। कुछ यूरोपीय पुरुष, महिलाओं व बालकों की हत्या कर दी गयी।

 अंग्रेजों ने इस हत्याकांड का उत्तरदायी नाना साहेब को ठहराया। सर कैम्पबेल ने 6 दिसम्बर को कानपुर पर पुनः अधिकार कर लिया। नाना साहेब भागकर नेपाल चले गये। तात्या टोपे झांसी की रानी से जा मिले।

झांसी

 झांसी में भी विद्रोह की शरुआत 5 जून 1857 ई. में हुई थी। वहाँ के सैनिकों ने रानी लक्ष्मीबाई को झांसी की शासिका घोषित कर दिया।

 रानी लक्ष्मीबाई राजा गंगाधर राव की विधवा थी। रानी लक्ष्मीबाई का कहना था कि "मैं अपनी झांसी किसी भी कीमत पर नहीं दूंगी"। कानपुर में विद्रोहियों के शासन के पतन के बाद तात्या टोपे भी रानी से जा मिले।

 झांसी के विद्रोह का दमन करने के लिए 23 मार्च 1858 को  ह्यूरोज को भेजा गया। कुछ विश्वासघातियों की वजह से ह्यूरोज ने झांसी पर अधिकार कर लिया।

 रानी झांसी से निकलकर कालपी पहुँची। किन्तु यहां भी ह्यूरोज से पराजित हुईं। इसके बाद रानी ग्वालियर पहुँचीं। ग्वालियर का राजा सिन्धिया अंग्रेजों का मित्र था। अतः उसने रानी का साथ देने से इंकार कर दिया। परन्तु उसकी सेना ने रानी का साथ दिया। जिससे रानी का ग्वालियर पर अधिकार हो गया।

 सिन्धिया ने भागकर आगरा में शरण ली। स्मिथ तथा ह्यूरोज के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने ग्वालियर पर आक्रमण किया। रानी वीरता पूर्वक लड़ते हुए 17 जून 1858 ई. में ग्वालियर दुर्ग की दीवार के पास वीरगति को प्राप्त हुईं।
 तात्या टोपे भाग निकले किन्तु अप्रैल 1859 ई. में सिन्धिया के एक सामन्त मानसिंह ने उन्हें पकड़ लिया और अंग्रेजों को सौंप दिया। अंग्रेजों ने उन्हें 18 अप्रैल 1859 ई. में फांसी दे दी।

बिहार

  बिहार में 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व जगदीशपुर के जमींदार "कुँवर सिंह" से किया था। बिहार में सर्वप्रथम विद्रोह का प्रारम्भ दानापुर में हुआ था।

 इसके बाद यह आरा, पटना, गया, शाहाबाद, मुजफ्फरपुर आदि जिलों में फैल गया। दिसम्बर 1858 ई. में विलियम टेलर व विंसेट आयर ने इस विद्रोह का दमन किया।

 असम में विद्रोह का नेतृत्व मनीराम दत्त तथा कंदर्पेश्वर ने किया था। उड़ीसा में सम्भलपुर के राजकुमार सुरेन्द्रशाही तथा उज्ज्वल सिंह ने। कुल्लू हिमाचल प्रदेश में राजा प्रताप सिंह तथा उनके भाई वीर सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया। अतः इन्हें अंग्रेजों ने फांसी दे दी।

 राजस्थान में विद्रोह का मुख्य केन्द्र कोटा था। यहाँ पर जयदयाल तथा हरदयाल ने इसका नेतृत्व किया था। दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में डॉ. वी. डी. दिवेकर ने इस क्रान्ति का नेतृत्व किया। महाराष्ट्र में रंगो बापूजी ने इस स्वतंत्रता संग्राम को हवा दी।

Important Questions

Q-भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का सरकारी इतिहासकार कौन था?
@-डॉ. एस. एन. सेन
Q-"तथाकथित प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम न प्रथम और न ही स्वतंत्रता संग्राम था"। यह कथन किसका है?
@-डॉ. आर. सी. मजूमदार
Q-किस इतिहासकार ने इस विद्रोह को "सामन्ती क्षोभ" कहा?
@-डॉ. एस. बी. चौधरी ने
Q-सतीचौरा और बीबीगढ़ कांड किससे सम्बन्धित हैं?
@-अठ्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह से
Q-इलाहाबाद में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया था?
@-मौलवी लियाकत अली ने

Q-झांसी में विद्रोह का प्रारम्भिक नेतृत्व किसने किया था?
@-काले खां ने
Q-मंगल पाण्डे कहाँ के निवासी थे?
@-गाजीपुर, बलिया, उत्तर प्रदेश
Q-हडसन ने किसकी मदद से बहादुर शाह द्वितीय को बंदी बनाया?
@-मिर्जा इलाही बख्श
Q-"बिहार का सिंह" की उपमा से किसे नवाजा जाता है?
@-कुँवर सिंह को
Q-गंजाम में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था?
@-राधेकृष्ण दण्ड ने

Q-मद्रास में अठ्ठारह सौ सत्तावन के विप्लव का नेतृत्व किसने किया था?
@-अरनागिरि तथा कृष्णा ने
Q-मध्यप्रदेश के मन्दसौर में अठ्ठारह सौ सत्तावन के स्वतंत्रता संग्राम का झण्डा किसने बुलन्द किया था?
@-शाहजादा फिरोजशाह ने
Q-फैजाबाद में 1857 के संग्राम के नेता मौलवी अहमदुल्ला मूलतः कहाँ के निवासी थे?
@-तमिलनाडु (अर्काट)
Q-1857 के स्वतंत्रता संग्राम के किस सेनानी को "इटली का गेरी बाल्डी" कहा गया?
@-तात्या टोपे

Q-तात्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था?
@-रामचन्द्र पाण्डुरंग
Q-अठ्ठारह सौ सत्तावन ई. के स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक क्या था?
@-कमल और रोटी
Q-किस उर्दू कवि ने दिल्ली में अठ्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह को अपनी आँखों से देखा?
@-मिर्जा गालिब ने
Q-1857 ई. के विप्लव के समय लार्ड कैनिंग ने किस स्थान पर अपना आपातकालीन मुख्यालय बनाया?
@-इलाहाबाद में

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9 Comments
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  1. Agar post pasand aayi ho to share and comment kijiye

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  2. बहुत अच्छा प्रयास है सरजी आप सबका....👍

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  3. सर , आप का प्रयास सराहनीय है ।

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  4. सर , आप का प्रयास सराहनीय है ।

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  5. thank u sir, please sir make posts on later mughals,

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  6. sir later mughals par post upload kijiye , thank u so much sir

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