भारत में अंग्रेजों ने (लार्ड कार्नवालिस ने) भूमि का "स्थायी बन्दोबस्त" बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरी-पश्चिमी प्रान्त के बनारस एवं गाजीपुर खण्ड और उत्तरी कर्नाटक में प्रचलित किया।
स्थायी बन्दोबस्त क्या है?
एक ऐसी व्यवस्था जिसमें निश्चित भूमि के लिए एक निश्चित लगान स्थायी रूप से निर्धारित कर दिया गया।
इसे "जमींदारी प्रथा, इस्तमरारी बन्दोबस्त, जागीरदारी व्यवस्था या मालगुजारी व्यवस्था अथवा बीसवेदारी प्रथा" भी कहा जाता है। यह व्यवस्था समस्त भारत की 19 प्रतिशत भूमि पर लागू की गयी थी।
इस व्यवस्था को लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई. में लागू किया था। इस व्यवस्था को लागू किये जाने से पूर्व ब्रिटिश सरकार के समक्ष 3 समस्याएं थीं।
1-भारत में भूमि का मालिक किसे माना जाये।
2-राजस्व चुकाने के लिए अन्तिम रूप से किसे उत्तरदायी बनाया जाये।
3-उपज में सरकार का कितना हिस्सा रखा जाये।
उक्त समस्याओं के समाधान हेतु 1784 ई. में पिट्स इण्डिया एक्ट के माध्यम से बंगाल में स्थायी भू-प्रबन्ध का सुझाव दिया गया।
1786 ई. में कार्नवालिस बंगाल का गवर्नर जनरल बनकर आया। इसने भू-राजस्व व्यवस्था की समस्या पर विचार करने के लिए एक "रेवेन्यू बोर्ड" का गठन किया।
कार्नवालिस ने बोर्ड के सदस्यों जान शोर तथा चार्ल्स जेम्स ग्राण्ट के साथ लम्बे विचार-विमर्श के बाद भू-राजस्व की एक नयी व्यवस्था बंगाल में लागू की।
इस व्यवस्था में जमींदारों को भूमि का मालिक मान लिया गया तथा उन्हें लगान वसूल करने का अधिकार दिया गया।
1790 ई. में यह "भूमि बन्दोबस्त व्यवस्था" सर जॉन शोर के सुझाव पर 10 वर्षों के लिए लागू की गयी। इस व्यवस्था को "सर जॉन शोर बन्दोबस्त" कहा गया।
लेकिन कार्नवालिस ने तर्क दिया कि यह समय इतना थोड़ा है कि कोई जमींदार भूमि में स्थायी सुधार करने का प्रयत्न नहीं करेगा।
कोर्ट ऑफ डायरेक्टरस ने कार्नवालिस के इस सुझाव को मान लिया और 22 मार्च 1793 ई. में इसी 10 वर्षीय व्यवस्था को स्थायी कर दिया गया। जिसे "स्थायी बन्दोबस्त" के नाम से जाना जाता है।
इस व्यवस्था में भूमिकर जमींदार और उनके उत्तराधिकारियों पर निश्चित कर दिया गया। जो भविष्य में बदला नहीं जा सकता था। भूमिकर का 10/11 भाग सरकार कोष में तथा शेष 1/11 भाग जमींदार अपनी सेवाओं के लिए अपने पास रख लेता था।
जमींदारों द्वारा निर्धारित अवधि के अन्दर लगान सरकारी कोष में जमा न कर पाने की स्थित में उनकी भूमि को नीलाम कर दिया जाता था। दैवीय प्रकोप की स्थिति में भी लगान की दर में कोई रियायत नहीं दी जाती थी।
लगान की दर बढ़ाने का अधिकार सरकार के पास नहीं था। किन्तु जमींदार इसमें वृद्धि कर सकता था। जमींदार अपनी भूमि को बेंच सकता था, रेहन एवं दान में भी दे सकता था।
स्थायी बन्दोबस्त के कारण
1-सरकार एक निश्चित आय प्राप्त करना चाहती थी।
2-कम्पनी लगान वसूली पर समय तथा पैसा व्यय नहीं करना चाहती थी।
3-कम्पनी इस व्यवस्था द्वारा सशक्त जमींदारों को अपना समर्थक बनाना चाहती थी।
4-कम्पनी के पास योग्य कर्मचारियों तथा भूमि के सन्दर्भ में ज्ञान का अभाव था। इस लिए इस व्यवस्था को लागू करना अनिवार्य हो गया।
5-इस बन्दोबस्त से कम्पनी को अपेक्षा थी कि इससे कृषि विकास के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।
स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था के लाभ
इस व्यवस्था से कम्पनी को अनेक लाभ हुए।
●इससे कम्पनी के आर्थिक हितों की अधिक रक्षा हुई तथा राज्य को एक निश्चित आय एक निश्चित समय पर प्राप्त होने लगी, चाहे पैदावार हो या न हो। यदि जमींदार लगान अदा नहीं कर पाता तो उसकी भूमि के एक टुकड़े को बेंच कर लगान के बराबर आय प्राप्त कर ली जाती थी।
●जमींदार कृषि उन्नति की ओर अधिक ध्यान देने लगा क्योंकि उसे सरकार को एक निश्चित हिस्सा देना पड़ता था। शेष लगान पर उसका अधिकार होता था। इसलिए वह पैदावार बढ़ाना चाहता था।
●कम्पनी को 1857 ई. के विद्रोह में जमींदारों का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ।
●कम्पनी का वह धन खर्च होने से बच गया जिसे वह लगान वसूली के समय कर्मचारियों पर खर्च करती थी।
स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था के दोष
इस व्यवस्था अनेक दोष सामने आये। इसके लागू होने से सरकार का किसान से सीधा सम्पर्क टूट गया। फलस्वरूप सरकार किसानों की वास्तविक स्थिति से परिचित न होने के कारण उनके प्रति उदासीन रहने लगी।
बाढ़ और अकाल के समय सरकार मालगुजारी की वसूली में कोई रियायत नहीं देती थी।
जमींदार लोग किसानों का आर्थिक शोषण करते थे। किसानों द्वारा लगान न देने पर उन्हें भूमि से बेदखल कर दिया जाता था।
इस व्यवस्था के अन्तर्गत एक "सूर्यास्त कानून" का निर्माण किया गया। जिसमें यह व्यवस्था थी कि निश्चित दिन के सूर्यास्त तक लगान जमा करना अनिवार्य है अन्यथा जमींदारों की जागीर जब्त हो जायेगी। अथवा उसकी जागीर का कुछ भाग नीलाम कर दिया जायेगा।
स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था ने जमींदारों के हितों को सुरक्षित किया। जमींदारी प्रथा से छोटे-छोटे जमींदार भी उभरे जो बड़े जमींदारों से कुछ भाग लगान वसूलने के लिए लेते थे। परिणामतः "पटनीतालुको अर्थात आश्रित भू-धृति व्यवस्था" का जन्म हुआ। इस व्यवस्था में निश्चित किराये पर जमींदारी का कुछ भाग शिकर्मी रूप में दे दिया जाता था। इस व्यवस्था को 1819 ई. में कानूनी मान्यता मिल गयी।
Q-किस अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई कि जो कृषक भू-राजस्व न दे पाये उसे जमींदार उसकी भूमि से बेदखल कर सकता है?
@-1799 के अधिनियम द्वारा
Q-ईस्ट इंडिया कम्पनी को किस एक्ट के तहत बंगाल में स्थायी भूमि प्रबन्ध करने की सलाह दी गयी?
@-पिट्स इंडिया एक्ट-1784 के तहत
Q-किस ब्रिटिश अधिकारी ने भूमि पर जमींदारों के स्वामित्व का विरोध किया था?
@-जेम्स ग्राण्ट ने
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