खानवा का युद्ध|Battle of Khanwa

खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. में मेवाड़ के शासक राणा सांगा तथा मुगल शासक बाबर के बीच लड़ा गया। इसमें बाबर विजयी हुआ। इस युद्ध में बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध जिहाद (धर्मयुद्ध) का नारा दिया था। इस युद्ध में विजय के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।

खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. में मेवाड़ के शासक राणा सांगा तथा मुगल शासक बाबर के बीच लड़ा गया। इसमें बाबर विजयी हुआ।

 पानीपत के युद्ध के बाद बाबर द्वारा लड़े गये युद्धों में खानवा का युद्ध सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था। पानीपत विजय ने जहां बाबर को दिल्ली का बादशाह बनाया वहीं खानवा विजय ने उसके शासन को स्थायित्व प्रदान किया।

खानवा युद्ध के कारण


●पानीपत के युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सैनिक सहायता देने का वचन दिया था, किन्तु बाद में वह मुकर गया।
●राणा सांगा बाबर को दिल्ली का शासक नहीं मानता था।
●इस युद्ध का मुख्य कारण बाबर तथा राणा सांगा दोनों की महत्वाकांक्षा थी। बाबर सम्पूर्ण भारत पर अधिकार करना चाहता था जबकि राणा सांगा दिल्ली में हिन्दू साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
●राणा सांगा ने कुछ अफगान सरदारों को अपने दरबार में शरण दी थी। जबकि बाबर उन्हें समाप्त करना चाहता था।

  उपर्युक्त कारणों ने खानवा के युद्ध का मार्ग खोल दिया। इस युद्ध में राणा सांगा का साथ मारवाड़, अम्बर, ग्वालियर, अजमेर के शासक तथा अफगान सरदार दे रहे थे। खानवा के युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने बयाना पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया।

 राणा सांगा की बयाना विजय तथा विशाल सेना की खबर सुन बाबर के सैनिकों का मनोबल गिरने लगा। किन्तु बाबर का "साहस और धैर्य" भंग नहीं हुआ। उसने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए "जेहाद (धर्मयुद्ध)" का नारा दिया। उसने शराब बेचने और पीने पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा कभी शराब न पीने का वचन दिया।
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 इसके अतिरिक्त बाबर ने अपने राज्य क्षेत्र में मुसलमानों से तमगाकर न लेने की घोषणा की। तमगाकर एक प्रकार का व्यापारिक कर था। अतः बाबर के सभी सैनिकों ने कुरान पर हाथ रखकर अन्तिम सांस तक लड़ने का निश्चय किया।

खानवा के युद्ध का प्रारम्भ


  खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. में सीकरी से 10 मील दूर खानवा नामक स्थान पर प्रारम्भ हुआ। बाबर ने इस युद्ध में भी पानीपत के युद्ध की भांति तुगलमा युद्ध नीति का प्रयोग किया। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। राजपूत सेना बड़ी वीरता से लड़ी किन्तु पराजित हो गयी। अनेक राजपूत सरदार मारे गये। राणा सांगा बुरी तरह से घायल हो गया। अचेत अवस्था में सैनिकों द्वारा उसे युद्ध स्थल से हटा दिया गया। बाबर विजयी हुआ। खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने "गाजी" की उपाधि धारण की।

खानवा युद्ध के परिणाम


  खानवा के युद्ध में विजय के बाद बाबर का घुमक्कड़ और अस्थिर जीवन में स्थिरता आयी। राजपूतों और अफगानों का संयुक्त मोर्चा समाप्त हो गया। इस युद्ध का महत्वपूर्ण परिणाम हुआ कि बाबर की शक्ति का केन्द्र काबुल के स्थान पर दिल्ली हो गया। काबुल के सैनिकों व अमीरों को स्वदेश जाने की अनुमति मिल गयी।

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