भारत की भूगर्भिक संरचना|Geological structure of india

भारत की भूगर्भिक संरचना का इतिहास बताता है कि भारत में प्राचीनतम चट्टानों से लेकर नवीनतम चट्टानें तक पायीं जातीं हैं। यहाँ "आर्कियन एवं प्री-कैम्ब्रियन" युग की प्राचीन चट्टानें भी मिलती हैं और क्वाटर्नरी युग की नवीनतम चट्टानें भी। जो कॉंप मिट्टी की परतदार निक्षेपों के रूप में मिलती हैं।

भारत की भूगर्भिक संरचना


भारत में मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति

भारत में मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति चार चरणों/अवस्थाओं में हुई है।
◆पर्वत उत्पत्ति के प्रथम चरण में अरावली पर्वत की उत्पत्ति हुई जो सर्वाधिक पुराना तथा धारवाड़ियन क्रम की चट्टानों से निर्मित है। अपक्षय एवं अपरदन के कारण आज यह एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में पाया जाता है।
◆दूसरे चरण में कैलीडोनियन युगीन पर्वतों की उत्पत्ति हुई। भारत में इस समय कुड़प्पा भू-सन्नति से पूर्वी घाट पर्वत की उत्पत्ति हुई जो विभिन्न नदियों जैसे-महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी आदि द्वारा काट दिया गया है।
◆पर्वत उत्पत्ति के तीसरे चरण में हर्सीनियन युगीन पर्वतों का निर्माण हुआ। भारत में विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत हर्सीनियन युगीन है। इनकी उत्पत्ति विन्ध्यन भू-सन्नति से हुई है। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा के बीच एक भ्रंशघाटी स्थित है। इस भ्रंशघाटी में नर्वदा नदी पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। भ्रंशघाटी की उपस्थिति के कारण ही विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा को मोड़दार पर्वत होने के बावजूद भ्रंशित पर्वत कहा जाता है।

◆पर्वत निर्माण के चौथे चरण में अल्पाइन क्रम के पर्वतों की उत्पत्ति हुई। भारत में इस चरण में वृहद, मध्य एवं शिवालिक हिमालय श्रेणियों का निर्माण हुआ।

Q-पश्चिमी घाट भ्रंशित पर्वत का निर्माण कैसे हुआ?
A-वृहद हिमालय की उत्पत्ति के समय ही भारतीय प्लेट के तिब्बत प्लेट से टकराने के फलस्वरूप भारत के पश्चिमी भाग के भ्रंशित होकर समुद्र के अंदर अधोगमित होने से पश्चिमी घाट भ्रंशित पर्वत का निर्माण हुआ। वास्तव में पश्चिमी घाट पर्वत, पर्वत नहीं अपितु प्रायद्वीपीय पठार का एक कगार है।
Q-अरावली श्रेणी तथा विन्ध्याचल श्रेणी से प्राप्त होने वाले संगमरमर में कौन सा उत्तम कोटि काहै?
A-अरावली श्रेणी से प्राप्त संगमरमर उत्तम कोटि का होता है। मकराना से अरावली क्रम का संगमरमर तथा भेड़ाघाट से विन्ध्याचल क्रम का संगमरमर पाया जाता है।
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 भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से भारत को तीन स्पष्ट भागों में विभाजित किया जा सकता है।
दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार
उत्तर की विशाल पर्वत माला
उत्तर भारत का विशाल मैदानी भाग

दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठार की भूगर्भिक संरचना


 प्रायद्वीपीय भारत का यह भू-खण्ड भारत ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम चट्टानों से निर्मित है। यह "गोंडवानालैण्ड" का ही एक भाग है। यह आर्कियन युग की आग्नेय चट्टानों से निर्मित है जिनका अधिकांश भाग अब "नीस व शिष्ट" के रूप में रूपांतरित हो चुका है। प्री-कैम्ब्रियन काल के बाद से यह भाग कभी भी पूर्णतया समुद्र के नीचे नहीं गया। प्रायद्वीपीय भारत की संरचना में चट्टानों के निम्नलिखित क्रम पाये जाते हैं।

Q-चट्टानों का निर्माण कितने प्रकार से होता है?
  चट्टानों का निर्माण प्रायः दो प्रकार से होता है। एक तो वे चट्टानें जिनका निर्माण पृथ्वी की आन्तरिक शक्तियों के कारण होता है। इन्हें आदि चट्टानें कहते हैं। दूसरी वे चट्टानें जिनका निर्माण अपरदन व निक्षेपण अथवा रूपांतरण के कारण होता है। 

आर्कियन क्रम की चट्टानें--ये अत्यधिक प्राचीन प्राथमिक चट्टानें हैं। जब पृथ्वी ठण्डी हुई तब इन चट्टानों का निर्माण हुआ। ये मानव जीवन से भी अधिक पुरानी हैं। ये चट्टानें अब नीस, शिष्ट व ग्रेनाइट में रूपांतरित हो चुकी हैं। बुंदेलखंड नीस व बेल्लारी नीस इनमें सबसे प्राचीन हैं। बंगाल नीस व नीलगिरि नीस भी आर्कियन क्रम की चट्टानों के उदाहरण हैं। ये अपना असली स्वरूप खो चुकी हैं। ये "रवेदार हैं, जिनमें जीवाश्म का अभाव" मिलता है। इनका विस्तार कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, छोटा नागपुर पठार अर्थात झारखण्ड व राजस्थान के दक्षिण पूर्वी भाग पर मिलता है। मुख्य हिमालय के गर्भ में भी आर्कियन क्रम की चट्टानें पायी जाती हैं।
धारवाड़ क्रम की चट्टानें--ये आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से बनी "परतदार चट्टानें" हैं। अब ये चट्टानें रूपांतरित हो चुकी हैं। "इनमें जीवाश्म नहीं मिलते।" धारवाड़ क्रम की चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत एवं बाह्म प्रायद्वीपीय भारत दोनों में ही पाई जाती हैं। ये कर्नाटक के धारवाड़, बेलारी व शिमोगा जिला, अरावली श्रेणियां, बालाघाट, रीवा, छोटानागपुर पठार आदि क्षेत्रों में मिलती हैं। इसके अलावा लद्दाख, जास्कर, कुमायूं पर्वत श्रेणियां व स्पीति घाटी में भी ये चट्टानें पायी जाती हैं।

Q-आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण चट्टानें कौन सी हैं?
 भारत में सर्वाधिक खनिज भण्डार धारवाड़ क्रम की चट्टानों से ही मिलते हैं। अतः आर्थिक दृष्टि से ये चट्टानें सबसे महत्वपूर्ण हैं। देश की लगभग सभी प्रमुख धातुएँ जैसे-सोना, मैंगनीज, लोहा, ताँबा, टंगस्टन, क्रोमियम, जस्ता आदि इन्हीं चट्टानों से मिलता है। खनिजों में फ्लूराइट, इल्मैनाइट, सीसा, सुरमा, बुलफ्राम, अभ्रक, कोबाल्ट, एस्बेस्टस, गारनेट, संगमरमर, कोरण्डम आदि पाये जाते हैं।

Q-भारत में सोना कहाँ से अधिकतम मात्रा में प्राप्त होता है?
 भारत में सोना कर्नाटक से अधिकतम मात्रा में प्राप्त होता है। कर्नाटक में क्वार्ट्ज चट्टानों की अधिकता होने के कारण यहाँ के कोलार तथा धारवाड़ से सोना बहुतायत मात्रा में प्राप्त होता है। जबकि लोहा भारत के झारखण्ड, उड़ीसा, गोआ, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व कर्नाटक से अधिकता में मिलता है।

Q-अरावली पहाड़ियों का निर्माण किस काल में हुआ?
 धारवाड़ काल में ही अरावली पहाड़ियों का निर्माण मोड़दार पर्वतों के रूप में हुआ था। इसके बाद ये समतल हो गईं। अरावली पर्वत संसार का "सबसे पुराना मोड़दार पर्वत" है।
कुड़प्पा क्रम की चट्टानें--इनका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है। ये अपेक्षाकृत कम रूपांतरित हुईं हैं। इनमें भी "जीवाश्मों का अभाव" पाया जाता है। इन चट्टानों का नामकरण आन्ध्र प्रदेश के कुड़प्पा जिले के नाम पर हुआ है। क्योंकि वहाँ पर ये विस्तृत क्षेत्र में पायीं जातीं हैं। ये चट्टानें आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा हिमालय के कुछ क्षेत्रों जैसे-कृष्णा घाटी, नल्लामलाई श्रेणी, चेयार श्रेणी व पापाधानी श्रेणी में पायीं जातीं हैं।
 धारवाड़ क्रम की चट्टानों की अपेक्षा कुड़प्पा क्रम की चट्टानें आर्थिक दृष्टि से कम महत्वपूर्ण हैं। फिर भी इन चट्टानों से लोहा, मैंगनीज, एस्बेस्टस, टॉल्क, संगमरमर व रंगीन पत्थर प्राप्त होते हैं। पूर्वी राजस्थान में इन्हीं चट्टानों से ताँबा, कोबाल्ट तथा राँगा प्राप्त होता है।

विन्ध्य क्रम की चट्टानें--कुड़प्पा क्रम की चट्टानों के बाद विन्ध्य क्रम की चट्टानें निर्मित हुई हैं। ये "परतदार चट्टानें हैं जिनका निर्माण जल निक्षेपों" द्वारा हुआ है। इस बात की पुष्टि इनसे प्राप्त होने वाले बलुआ पत्थर से होती है। ये निक्षेप छिछले समुद्र व नदी घाटियों में एकत्र हुए थे। इनका विस्तार राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से लेकर बिहार के सासाराम क्षेत्र तक है। विन्ध्य क्रम की चट्टानों से चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, चीनी मिट्टी, अग्निप्रतिरोधक मिट्टी तथा वर्ण मिट्टी प्राप्त होती है। इन चट्टानों का एक बड़ा भाग दक्कन ट्रैप से ढँका है। इनका निर्माण कैम्ब्रियन युग में हुआ। इन्हें "द्राविड़ियन समूह की चट्टानें" भी कहा जाता है।

Q-विन्ध्य क्रम की चट्टानों से प्राप्त बलुआ पत्थर से भारत के कौन से प्रमुख स्थापत्य निर्मित हैं?
 विन्ध्य चट्टानों से चूना पत्थर तथा बलुआ पत्थर प्रमुखता से प्राप्त किया जाता है। चूने पत्थर का उपयोग सीमेंट उद्योग तथा बलुआ पत्थर जो लाल रंग का होता है, इमारतों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। विन्ध्य क्रम की चट्टानों से प्राप्त बलुआ पत्थर से निर्मित भारत के प्रमुख स्थापत्य--साँची का स्तूप, दिल्ली का लालकिला, जामा मस्जिद, आगरे का किला आदि।

Q-भारत में हीरे कहाँ से प्राप्त होते हैं?
  पन्ना तथा गोलकुण्डा की खानों से , ये खानें विन्ध्य क्रम की चट्टानों से सम्बन्धित हैं।

गोंडवाना क्रम की चट्टानें--इन चट्टानों का निर्माण ऊपरी कार्बोनीफेरस युग से जुरैसिक युग के बीच हुआ है। ये चट्टानें कोयले के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं। भारत का 98% कोयला गोंडवाना क्रम की चट्टानों में मिलता है। ये परतदार चट्टान हैं इनमें मछलियों तथा अन्य रेंगने वाले जीवों के "जीवाश्म" मिलते हैं। इन चट्टानों का निर्माण घाटियों में नदियों के निक्षेपण द्वारा हुआ है। दामोदर, महानदी और गोदावरी व उसकी सहायक नदियों, कच्छ, काठियावाड़ एवं पश्चिमी राजस्थान आदि में ये चट्टानें पायी जाती हैं। इन्हें "आर्यन समूह की चट्टानें" भी कहा जाता है।

दक्कन ट्रैप--इसका निर्माण मेसोजोइक महाकल्प के क्रिटेशियस कल्प में हुआ था। इस समय विदर्भ क्षेत्र में ज्वालामुखी के दरारी उदभेदन से लावा का वृहद उदगार हुआ। जो लगभग 5 लाख वर्ग km क्षेत्र पर आच्छादित हो गया। इस क्षेत्र में 600 से 1500 मी. तथा कहीं-कहीं 3000 मी. की मोटाई तक "बैसाल्टिक लावा" का जमाव मिलता है। यह प्रदेश दक्कन ट्रैप कहलाता है। यह महाराष्ट्र, गुजरात व मध्यप्रदेश में फैला है। इसका अधिकांश भाग महाराष्ट्र में फैला है। इसके अलावा यह कुछ टुकड़ो में झारखण्ड, छत्तीसगढ़ व तमिलनाडु में भी पाया जाता है।

Q-दक्कन ट्रैप का निर्माण किस लावा के जमाव से हुआ?
@-बैसाल्टिक लावा"
Q-राजमहल ट्रैप का निर्माण किस कल्प में हुआ?
@-राजमहल ट्रैप का निर्माण "जुरैसिक कल्प" में हो गया था। यह दक्कन ट्रैप से पहले निर्मित हुआ था।

प्रायद्वीपीय पठार का महत्व

◆भौगोलिक रूप से दक्कन का पठार लम्बवत संचलन का उदाहरण है। यहाँ पर अनेक जल प्रपात पाये जाते हैं। जिससे यहाँ जल विद्युत का उत्पादन सम्भव है।
◆यहाँ पर अनेक खड्डों के मिलने के कारण तालाबों की अधिकता पायी जाती है। जिससे इस क्षेत्र में सिंचाई व्यवस्था सम्भव हो पाती है।
◆यहाँ के लावा पठार के अपरदन एवं अपक्षयन से उपजाऊ काली-मिट्टी निर्मित हुई है जो कपास, सोयाबीन व चना की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
◆पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले समतल उच्च भागों पर लैटेराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है। जिस पर मसालों, चाय, कॉफी आदि की खेती सम्भव हो पाती है।
◆प्रायद्वीपीय पठार के शेष भागों की लाल-मिट्टियों में मोटे अनाज, चावल, तम्बाकू एवं सब्जियों की खेती हो पाती है।
◆पश्चिमी घाट के अत्यधिक वर्षा वाले प्रदेशों में सदाबहार वन मिलते हैं। जिनसे सागौन, देवदार, महोगनी, चंदन, बांस आदि आर्थिक महत्व की लकड़ी प्राप्त होती हैं।
◆इस पठार के आन्तरिक भागों में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में घास-भूमियां मिलती है। जिससे यहाँ पशुपालन सम्भव हो पाता है।
◆भारत के खनिज संसाधनों के अधिकांश भाग की पूर्ति प्रायद्वीपीय पठार से होती है। यहाँ से सोना, तांबा, लोहा, यूरेनियम, बॉक्साइट, मैंगनीज आदि खनिज प्राप्त होते हैं।
◆छोटा नागपुर के पठार को "भारत का रूर प्रदेश" कहते हैं। क्योंकि यहाँ खनिज के विपुल भण्डार हैं।
◆पठारी भाग के तटीय भागों पर अनेक खाड़ियां व लैगून मिलते हैं। जो बन्दरगाहों और पोताश्रय के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान हैं।
Q-भारत का रूर प्रदेश किसे कहते हैं?
  छोटा नागपुर के पठार को

उत्तर के विशाल पर्वत माला की भूगर्भिक संरचना


 उत्तर की विशाल पर्वत माला का निर्माण एक लम्बे भूगर्भिक काल से गुजर कर सम्पन्न हुआ है। इसके निर्माण के सम्बन्ध में "कोबर का भू-सन्नति सिद्धान्त" तथा हैरी हेस का "प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त" सर्वाधिक मान्य है। इसका निर्माण टेथिस भू-सन्नति में जमा अवसादों से हुआ है। सीनोजोइक महाकल्प के इयोसीन व ओलीगोसीन कल्प में वृहद हिमालय का निर्माण हुआ। मायोसीन कल्प में पोटवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु हिमालय का निर्माण हुआ। शिवालिक हिमालय का निर्माण इन दोनों श्रेणियों के द्वारा लाये गये अवसादों के वलन से प्लायोसीन कल्प में हुआ।

उत्तर भारत का विशाल मैदानी भाग

 इसका निर्माण क्वाटर्नरी या नियोजोइक महाकल्प के प्लास्टोसीन एवं होलोसीन कल्प में हुआ है। यह भारत की नवीनतम भूगर्भिक संरचना है। इसका निर्माण टेथिस भू-सन्नति के निरन्तर संकरा व छिछला होने तथा हिमालयी नदियों व दक्षिण भारतीय नदियों द्वारा लाये गये अवसादों के जमाव से हुआ है। इसके पुराने जलोढ़ भाग बांगर तथा नये जलोढ़ भाग खादर कहलाते हैं। इस मैदानी भाग में प्राचीन काल में वन प्रदेशों के दब जाने से कोयला और पेट्रोलियम के क्षेत्र मिलते हैं।

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