निम्नकोटि के सरल जीवों से, क्रमिक परिवर्तनों द्वारा, अधिक विकसित व जटिल जीवों की उत्पत्ति ही जैव विकास कहलाता है। अर्थात आदिसागर में एक कोशिकीय सरल जीवों की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक के जटिल जीवों तक क्रमिक रूप से विकास ही जैव विकास कहलाता है।
जैव विकास की मौलिक परिकल्पना "परिवर्तन के साथ अवतरण" है। लैमार्क, डार्विन तथा ह्यूगो डी व्रीज आदि वैज्ञानिक ने जैव विकास को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
01- जैव विकास को सर्वप्रथम किसने समझाया?
A-न्यूटन
B-आइन्स्टीन
C-डार्विन
D-लैमार्क
जैव विकास के सिद्धान्त को सर्वप्रथम फ्रांस के जीव वैज्ञानिक जीन बैप्टिस्टे डी लैमार्क ने समझाया। उन्होंने 1809 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक फिलॉसफी जूलोजिक में इस सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन किया। लैमार्क द्वारा प्रस्तुत जैव विकास के सिद्धान्त को लैमार्क का सिद्धांत या उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धान्त भी कहा जाता है।
02- आधुनिक शोधों के अनुसार, पृथ्वी पर जीवन का उदभव कब हुआ?
A-20 हजार वर्ष पूर्व
B-2 लाख वर्ष पूर्व
C-2 करोड़ वर्ष पूर्व
D-2 अरब वर्ष पूर्व
पृथ्वी पर जीवन का उदभव लगभग 2 अरब वर्ष पूर्व हुआ।
03- पृथ्वी पर सबसे पुराना जीव निम्न में से कौन सा है?
A-नील-हरित शैवाल
B-कवक
C-अमीबा
D-युग्लीना
पृथ्वी पर सबसे पुराना जीव नील-हरित शैवाल है। ये ऐसे प्रथम जीव हैं जिन्होंने सूर्य के प्रकाश एवं जल के प्रयोग से भोजन का निर्माण करना प्रारम्भ किया। इस क्रिया से उत्पन्न हुई आक्सीजन गैस वायुमंडल में फैलने लगी, जो अन्य जीवों के विकास का कारण बनी।
04-विकासवाद का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया?
A-स्पेन्सर ने
B-डार्विन ने
C-वालेस ने
D-हक्सले ने
विकासवाद के मत को चार्ल्स डार्विन ने प्रतिपादित किया। उनका मत था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तनों द्वारा अपना विकास करती है। यही सिद्धान्त आधुनिक जीव विज्ञान की नींव है।
05- डार्विन द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक वरणवाद निम्नलिखित में से किस पर आधारित है?
A-ओवरप्रोडक्सन
B-अस्तित्व के लिए संघर्ष और विविधताएं
C-योग्यतम की उत्तरजीविता
D-उपरोक्त सभी
चार्ल्स डार्विन इंग्लैंड के जैव विकास विशेषज्ञ थे। इनके द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त को डार्विनवाद कहा जाता है। डार्विनवाद को प्राकृतिक वरणवाद भी कहते हैं। डार्विन ने अपनी पुस्तक "प्राकृतिक चुनाव द्वारा जातियों की उत्पत्ति" में विकासवाद की विस्तृत व्याख्या की। डार्विन का प्राकृतिक वरणवाद- ओवरप्रोडक्शन, अस्तित्व के लिए संघर्ष और विविधताएं तथा योग्यतम की उत्तरजीविता इन तीनों पर आधारित है।
06- विकास के उत्परिवर्तन सिद्धान्त का प्रतिपादन किस वैज्ञानिक ने किया?
A-हक्सले
B-डार्विन
C-लैमार्क
D-ह्यूगो डी ब्रीज
विकास के उत्परिवर्तन सिद्धान्त को हॉलैंड के पादपशास्त्री ह्यूगो डी ब्रीज ने दिया। उन्होंने बताया कि नई जाति की उत्पत्ति जीन में उत्परिवर्तन के कारण अचानक होती है। जाति का पहला सदस्य जिसमें उत्परिवर्तित लक्षण दिखाई देते हैं, उत्परिवर्ती कहलाता है। इन्होंने अपने प्रयोग सांध्य प्रिमरोज पर किया था।
07- सूची-I को सूची-II से सुम्मेलित कीजिए तथा कूट की सहायता से सही उत्तर चुनिए:-
सूची-I सूची-II
a-उत्परिवर्तन का सिद्धान्त 1-बीडल और टैटम
b-विकास का सिद्धान्त 2-जैकब और मोनोड
c-एक जीन एक एंजाइम 3-डार्विन
d-ओपेरॉन अवधारणा 4-डी ब्रीज
कूट
a b c d
A- 3 4 1 2
B- 4 3 1 2√√
C- 4 3 2 1
D- 3 4 2 1
08- डार्विन के अनुसार विकास का प्रमुख कारक है--
A-उत्परिवर्तन
B-अर्जित गुण
C-लैंगिक जनन
D-प्राकृतिक वरण
जैव-विकास का मुख्य कारक प्राकृतिक वरण है, क्योंकि प्राकृतिक वरण ही विभेदों एवं अर्जित जीनों को अगली पीढ़ी में दिशा प्रदान करता है।
09-जैव विकास के सन्दर्भ में, सर्पों के अंगों का लोप होने को स्पष्ट किया जाता है--
A-अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग किये जाने से
B-बिलों में रहने के प्रति अनुकूलन से
C-प्राकृतिक चयन से
D-उपार्जित लक्षणों की वंशागति से
फ्रांसीसी जैव वैज्ञानिक लैमार्क के अनुसार, परिवर्तन शरीर के उपयोग तथा अनुपयोग के कारण होते हैं। बदलते वातावरण में जीवधारी नई आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने कुछ अंगों का अधिक प्रयोग करते हैं जबकि कुछ अंगों का कम, जिसके कारण अधिक प्रयोग किए जाने वाले अंग सुदृढ़ एवं सुविकसित हो जाते हैं तथा वे अंग जिनका प्रयोग कम होता है वे निष्क्रिय तथा धीरे - धीरे करके लुप्त हो जाते हैं, जिसका उदाहरण हमारे शरीर के अवशेषी अंग हैं। लैमार्क ने अंगों के अनुपयोग के उदाहरण के रूप में सर्पों में टांगों के अभाव को बताया । जबकि उपयोग के उदाहरण में जिराफ की लंबी गर्दन को बताया है।
10- आधुनिक मनुष्य का सबसे निकटतम पूर्वज है--
A-जावा मानुष
B-क्रो-मैगनॉन मानुष
C-नियंडरथल मानुष
D-पेकिंग मानव
क्रो-मैगनॉन मानव को वर्तमान मानव होमो - सैपियंस का अन्तिम सीधा पूर्वज माना जाता हैं। क्रो-मैगनॉन का शरीर गठा हुआ और लगभग 166 सेमी. (6 फुट) लम्बा था तथा इसकी कपालगुहा 1600 क्यूबिक सेमी. थी।
11- आर्कियोप्टेरिक्स किन वर्गों के प्राणियों के बीच की संयोजक कड़ी है?
A-उभयचर व पक्षी
B-सरीसृप व पक्षी
C-सरीसृप व स्तनधारी
D-पक्षी व स्तनधारी
आर्कियोप्टेरिक्स, जुरैसिक युग का एक सर्वपुरातन पक्षी था। जिसके जीवाश्म लगभग 15 करोड़ वर्ष पुरानी जुरैसिक चट्टानों से मिले हैं। यह सरीसृपों तथा पक्षियों के बीच का संयोजक जन्तु था, जिसमें सरीसृपों ( Reptiles ) की भांति लम्बी पूंछ, चोंच में दांत तथा अग्रपादों की अंगुलियों पर पंजे थे, फिर भी यह पक्षी था, क्योंकि इसके अग्रपाद उड़ने के लिए पंखों में रूपान्तरित हो चुके थे। यह जन्तु जैव विकास को सिद्ध करता है।
12- आर्कियोप्टेरिक्स है--
A-जुरैसिक युग का सर्वपुरातन पक्षी√√
B-जुरैसिक काल का सरीसृप
C-ट्राइएसिक काल का सरीसृप
D-ट्राइएसिक तथा जुरैसिक दोनों कालों का सरीसृप
13- डाइनोसोर थे--
A-सीनोजोइक सरीसृप
B-मेसोजोइक पक्षी
C-पैलियोजोइक एम्फीबिया
D-मेसोजोइक सरीसृप
डाइनोसोर विशालकाय सरीसृप थे, जो कि मध्यजीवी या मेसोजोइक महाकाय में थे। मध्यजीवी महाकल्प को तीन कल्पों- ट्रायसिक कल्प, जुरैसिक कल्प, तथा क्रिटेशियस कल्प में बांटा गया है। क्रिटेशियस में डाइनोसोर, पुष्पीय पादपों, स्तनियों का विकास होता रहा, किन्तु अन्तिम चरण में उत्तरी महाद्वीपों के जुड़ने, गोण्डवाना महाद्वीप के पृथक होने तथा पृथ्वी पर उल्कापिण्डों के गिरने से डाइनोसोरों सहित लगभग 76 प्रतिशत जातियों की व्यापक विलुप्ति हुई।
14- सरीसृप का युग कहा जाता है--
A-पैलियोजोइक महाकल्प
B-मेसोजोइक महाकल्प√√
C-कार्बोनीफेरस महाकल्प
D-आर्कियोजोइक महाकल्प
15- उपार्जित लक्षणों की वंशागति किस वैज्ञानिक से सम्बन्धित है?
A-डार्विन
B-लैमार्क
C-ब्रीज
D-वैलेस
सन् 1809 में जीन बैप्टिस्टे डी लैमार्क ने अपनी पुस्तक "फिलॉसफी जूलोगीक" में जैव विकास परिकल्पना पर तर्क संगत सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसे लैमार्क का सिद्धांत या लैमार्कवाद कहते हैं। यह निम्नलिखित चार मूल धारणाओं पर आधारित है--
1-बड़े होने की प्रवृत्ति
2-वातावरण का सीधा प्रभाव
3-अंगों के अधिक या कम उपयोग का प्रभाव
4-उपार्जित लक्षणों की वंशागति
16- लैमार्कवाद का मूल सिद्धांत है-/
A-प्राकृतिक चयन
B-उत्परिवर्तन
C-विभिन्नताएं
D-उपार्जित लक्षणों की वंशागति√√
17- मछलियों का युग कहा जाता है?
A-आर्डोवीसियन कल्प
B-प्रोटीरोजोइक महाकल्प
C-सिल्युरियन कल्प
D-डिवोनियन कल्प
डिवोनियन कल्प को मछलियों का युग कहते हैं। इसमें जबड़े रहित निम्नकोटि की मछलियों से अनेक जबड़ेयुक्त एवं जोड़ीदार पखनों वाली मछलियों का व्यापक उद्विकास हुआ। इसी युग में शार्कों तथा अस्थीय मछलियों (Bony fishes) की उत्पत्ति हुई।
18- कार्बनिक यौगिकों का संश्लेषण जीवन का आधार है इसे प्रयोगों द्वारा किसने सत्यापित किया?
A-ओपेरिन
B-हक्सले
C-मिलर
D-हेलडेन
प्रबल ऊर्जा की उपस्थिति में मीथेन, हाइड्रोजन, जलवाष्प एवं अमोनिया के संयोजन से अमीनो अम्लों, सरल शर्कराओं एवं अन्य कार्बनिक यौगिकों का संश्लेषण स्टैन्ले मिलर ने अपने आचार्य हैरोल्ड यूरे की देख रेख में किया। मिलर का यह प्रयोग ओपेरिन की 'रासायनिक उद्विकास के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति' की परिकल्पना अर्थात पदार्थवाद को सिद्ध करता है। पदार्थवाद में बताया गया कि कार्बनिक यौगिकों के बन जाने से ही आदिसागर में जीवन की उत्पत्ति हुई क्योंकि इन्हीं से जीवद्रव्य के प्रमुख घटक बनते हैं। इस प्रयोग में मिलर ने मीथेन , अमोनिया एवं हाइड्रोजन का गैसीय मिश्रण 2:1:2 के अनुपात में लिया था।
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