वातावरण के लिए 'पर्यावरण' शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। वातावरण से तात्पर्य उन सभी चीजों से ( जीन्स को छोड़कर ) होता है जो व्यक्ति को उत्तेजित और प्रभावित करती हैं। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति के वातावरण से तात्पर्य उन सभी तरह की उत्तेजनाओं से होता है जो गर्भधारण से मृत्यु तक उसे प्रभावित करती हैं।
भौगोलिक वातावरण में अनेक उद्दीपन या चीजें हो सकती हैं, परन्तु व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक वातावरण में वह सभी सम्मिलित हो यह आवश्यक नहीं है। कोई भी उद्दीपन व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक वातावरण में तभी सम्मिलित मानी जाती है, जब वह व्यक्ति को प्रभावित करें। मनोविज्ञान में वातावरण से तात्पर्य मनोवैज्ञानिक वातावरण से होता है।
वातावरण की परिभाषा
वुडवर्थ के अनुसार- “वातावरण में वह सब बाह्य तत्व आ जाते हैं, जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आरम्भ करने के समय से प्रभावित किया है।"
रॉस के अनुसार- "पर्यावरण कोई बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि--
●वातावरण व्यक्ति को प्रभावित करने वाला तत्व है।
●इसमें बाह्य तत्व आते हैं।
●वातावरण किसी एक तत्व का नहीं अपितु एक समूह तत्व का नाम है।
●इसमें प्रत्येक वह वस्तु आती है जो व्यक्ति के विकास के लिए वांछित तत्व प्रदान करती है।
इस प्रकार वातावरण उन सभी उद्दीपकों को कहते हैं जो बालक पर गर्भ लेकर मृत्युपर्यन्त प्रभाव डालते रहते हैं।
वातावरण के प्रकार
◆आन्तरिक वातावरण-- आन्तरिक वातावरण का तात्पर्य जन्म से पूर्व माता के गर्भाशय के चारों ओर की परिस्थितियों से है। कोष, वंश सूत्र, जीन्स, जो वंशानुक्रम के अंग हैं गर्भाशय में जिस वातावरण में रहते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। वंश सूत्र व जीन्स को कोष रस (Cytoplasm) घेरे रहता है। इस वातावरण को अन्तर्कोषीय वातावरण कहते हैं। इस वातावरण से जीन्स प्रभावित होकर विशेष गुणों को प्रभावित करते हैं।
◆बाह्य वातावरण-- बाह्य वातावरण के अन्तर्गत वह सभी परिस्थितियाँ आती हैं जो सामूहिक या मिश्रित रूप से प्राणी को प्रभावित करती हैं। ये परिस्थितियाँ मानव को चारों ओर से घेरे रहती हैं, और उस पर विपरीत या अनुकूल दिशा में निरन्तर अपना प्रभाव डालती रहती हैं। इनको पुनः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं--
●भौतिक वातावरण-- इसके अन्तर्गत वह सभी प्राकृतिक वस्तुएँ आ जाती हैं जो व्यक्ति को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करती हैं। जैसे- पृथ्वी, चन्द्रमा, सूर्य, जलवायु, वृक्ष आदि।
●सामाजिक वातावरण-- इसके अंतर्गत मानवकृत वस्तुएँ आ जाती हैं। इसके अन्तर्गत रिवाज, प्रथाएँ, रूढ़ियाँ, रहन-सहन के ढंग आदि आते हैं।
वातावरण का महत्व
व्यक्ति के विकास में वातावरण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वातावरण को प्राणी के अस्तित्व से पृथक नहीं किया जा सकता है। कुछ विचारकों के अनुसार वातावरण व्यक्ति के विकास का मुख्य कारक है। व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि वंशक्रम स्वयं वातावरण द्वारा विकसित होता है।
जॉन लॉक के अनुसार, "जन्म के समय बालक का मस्तिष्क एक कोरी स्लेट के समान होता है जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि जन्म के बाद बालक जिस प्रकार के वातावरण में रहता है उस पर उसी का प्रभाव पड़ता है। वंशानुक्रम में नवीन व्यक्तित्व की रचना करने की जो क्षमता है वह वातावरण में भी है।
बालक पर वातावरण का प्रभाव
पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने वातावरण के सम्बन्ध में अनेक अध्ययन और परीक्षण किए हैं और सिद्ध किया है कि बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
●शारीरिक अन्तर पर प्रभाव- फ्रेंज बोन्स का मत है कि विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक अन्तर का कारण वंशानुक्रम न होकर वातावरण है।
●मानसिक विकास पर प्रभाव- गोर्डन का मत है कि उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है।
●व्यक्तित्व पर प्रभाव- कूले ने सिद्ध किया है कि कोई भी व्यक्ति उपर्युक्त वातावरण में रहकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके महान बन सकता है।
●अनाथ बच्चों पर प्रभाव- समाज कल्याण केन्द्रों में अनाथ और परावलम्बी बच्चे आते हैं। वुडवर्थ के अनुसार बच्चे समग्र रूप में माता-पिता से अच्छे ही सिद्ध होते हैं।
●जुड़वा बच्चों पर प्रभाव- स्टीफेन्स का विचार है कि पर्यावरण का बुद्धि पर साधारण प्रभाव होता है और उपलब्धि पर विशेष प्रभाव होता है।
●बालक पर बहुमुखी प्रभाव- वातावरण बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। इसकी पुष्टि एवेरॉन के जंगली बालक के उदाहरण से भी होती है। स्टीफेन्स ने कहा है कि एक बच्चा जितने अधिक समय तक उत्तम पर्यावरण में रहता है वह उतना ही अधिक इस पर्यावरण की ओर प्रवृत्त होता है।
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