कोशिका विज्ञान का इतिहास रॉबर्ट हुक द्वारा कोशिका की खोज के साथ प्रारम्भ होता है। रॉबर्ट हुक ने 1665 में सर्वप्रथम प्रिमिटिव सूक्ष्मदर्शी के द्वारा बोतल की कार्क के पतले टुकड़े में मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशिका नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशिका-भित्तियों के आधार पर कोशिका (cell) शब्द प्रयोग किया।
1674 एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने सरल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से जीवित कोशिका का सर्वप्रथम अध्ययन किया। उन्होंने जीवित कोशिका को दाँत की खुरचनी में देखा था।
1831 में रॉबर्ट ब्राउन ने कोशिका में 'केंद्रक एवं केंद्रिका' का पता लगाया।
मैथिआस श्लाइडेन (जर्मनी के वनस्पति विज्ञानी) ने 1838 ई. में तथा थियोडोर श्वान (जर्मनी के प्राणी विज्ञानी) ने 1839 ई. में 'कोशिका सिद्धान्त' (Cell theory) प्रतिपादित किया। उनके अनुसार--
●सभी जीवधारी, कोशिकाओं तथा उनके उत्पादों से मिलकर बने होते हैं।
●कोशिका जीवन की मूल इकाई है।
●कोशिकाएं पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।
●सभी कोशिकाएँ पूववर्ती जीवित कोशिकाओं से बनती हैं।
1858 में रुडॉल्फ विर्चो ने कोशिका की वंश परम्परा का नियम प्रस्तुत किया। जिसके अनुसार कोशिकाएँ सदा कोशिकाओं के विभाजन से ही पैदा होती हैं।
1953 में वाट्सन और क्रिक (Watson and Crick) ने डी. एन. ए. के 'डबल हेलिक्स संरचना' की पहली बार घोषणा की।
1981 में लिन मार्गुलिस (Lynn Margulis) ने कोशिका क्रम विकास में 'सिबियोस' (Symbiosis in Cell Evolution) पर शोधपत्र प्रस्तुत किया।
1888 में वाल्डेयर (Waldeyer) ने गुणसूत्र (Chromosome) का नामकरण किया।
1883 ई. में स्विम्पर ने पर्णहरित (Chloroplast) का नामकरण किया।
1892 में वीजमैन (Weissman) ने सोमेटोप्लाज्म (Somatoplasm) एवं जर्मप्लाज्म (Germplasm) के बीच अंतर स्पष्ट किया।
1955 में जी.इ पैलेड (G.E. Palade) ने राइबोसोम (Ribosome) की खोज की।
कोशिकारहित जीवधारी, अकोशिकीय कहलाते हैं। उदाहरण विषाणु। सूक्ष्मदर्शी के द्वारा, कोशिका की संरचना तथा कार्यिकी का अध्ययन कोशिका विज्ञान कहलाता है। कोशिका की संरचना, कार्य, वृद्धि, जैव रसायन तथा कार्यिकी का अध्ययन कोशिका जीव विज्ञान कहलाता है।
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