प्रत्येक जंतु अथवा वनस्पति का शरीर छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। प्राणी जितना ही बड़ा होता है, वह उतनी ही अधिक कोशिकाओं से बना होता है। भिन्न-भिन्न प्राणियों की कोशिकाओं में भी अंतर होता है। एक ही प्राणी के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं के आकार और गुणों में भी अन्तर होता हैं, जैसे किसी भी स्तनधारी के यकृत और गुर्दे की कोशिकाओं की संरचना एक समान नहीं होती है। इनके कार्य भी भिन्न हैं। वनस्पति कोशिकाओं के चारों ओर सेल्युलोस की एक भित्ति होती हैं, परंतु जंतु कोशिकाओं में ऐसी भित्ति नहीं मिलती।
कोशिका जीवद्रव्य के संगठित द्रव्यमान से बनी संरचनात्मक तथा जैविक प्रक्रिया की इकाई है। कोशिका की संरचना का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि कोशिका निम्नलिखित अवयवों से मिलकर बनी होती है--
जीवद्रव्य|Protoplasm
यह एक गाढ़ा तरल पदार्थ होता है, जो स्थान विशेष पर विशेष नामों द्वारा जाना जाता है। जैसे- द्रव्यकला (plasma membrane) तथा केंद्रक के मध्यवर्ती स्थान में पाए जाने वाले जीवद्रव्य को कोशिकाद्रव्य (cytoplasm), केंद्रक झिल्ली (nuclear membrane) के भीतर पाए जाने वाले जीवद्रव्य को केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं।
कोशिका का यह भाग अत्यंत चैतन्य और कोशिका की समस्त जैवीय प्रक्रियाओं का केंद्र होता है। इसे इसीलिए 'सजीव' (living) कहा जाता है। हक्सले ने 1863 में जीवद्रव्य को "जीवन का भौतिक आधार" कहा। प्रत्येक जीवधारी में एक विशिष्ट प्रकार का जीव द्रव्य होता है। मैक्स शुल्ज (Max Schultze 1861) ने 'जीवद्रव्य सिद्धान्त' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, "कोशिका सजीव पदार्थों (या जीवद्रव्य) का संचय है, जो एक बाह्य कला से घिरी होती है तथा इसमें एक केन्द्रक उपस्थित होता है।"
जीवद्रव्य हल्का, क्षारीय, चिपचिपा (viscous), लचीला (elastic) एवं कणिकामय (granular) विशिष्ट पदार्थ है, जो केवल सजीवों में पाया जाता है। जीवद्रव्य शब्द सर्वप्रथम पुरकिन्जे (1839) ने प्रस्तावित किया।
कोशिका कला|प्लाज्मा मेम्ब्रेन|प्लाज्मालेमा
कोशिका के चारों ओर से घेरे हुए जैली जैसे पदार्थ को कोशिका कला कहते हैं। अथवा प्लाज्मा मेम्ब्रेन किसी कोशिका को घेरने वाली वर्णात्मक पारगम्य (selectively permeable) पतली झिल्लीनुमा संरचना है। यह कोशिका को आकार प्रदान करती है तथा कोशिका का संगठन बनाये रखती है। नगेली तथा क्रैमर ने 1855 में इसकी खोज की थी। प्लाज्मालेमा का मुख्य कार्य O2 एवं CO2 का विसरण तथा कोशिका के अन्दर तथा बाहर पदार्थों के प्रवाह पर नियंत्रण करना है।
कोशिका भित्ति|Cell Wall
पादप तथा जीवाणु कोशिकाओं में कोशिका कला के ऊपर एक पारगम्य, कठोर, दृढ़ व निर्जीव भित्ति होती है, जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं। अधिकांशतया सभी कवकों, जीवाणुओं, नीली-हरी शैवालों तथा पादपों की कोशिकाएं कोशिका भित्ति से घिरी होती हैं।
जन्तु कोशिका में Cell Wall अनुपस्थिति होती है। सत्य जीवाणुओं तथा नीली-हरी शैवालों में कोशिका भित्ति, पेप्टाइडोग्लाइकॉन से मिलकर बनी होती है, जबकि कुछ कवकों में यह काइटिन तथा अधिकांश शैवालों व उच्च हरित पादपों में यह सेलुलोज से मिलकर बनी होती हैं।
कोशिका भित्ति जीवद्रव्य का स्रावित पदार्थ है। यह तीन परत की बनी होती है-/
1-मध्य पटलिका (Middle Lamella) पास-पास की कोशिकाओं को जोड़े रखने का कार्य करती हैं। यह मुख्यतया कैल्शियम पेक्टेट तथा कुछ मात्रा मैग्नीशियम पैक्टेट की बनी होती है।
2-प्राथमिक भित्ति (Primary Wall) सेलुलोज तथा पेक्टिन की बनी होती हैं। यह पतली, प्रत्यास्थ (elastic) तथा सबसे बाहर की मध्य पटलिका से लगी हुई परत होती है।
3-द्वितीयक भित्ति (Secondary Wall) प्राथमिक भित्ति पर कुछ पदार्थों (लिग्निन, क्यूटिन एवं सुबेरिन) के निक्षेपण से बनती है। यह अप्रत्यास्थ एवं मोटी होती है और पौधे को यांत्रिक बल प्रदान करती है।
कोशिकाद्रव्य|CYTOPLASM
यह प्लाज्मा कला तथा केन्द्रक के मध्य पाया जाने वाला जीवद्रव्य का एक भाग है। यह विभिन्न कोशिकांगों वाली उच्च संगठित संरचना है। यह जैली के समान तरल पदार्थ है। यह पोषक पदार्थो, उपापचयों तथा एन्जाइमों के अन्त: कोशिकीय वितरण में सहायक है। अवतरित (continuous) रूप से फैले कोशिकाद्रव्य के भाग को हायलोप्लाज्म कहते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के विकर, मण्ड कण, वसा बूँदें, प्रोटीन एवं विभिन्न लवण होते हैं।
रिक्तिकाएँ|Vacuoles
●कोशिका का आकार बढ़ने पर रिक्तिकाएँ उत्पन्न होती हैं।
●कोशिकाद्रव्य की वह कला, जो रिक्तिका को चारों ओर से घेरे रहती है, टोनोप्लास्ट या रिक्तिका कला कहलाती है।
●रिक्तिका के भीतर का द्रव्य कोशिका रस कहलाता है। इसमें विभिन्न खनिज लवण, जैसे- नाइट्रेट, क्लोराइड, सल्फेट तथा फॉस्फेट उपस्थित होते हैं।
●रिक्तिका में उपस्थित कोशिका रस कोशिका को स्फीति (turgor) प्रदान करता है।
●इसमें उपस्थित एन्थोसायनिन पुष्पों व फलों को नीला, लाल रंग प्रदान करता है।
लवक|Plastids
लवक अधिकतर पौधों में ही पाए जाते हैं। ये एक प्रकार के रंजक कण (pigment granules) हैं, जो जीवद्रव्य (protoplasm) में यत्र तत्र बिखरे रहते हैं। हेकल ने इन्हें सर्वप्रथम प्लास्टिडस नाम दिया। हरितलवक (chloroplast) का हरा रंग क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण होता है। हरितलवक की खोज सैक ने की था शिम्पर ने chloroplast नाम दिया।
माइटोकांड्रिया|Mitochondria
ये कणिकाओं (granules) या शलाकाओं (rods) के रूप में कोशिकाद्रव्य (cytoplasm ल) में स्थित होते हैं। इनकी संख्या विभिन्न जंतुओं में पाँच लाख तक हो सकती है। इनका आकार 1/2 माइक्रॉन से लेकर 2 माइक्रॉन के बीच होता है। Rare cases में इनकी लंबाई 40 माइक्रॉन तक हो सकती है। इनके अनेक कार्य बतलाए गए हैं, जो इनकी आकृति पर निर्भर करते हैं, इनका मुख्य कार्य कोशिकीय श्वसन (cellular respiration) है। इन्हें कोशिका का 'पावर प्लांट' (power plant) कहा जाता है। क्योंकि इनसे आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति होती रहती है।
अल्टमान (1890) ने इन्हें काणिका के रूप में देखा तथा इसे बायोब्लास्ट कहा। सी बेन्डा (1897) ने इन्हें सर्वप्रथम माइटोकॉण्ड्रिया नाम दिया। पादप कोशिका में जन्तु कोशिका की अपेक्षा माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या कम होती है। माइटोकॉण्ड्रिया को कॉण्ड्रियोसोम (chondriosome) या प्लास्टोकॉण्ड्रिया (plastochondria) या कॉण्ड्रियोमाइट्स (chondriomites) भी कहते हैं।
एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम|Endoplasmic Reticulum
यह जालिका कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में vesicles और tubules के रूप में फैली रहती है। इसकी स्थिति सामान्यतः केंद्रकीय झिल्ली (nuclear membrane) तथा द्रव्यकला (plasma membrane) के बीच होती है, किंतु यह अक्सर संपूर्ण कोशिका में फैली रहती है। यह जालिका दो प्रकार की होती है- चिकनी सतह वाली (smooth surfaced) और खुरदुरी सतहवाली (rough surfaced)। इसकी सतह खुरदुरी इसलिए होती है कि इस पर राइबोसोम (ribosomes) के कण बिखरे रहते हैं। इसके अनके कार्य होते हैं, जैसे- यांत्रिक आधारण (mechanical support) द्रव्यों का प्रत्यावर्तन (exchange of materials), अंत: कोशिकीय अभिगमन (intracellular transport), प्रोटोन संश्लेषण (protein synthesis) इत्यादि।
राइबोसोम (ribosomes)
सूक्ष्म गुलिकाओं के रूप में प्राप्त इन संरचनाओं को केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रॉस्कोप के द्वारा ही देखा जा सकता है। इनकी रचना 50% प्रोटीन तथा 50 % आर. एन. ए. द्वारा हुई होती है। ये विशेषकर अंतर्प्रद्रव्य जालिका के ऊपर पाए जाते हैं। इनमें प्रोटीनों का संश्लेषण होता है।
सेंट्रोसोम|centrosomes
ये केंद्रक के समीप पाए जाते हैं। इनके एक विशेष भाग को सेंट्रोस्फीयर (centrosphere) कहते हैं, जिसके भीतर सेंट्रिओलों (centrioles) का एक जोड़ा पाया जाता है। कोशिका विभाजन के समय ये विभाजक कोशिका के ध्रुव (pole) का निर्धारण और कुछ कोशिकाओं में कशाभिका (flagella) जैसी संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं।
गॉल्जीकाय|Golgi Bodies
इसकी खोज 1898 ई. में कैमिलो गॉल्जी ने की। गॉल्जीकाय को लाइपोकॉन्ड्रिया, गॉल्जीसोम या कोशिका का ट्रैफिक पुलिस या इडियोसोम आदि नाम से भी जानते हैं। पादप कोशिका में इन्हें डिक्टियोसोम कहा जाता है।
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