मुगल साम्राज्य के पतन के कारणों में दुर्बल एवं अयोग्य उत्तरकालीन मुगल शासक, विदेशी आक्रमण, राजदरबार में गुटबंधियाँ, सरदारों का नैतिक पतन, मराठा शक्ति का उदय, सेना की दुर्बलता, राष्ट्रीयता की भावना का अभाव, यूरोपीय कम्पनियों का आगमन आदि कारण प्रमुख थे।
बाबर द्वारा स्थापित मुगल साम्राज्य औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात निर्बल होता चला गया। औरंगजेब का राज्यकाल मुगलों का सांध्य काल था।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद आने वाले 52 वर्षों में 8 सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर आरूढ़ हुए।
मुगल साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी कारण
मुगल साम्राज्य के पतन के लिए एक नहीं बल्कि अनेक कारण उत्तरदायी थे, जिन्होंने मिलकर इस शक्तिशाली साम्राज्य का पतन कर दिया। जिनमें कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित हैं
1-औरंगजेब की नीतियां
इस विशाल साम्राज्य के पतन में औरंगजेब का व्यक्तित्व एवं कार्य नीतियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यद्यपि मुगल साम्राज्य का अधिकतम विस्तार औरंगजेब के काल में ही हुआ। किन्तु यह एक पानी के बुलबुले की तरह था। इस पतन में औरंगजेब की धार्मिक नीति, दक्षिण नीति एवं राजपूत नीति का महत्वपूर्ण स्थान था।
2-अयोग्य उत्तराधिकारी
मुगल साम्राज्य एकतांत्रिक था और उसमें सम्राट का व्यक्तिव विशेष महत्व रखता था। इतना विशाल साम्राज्य एक शक्तिशाली सम्राट के अधीन ठीक चल सकता था।
दुर्भाग्यवश औरंगजेब के बाद दुर्बल सम्राटों का तांता लग गया। जैसे-बहादुरशाह (शाहे बेखबर), जहाँदारशाह (लम्पट मूर्ख), फर्रुखसीयर (घृणित कायर), मुहम्मद शाह (रंगीला)।
ये अयोग्य शासक बाह्म एवं आंतरिक परिस्थितियों को नहीं सम्भाल सके। अतः मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर होता गया।
3-मुगल अभिजात वर्ग का पतन
सम्राटों के देखा-देखी अभिजात वर्ग ने भी परिश्रमी और कठोर सैनिक जीवन छोड़ दिया। वे वीर योद्धाओं के स्थान पर रसिक प्रियतम बन गए।
बैरम खां, मुजफ्फर खां, अब्दुर्रहीम खानखाना, महावत खां, आसफ खां जैसे वीर अब साम्राज्य की सेवा के लिए प्राप्त नहीं होते थे। और यदि कोई वीर प्राप्त भी हुआ तो वह वफादार सिद्ध नहीं हुआ।
उत्तरकालीन अभिजात वर्ग बेईमानी, चापलूसी, झूट, मक्कारी आदि में एक दूसरे से बढ़कर था, उन्होंने मुगल बादशाहों की सेवा नहीं की बल्कि अपने हित की पूर्ति का साधन बनाया।
Dr. R C मजूमदार ने लिखा है कि "अठारहवीं सदी में कुलीनों के नैतिक पतन का मुगल साम्राज्य के शीघ्र पतन में बहुत बड़ा योगदान है"।
4-दरबार में गुटबन्दी
मुगल साम्राज्य के पतन में मुगल दरबार की गुटबन्दी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उत्तरकालीन मुगल दरबार में चार दल तूरानी, अफगानी, ईरानी और हिन्दुस्तानी दल प्रमुख थे।
तूरानी दल में वे लोग थे जो ट्रान्स-ऑक्सियान और मध्य एशिया के भागों से आये थे इस दल के प्रमुख नेता मुहम्मद अमीन खां, निजाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खां), कमरुद्दीन खां, जकारियाँ खां आदि थे।
अफगानी दल में फारस और खुरासन से आये अफगानी लोग सम्मिलित थे। अली मुहम्मद खां तथा मुहम्मद खां बंगश इसके प्रमुख थे।
ईरानी दल के सदस्य शिया थे। इस दल के प्रमुख नेता अमीर खां, सआदत खां एवं जुल्फिकार खां इत्यादि थे।
हिन्दुस्तानी दल जिसे हिन्दू-मुस्लिम दल भी कहा जाता है, में हिन्दुस्तानी हिन्दू और मुस्लिम सम्मिलित थे। इस दल को राजपूतों, जाटों और जमीदारों का समर्थन भी प्राप्त था। इसके प्रमुख सैयद बन्धु थे।
ये दल आपस में छोटे-छोटे युद्ध भी लड़ते रहते थे। यहाँ तक कि ये दल विदेशी आक्रमण के समय भी एक नहीं होते थे तथा विदेशी आक्रमणकारियों से मिलकर षड्यंत्र रचते थे।
इससे बादशाह और साम्राज्य की प्रतिष्ठा समाप्त हो गयी और अंततोगत्वा दिल्ली में विदेशी शक्तियों का प्रभाव स्थापित हो गया।
5-उत्तराधिकार का त्रुटि पूर्ण नियम
उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम न था। औरंगजेब के बाद यह स्थिति और बिगड़ गई। 1718 से 1719 के बीच एक ही वर्ष में करीब 4 बादशाहों का निर्ममतापूर्वक कत्ल कर दिया गया।
6-मराठा शक्ति का उत्थान
सम्भवतः सबसे महत्वपूर्ण बाहरी कारण जो इस साम्राज्य को ले डूबा, वह था मराठा शक्ति का उदय। पेशवाओं ने मराठा शक्ति को समेकित किया और प्रादेशिक शक्तियों द्वारा मुगलों पर प्रहार किया।
मराठों ने "हिन्दू पादशाही" का जो आदर्श सामने रखा वह मुस्लिम राज्य के क्षय द्वारा ही पूरा हो सकता था।
7-सैनिक दुर्बलता
मुगल सैन्य व्यवस्था में कुछ जन्मजात कमियां थी। मुगल सम्राटों के पास अपनी कोई सेना नहीं होती थी। वे सैनिक आवश्यकता के लिए मनसबदारों पर निर्भर रहते थे जो अवसर मिलने पर सम्राटों को धोखा देने में नहीं चूकते थे।
सैनिकों को मनसबदार ही वेतन देते थे, उन्हें शाही राजकोष से सीधे वेतन नहीं मिलता था। अतः सैनिक मनसबदार के प्रति निष्ठा रखते थे। 18वीं शताब्दी में मुगल सेना की सबसे बड़ी दुर्बलता उसके गठन की।
8-आर्थिक कमजोरी
औरंगजेब की दक्कन नीति के कारण हुए निरन्तर युद्धों ने मुगल साम्राज्य को आन्तरिक रूप से खोखला कर दिया। यह आर्थिक कमजोरी भी इस साम्राज्य के पतन का कारण बनी।
9-विदेशी आक्रमण
1739 में नादिरशाह के आक्रमण ने मुगल राज्य को महान आघात पहुँचाया, कोष रिक्त हो गया और सैनिक दुर्बलता स्पष्ट हो गई। जो लोग मुगल नाम से भय खाते थे। अब वे सिर उठाकर मुगलसत्ता की खुलकर अवहेलना करने लगे।
10-यूरोपीय कंपनियां जैसे-डेन, डच, फ्रांसीसी आदि कम्पनियों का भारत में प्रवेश हो चुका था। अंततः अंग्रेजों ने भारत पर सर्वोच्चता स्थापित करते हुए। मुगल सम्राट को अन्तिम रूप से भारत के बाहर खदेड़ दिया।
इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारणों ने मिलकर मुगल साम्राज्य का पूर्ण रूप से पतन कर दिया।
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