शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था। इस वंश की स्थापना 185 ईसा पूर्व हुई। पुष्यमित्र शुंग मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या कर मगध की राजगद्दी पर बैठा।
शुंग उज्जैन प्रदेश के निवासी थे तथा इनके पूर्वज मौर्यो की सेवा में थे। पुष्यमित्र मौर्यो की सेना का सेनापति था। शुंग वंश के शासकों ने लगभग 112 वर्ष तक राज्य किया।
इस वंश का अन्तिम शासक देवभूति था इसकी हत्या 73 ईसा पूर्व में इसके मंत्री वसुदेव ने कर दी तथा एक नये राजवंश कण्व वंश की स्थापना की। इस प्रकार करीब 112 वर्षों तक शासन करने के उपरान्त इस वंश का पतन हो गया।
शुंग शासकों ने विदिशा को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया। पाटलिपुत्र, अयोध्या एवं जालंधर इस समय के महत्वपूर्ण नगर थे।
पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल में यवनों से दो बार युद्ध लड़ा। प्रथम युद्ध अत्यन्त भीषण हुआ था। इस युद्ध में यवनों की सेना का नेतृत्व डेमेट्रियस ने किया था। इस युद्ध में पुष्यमित्र शुंग विजयी रहा। इस युद्ध का वर्णन गार्गी संहिता में मिलता है।
अयोध्या से प्राप्त शिलालेख से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ तथा एक राजसूय यज्ञ करवाया था। मालविकाग्निमित्रम में इन यज्ञों का विवरण मिलता है। महर्षि पतंजलि इन यज्ञों के पुरोहित थे।
पुष्यमित्र शुंग को मगध में ब्राह्मण साम्राज्य स्थापित करने एवं ब्राह्मण धर्म के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है। इसने अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान को पुनः आरम्भ करवाया।
इसी के शासनकाल में पतंजलि से पाणिनि कृत अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा तथा मनु ने मनु स्मृति लिखी।
बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विरोधी बताया गया है। पुष्यमित्र शुंग बौद्ध विरोधी था या नहीं इस बात को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं।
जैसे-विंसेंट, स्मिथ, N. N. घोष, मजूमदार आदि विद्वान पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का प्रबल विरोधी मानते हैं। इनके अनुसार पुष्यमित्र शुंग एक विशाल सेना लेकर स्तूपों को नष्ट करता हुआ, विहारों को जलाता हुआ तथा भिक्षुओं को मौत के घाट उतारता हुआ साकल पहुंचा। इसने अशोक द्वारा बनवाये गये 84 हजार स्तूपों को नष्ट कर दिया।
किन्तु कुछ विद्वान जैसे-H C चौधरी, R S त्रिपाठी, राजबली पाण्डेय आदि इस बात को सत्य नहीं मानते क्योंकि पुष्यमित्र शुंग के समय साँची में दो बौद्ध स्तूपों का निर्माण हुआ। तथा सतना के समीप भरहुत में एक बौद्ध स्तूप का निर्माण पुष्यमित्र शुंग ने करवाया। अतः यदि शुंग बौद्ध विरोधी होते तो उनके समय में इतने अद्भुत स्मारक न बनते।
कालिदास रचित मालविकाग्निमित्रम में भी यवन-शुंग युद्ध का विवरण मिलता है। इसमें पुष्यमित्र शुंग के पौत्र वसुमित्र तथा यवन शासक मिनांडर के बीच युद्ध का वर्णन है। यह युद्ध सिन्धु नदी के तट पर लड़ा गया। इस युद्ध में मिनांडर की पराजय हुई।
मालविकाग्निमित्रम में ही विदर्भ के साथ युद्ध का वर्णन मिलता है। यह युद्ध पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र तथा विदर्भ के गवर्नर यज्ञसेन के मध्य हुआ जिसमें यज्ञसेन की पराजय हुई।
यज्ञसेन अन्तिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ के सचिव का साला था। उसे शुंगों का स्वाभाविक शत्रु बताया गया है। इस युद्ध में शुंग सेना का सेनापति वीरसेन था।
शुंग कालीन कला
साहित्य और कला के क्षेत्र में शुंगकाल को गुप्त वंश के स्वर्णकाल का पूर्वगामी काल माना जाता है। स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी शुंग काल का महत्वपूर्ण स्थान है।
शुंग काल में बौद्ध स्तूपों में लगे लकड़ी के जंगलों (खिडकियां) को पत्थर के जंगलों से बदला गया। भरहुत स्तूप में लगे जंगले शुंग काल की सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य कला का प्रमाण हैं।
शुंग काल के कुछ अन्य स्थापत्य महत्वपूर्ण स्मारक भज नामक स्थान पर स्थित एक विहार, बड़ा चैत्य एवं चट्टान को काटकर बनाये स्तूप एवं अजंता में चैत्यकक्ष संख्या 9, अमरावती में निर्मित स्तूप हैं।
शुंगों के समय में ही स्थापित बेसनगर गरुड़स्तम्भ तत्कालीन पहला प्रस्तर स्तम्भ था जो ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित था।
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