अहमदशाह अब्दाली एक अच्छे कुल का अफगान पदाधिकारी था। नादिरशाह उसका बहुत सम्मान करता था। 1747 ई. में नादिरशाह की हत्या कर दिये जाने पर अहमदशाह अब्दाली कन्धार का स्वतन्त्र शासक बन बैठा।
अहमदशाह अब्दाली ने अपने सिक्के भी जारी किए। शीघ्र ही उसने काबुल को भी जीत लिया और आधुनिक अफगान साम्राज्य की नींव रखी। वह स्वयं को नादिरशाह का वैध उत्तराधिकारी मानता था। अतः उसने पंजाब के सूबों पर अपना दावा किया।
पंजाब के सूबेदार "शाहनवाज खाँ" ने अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया। उसने भारत पर कुल सात आक्रमण किये। इन आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य भारत से धन लूटना था।
अब्दाली को "दुर्रे दुर्रानी" अर्थात "युग का मोती" उपमा से नवाजा गया। पानीपत का तृतीय युद्ध 10 जनवरी 1761 में अहमदशाह अब्दाली तथा मराठों के बीच हुआ था। जिसमें मराठे बुरी तरह पराजित हुए।
अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर "सात आक्रमण" किये। 1748 में उसने 50 हजार की सेना एकत्रित कर पंजाब पर प्रथम आक्रमण किया जो असफल रहा। किन्तु वह सुगमता से हार मानने वालों में से नहीं था। अतः उसने 1749 में पंजाब पर दूसरा आक्रमण किया और पंजाब के गवर्नर मुईनुमुल्क को परास्त किया।
गवर्नर ने उसे 14 हजार रुपया वार्षिक कर देने का वचन दिया। अतः वह वापस लौट गया। नियमित रूप से कर न मिलने के कारण 1752 में उसने तीसरा आक्रमण किया।
मुगल सम्राट ने नादिरशाह की तरह पुनः लूटे जाने के डर से सिन्ध तथा पंजाब के प्रदेश उसे दे दिये। नवम्बर 1753 में मुईनुमुल्क की मृत्यु हो गई। इस रिक्त पद पर मुगल वजीर इमादुलमुल्क ने अदीना बेग खाँ को पंजाब का सूबेदार (गवर्नर) नियुक्त कर दिया।
अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया। अतः उसने नवम्बर 1756 में भारत पर चौथा आक्रमण किया और जनवरी 1757 में दिल्ली में प्रवेश किया तथा मथुरा और आगरा में लूटमार की। लौटते समय उसने आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वजीर एवं रुहेला सरदार नजीबुद्दौला में मुगल साम्राज्य का मीरबख्सी नियुक्त किया।
उसके अफगानिस्तान जाने के बाद मार्च 1758 में पेशवा रघुनाथ राव दिल्ली पहुँचा और मीरबख्सी नजीबुद्दौला को दिल्ली से निकाल दिया। फिर पंजाब को लूटा और अन्त में अदीना बेग खाँ को अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर लौट गया।
मराठों की इस उद्दण्डता का बदला लेने के लिए अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पाँचवां आक्रमण किया जिसके फलस्वरूप 10 जनवरी 1761 में पानीपत की तृतीय युद्ध मराठों और अफगानों के मध्य हुआ। जिसमें मराठों की पराजय हुई।
अब्दाली ने 20 मार्च 1761 में दिल्ली छोड़ने से पूर्व नजीबुद्दौला को पुनः मीरबख्सी बनाया। अहमदशाह अब्दाली ने छठवीं बार आक्रमण सिक्खों को सजा देने के लिए किया किन्तु वह असफल रहा। मार्च 1767 में उसने सातवीं और अन्तिम बार आक्रमण किया। किन्तु वह सिक्खों को समाप्त करने में असफल रहा।
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