प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को हुआ था। यह युद्ध अंग्रेजों तथा नवाब सिराजुद्दौला के बीच लड़ा गया। अंग्रेजों की ओर से इस युद्ध का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ने किया था। जबकि नवाब की ओर से सेना का नेतृत्व विश्वासघाती मीर जाफर कर रहा था।
प्लासी युद्ध का प्रारम्भ
दोनों सेनाओं का आमना-सामना मुर्शिदाबाद से 22 किमी. दूर नदिया जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित प्लासी नामक स्थान पर हुआ।
नवाब की सेना की अग्रगामी टुकड़ी जिसका नेतृत्व मीर मदान और मोहनलाल जैसे देश भक्त कर रहे थे। अंग्रेज सेना को वृक्षों के पीछे छुपने पर मजबूर कर दिया। किन्तु अचानक एक गोली लगने से मीर मदान मारा गया।
सिराजुद्दौला ने अपने अधिकारियों के साथ मन्त्रणा की। मीर जाफर ने उसे युद्ध क्षेत्र से चले जाने की कहा। सिराजुद्दौला सेना का नेतृत्व मीर जाफर तथा राय दुर्लभ जैसे विश्वासघातियों के हाथ में देकर मुर्शिदाबाद लौट गया।
मीर जाफर ने क्लाइव के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की। फ्रांसीसी सेना कुछ देर तक लड़ी किन्तु पराजित हो गयी। इस प्रकार इस युद्ध में अंग्रेजों को विजय प्राप्त हुई। मीर जाफर ने क्लाइव को विजय की बधाई दी।
मीर जाफर 25 जून को मुर्शिदाबाद लौट गया तथा स्वयं को नवाब घोषित कर लिया। सिराजुद्दौला को बन्दी बना लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गई।
नवाब बनने के बाद मीर जाफर ने सन्धि के अनुसार, अंग्रेजों को 24 परगनों की जमीदारी प्रदान की, ढाका तथा कासिमबाजार में दुर्ग निर्माण का अधिकार दिया, कलकत्ता को पूर्णतया अंग्रेजों के आधीन कर दिया, क्लाइव को 234000 पाउंड की निजी भेंट दी।
अंग्रेज सैनिकों को 50 लाख रुपया पुरस्कार स्वरूप दिये। इसके अतिरिक्त बंगाल में सभी प्रकार की व्यापारिक सुविधाएं अंग्रेजों को देने का वचन दिया।
प्लासी युद्ध के कारण
अलीवर्दी खाँ के मरने के बाद उसका पौत्र मिर्जा मोहम्मद सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। पूर्णिया का नवाब शौकतजंग तथा ढाका की गवर्नर घसीटी बेगम दोनों ही सिराजुद्दौला के प्रबल विरोधी थे।
अंग्रेजों ने इस स्थिति का लाभ उठाना चाहा। इस प्रकार अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच संघर्ष के निम्नलिखित कारण बनते चले गये।
1-अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विरोधियों राजवल्लभ तथा उसके पुत्र कृष्णवल्लभ को कलकत्ता में शरण थी। जब सिराजुद्दौला ने इन्हें वापस मांगा तो अंग्रेजों ने स्पष्ट इंकार कर दिया। इसे नवाब ने अपना अपमान समझा।
2-मुगल सम्राट फर्रुखसीयर ने 1717 में अंग्रेजों को बिना चुंगी दिये व्यापार की सुविधा प्रदान कर दी थी। अंग्रेजों ने इस सुविधा का दुरुपयोग करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने भारतीय व्यापारियों को अपने "फ्री पास" देकर उनका भी चुंगीकर बचाना प्रारम्भ कर दिया। इसके एवज में वह कुछ धन भारतीय व्यापारियों से ले लेते थे। इससे राज्य की आय को बहुत हानि होती थी। सिराजुद्दौला ने इसका विरोध किया।
3-आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध की आशंका के चलते अंग्रेज तथा फ्रांसीसी दोनों सिराजुद्दौला की अनुमति के बिना अपने दुर्गों का निर्माण कर रहे थे। इस बात का समाचार जब सिराजुद्दौला को मिला तो उसने ऐसा न करने का आदेश दिया।
फ्रांसीसियों ने आदेश का पालन किया किन्तु अंग्रेजों ने आदेश का पालन नहीं किया। अतः युद्ध होना अनिवार्य हो गया। फलस्वरूप नवाब ने 4 जून 1756 को कासिम बाजार पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने आत्म समर्पण कर दिया।
इसके पश्चात 15 जून 1756 को नवाब ने कलकत्ता पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम घेर लिया। नवाब की विशाल सेना देख गवर्नर रॉजर ड्रेक तथा सेनापति मिंचन फुल्टा एवं अन्य प्रमुख लोग पीछे के द्वार से भाग गये।
हालवैल के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने नवाब की सेना का सामना किया किन्तु अंग्रेज पराजित हुए। 20 जून 1756 को नवाब से फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया।
नवाब ने कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर रख दिया। तथा अलीनगर (कलकत्ता) को मानिक चन्द के हाथ देकर स्वयं मुर्शिदाबाद लौट गया।
4-ब्लैक होल घटना
उपर्युक्त युद्ध में बन्दी बने अंग्रेजों जिसमें बच्चे तथा महिलाएं भी शामिल थी, लगभग 146 बन्दियों को 18 फीट लम्बे और 14 फीट 10 इंच चौड़े एक कक्ष में बंद कर दिया गया। कहा जाता है कि 20 जून 1756 की रात ये बन्द किये गए अगली सुबह के 23 लोग ही बच पाये।
अंग्रेजों ने इस घटना का जिम्मेदार सिराजुद्दौला को माना। इस दुर्घटना को कालकोठरी दुर्घटना के नाम से भी जाना जाता है। किन्तु इतिहासकार इस घटना को संदिग्ध मानते हैं।
5-अलीनगर की सन्धि
कलकत्ता के पतन का समाचार जब मद्रास पहुँचा तो अंग्रेजों ने एक सेना जो उन्होंने फ्रांसीसियों के विरुद्ध गठित की थी, क्लाइव के नेतृत्व में कलकत्ता भेजी। इस सेना में नौ सेना का नेतृत्व एडमिरल वाटसन तथा पैदल सेना का नेतृत्व क्लाइव कर रहा था।
यह सेना 16 अक्टूबर की मद्रास से चली तथा 14 दिसम्बर को बंगाल पहुँची। नवाब के प्रभारी अधिकारी मानिक चन्द ने घुस लेकर कलकत्ता अंग्रेजों को सौंप दिया। इस प्रकार 2 जनवरी 1757 को कलकत्ता पुनः अंग्रेजों के अधिकार में आ गया।
कलकत्ता पर अधिकार करने के बाद क्लाइव ने नवाब के साथ युद्ध की घोषणा कर दी। नवाब सिराजुद्दौला ने युद्ध के स्थान पर सन्धि करना उचित समझा। इस प्रकार क्लाइव और नवाब के बीच 9 फरवरी 1757 को "अलीनगर की सन्धि" हुई।
इस सन्धि से अंग्रेजों के व्यापार करने के पुराने अधिकार वापस मिल गये। कलकत्ता में अंग्रेजों को किलेबन्दी करने की अनुमति मिल गयी तथा अंग्रजों को अपने सिक्के ढालने का भी अधिकार दिया गया। इसके अतिरिक्त नवाब ने क्षतिपूर्ति के लिए 3 लाख रुपये अंग्रेजों को दिये।
क्लाइव अब भी संतुष्ट नहीं हुआ उसने नवाब के विश्वासघाती सहयोगियों से मिलकर नवाब को हटाना चाहा।
6-अंग्रेजों का चन्द्रनगर पर अधिकार
इसी क्रम में क्लाइव 23 मार्च 1757 को चन्द्रनगर बस्ती पर आक्रमण कर फ्रांसीसियों से छीन लिया। इस पर नवाब बहुत क्रोधित हुआ। इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारण की परिणति प्लासी के युद्ध के रूप में हुई।
प्लासी के युद्ध का महत्व
प्लासी के युद्ध का सामरिक महत्व कुछ नहीं था। क्योंकि यह युद्ध धोखे और छल-प्रपंच से जीता गया था। किन्तु इस युद्ध ने बंगाल की राजनीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित कर दिया।
आर्थिक रूप से भी अंग्रेजों ने बंगाल का शोषण प्रारम्भ कर दिया। इस युद्ध से प्राप्त धन की सहायता से अंग्रेज दक्षिण में फ्रांसीसियों पर विजय प्राप्त कर सके।
इस युद्ध के कारण कम्पनी का भी कायाकल्प हो गया। क्योंकि अब बंगाल के व्यापार पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का एकाधिकार ही गया।
प्लासी के युद्ध ने बंगाल में अंग्रेजी शासन की प्रक्रिया आरम्भ कर दी और बक्सर के युद्ध ने इस प्रक्रिया को स्थायी बना दिया। जिससे फिर बंगाल 1947 तक स्वतन्त्र न हो सका।
waw... supppppppbbbbbbbbbbbb
ReplyDeleteNawab Sirajudaula ke 2 sirajudaula and raburt klaio
ReplyDeleteBejor
ReplyDeleteNavab sirajuddaula or angrej ki madhy
ReplyDeleteAlinagar ki sandhi navab aur serajochola ke madhya hui thi
ReplyDeleteBahut kam details h or jayada clear bhi nhi but its ok casual note ke liye thik h.
ReplyDeleteNotes ke liye itna thik hai.👍
ReplyDeletePr or isko or detail me hona tha.
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