भारत में अंग्रेजों का आगमन ईस्ट इंडिया कम्पनी के गठन के बाद 24 अगस्त 1608 ई. में हुआ। जब कैप्टन विलियम हॉकिन्स "हेक्टर या रेडड्रेगन" नामक व्यापारिक जहाज से सूरत पहुँचा।
भारत आने वाला प्रथम अंग्रेज "जॉन मिल्डेन हॉल" था। जो 1597 ई. में स्थल मार्ग से भारत आया था।
सूरत पहुँच कर टॉमस एडवर्थ के अधीन अंग्रेजों ने वहाँ एक व्यापारिक कोठी खोली। इस कोठी को राजकीय मान्यता प्राप्त नहीं थी।
राजकीय कृपा प्राप्त करने के लिए विलियम हॉकिन्स इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में जहाँगीर के दरबार में 1609 ई. में पहुँचा।
विलियम हॉकिन्स जहाँगीर के दरबार में जाने वाला प्रथम अंग्रेज था। वह तुर्की व फारसी भाषाएँ जानता था।
हॉकिन्स का मित्रवत स्वागत किया गया तथा उसे 400 का मनसब, एक जागीर व "अंग्रेजी खान" की उपाधि से समानित किया गया।
हॉकिन्स ने जहाँगीर से सूरत में बसने की इजाजत मांगी। परन्तु पुर्तगालियों के विरोध के कारण इजाजत नहीं मिल सकी।
1611 ई. में कैप्टन मिडल्टन सूरत के समीप स्थित स्वाल्ली पहुँचा और वहाँ मुगल गवर्नर से स्वाल्ली में व्यापार करने की अनुमति पाने में सफल हो गया।
1612 ई. में कैप्टन बेस्ट ने सूरत के बन्दरगाह को पुर्तगालियों से जीत लिया जिससे पुर्तगाली एकाधिकार की निरन्तरता भंग हो गयी।
1613 ई. में जहाँगीर ने एक आज्ञापत्र द्वारा अंग्रेजों को सूरत में स्थाई रूप से कोठी स्थापित करने की अनुमति दे दी।
1611 ई. में हॉकिन्स की वापसी के पश्चात 1615 ई. में जेम्स प्रथम ने सर टॉमस रो को अपना राजदूत बनाकर जहाँगीर के दरबार में भेजा।
टॉमस रो का एकमात्र उद्देश्य था, व्यापारिक सन्धि करना था। टॉमस रो 1615 ई. में पादरी एडवर्ड टेरी के साथ जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ। अपनी व्यापारिक सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए उसने नूरजहाँ, आसफ खाँ और खुर्रम को बहुमूल्य उपहार देकर अपने पक्ष में कर लिया।
1618 ई. में बादशाह जहाँगीर ने एक फरमान जारी कर अंग्रेजों को कुछ व्यापारिक सुविधाएं प्रदान की तथा पुर्तगालियों के विरुद्ध सैनिक सहायता का भी आश्वासन दिया।
1619 ई. में रो वापस इंग्लैंड चला गया। इसके बाद अंग्रेजों ने भड़ौच, अहमदाबाद, आगरा, अजमेर में व्यापारिक कोठियां स्थापित कर लीं। ये सभी कोठियां सूरत की कोठी के अध्यक्ष के नियन्त्रण में रखी गयीं।
अंग्रेजों द्वारा भारत में कोठियों की स्थापना
भारत में आने के बाद अंग्रेजों का प्रथम लक्ष्य भारत में व्यापारिक कोठियां खोलना था। अतः उन्होंने 1611 ई. में दक्षिण पूर्वी समुद्र तट पर मूसलीपट्टम में सर्वप्रथम अस्थाई व्यापारिक कोठी स्थापित की।
1613 में सूरत में अंग्रेजों ने प्रथम स्थायी व्यापारिक कोठी खोली। यहीं से अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत में व्यापारिक विस्तार प्रारम्भ किया।
1639 ई. में फ्रांसिस डे ने चन्द्रगिरि के राजा से कुछ बस्तियों को पट्टे पर लेकर एक कारखाने की स्थापना की, साथ ही इस कारखाने की किलेबन्दी कर उसे "फोर्ट सेंट जार्ज" नाम दिया। तथा इस जगह को मद्रास नाम दिया गया। अतः मद्रास नगर का संस्थापक फ्रांसिस डे को माना जाता है।
पूर्वी भारत में अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना 1633 में उड़ीसा में खोला। 1651 ई. में बंगाल में व्यापारिक विस्तार के उद्देश्य से हुगली में एक कोठी खोली गई।
हुगली के बाद कासिम बाजार, पटना तथा राजमहल में अंग्रेजों ने व्यापारिक कोठियां स्थापित की।
1661 में इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय का विवाह पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन से होने के कारण चार्ल्स को बम्बई उपहार स्वरूप प्राप्त हुआ जिसे उसने 1668 ई. में 10 पौंड वार्षिक किराये पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया।
इसके बाद कम्पनी के गवर्नर गैरोल्ड आंगियर (1669 से 1677) ने आधुनिक बम्बई शहर की नींव रखी। 1687 में कम्पनी का मुख्यालय सूरत से बम्बई लाया गया।
भारतीय राजनीति में अंग्रेजों का हस्तक्षेप
1661 ई. में चार्ल्स द्वितीय ने कम्पनी को एक नया आज्ञा पत्र प्रदान किया जिसके आधार पर कम्पनी को मुद्रा ढालने, किला बनाने, न्याय करने व गैर-ईसाई राज्यों के साथ सन्धि विग्रह करने का अधिकार मिल गया।
धीरे-धीरे अंग्रेजों ने मुगल राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया। 1686 ई. में अंग्रेजों ने हुगली में लूटपाट की जिसके कारण अंग्रेजों और औरंगजेब के बीच प्रथम संघर्ष हुआ।
इसके बाद 1688 में अंग्रेज गवर्नर सर जॉन चाइल्ड ने पश्चिमी तट के मुगल बन्दरगाहों पर घेरा डाला और हज यात्रियों को लूटा।
औरंगजेब को जब यह समाचार मिला। तो उसने अंग्रेजों को भारत से निष्कासित करने का आदेश दे दिया और पटना, कासिम बाजार, मूसलीपट्टम, विशाखापत्तनम तथा सूरत की कोठियों को छीन लिया। यह देख अंग्रेजों ने औरंगजेब से क्षमा याचना की। औरंगजेब ने डेढ़ लाख रुपये मुवाबजे के बदले पुनः व्यापारिक अधिकार दे दिये।
1691 ई. में बंगाल के नवाब इब्राहीम खाँ ने एक फरमान द्वारा बंगाल में 3 हजार रुपया वार्षिक कर के बदले कम्पनी को सीमा शुल्क में छूट दे दी।
1698 में कम्पनी ने तीन गांव-- सूतानती, कालिकाता तथा गोविन्दपुर की जमींदार केवल 1200 रुपये के भुगतान पर प्राप्त कर ली।
इन्ही तीन गांवों के भू-क्षेत्र पर कलकत्ता नगर की स्थापना हुई। जिसकी नींव "जॉब चारनॉक" के प्रयासों से पड़ी।
1690 में सूतानती में स्थापित कोठी की 1697 में उसका नाम फोर्ट विलियम रखा गया तथा सर चार्ल्स आयर इसके प्रथम अध्यक्ष बनाये गये।
फर्रुखसीयर का फरमान
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात कम्पनी ने 1715 ई. में मुगल दरबार में जॉन सरमन की अध्यक्षता में एक शिष्ट मण्डल भेजा। इस मण्डल का उद्देश्य मुगल साम्राज्य में व्यापारिक विशेषाधिकार तथा कलकत्ता के आसपास के 38 गांवों को प्राप्त करना था।
इस मण्डल में कम्पनी का एक योग्य डॉक्टर विलियम हैमिल्टन भी था। इसने सम्राट फर्रुखसीयर को एक प्राण घातक फोड़े से निजात दिलाई। इससे खुश होकर 1717 में फर्रुखसीयर ने कम्पनी को एक फरमान द्वारा निम्नलिखित सुविधाएं प्रदान की।
1-बंगाल में कम्पनी को 3 हजार रुपये वार्षिक कर के साथ निःशुल्क व्यापार का अधिकार मिल गया।
2-कलकत्ता और मद्रास के कुछ गांव भेंट स्वरूप मिले।
3-कम्पनी द्वारा बम्बई टकसाल से जारी किये गये सिक्कों को मुगल साम्राज्य में मान्यता मिल गयी।
4-सूरत में 10 हजार रुपये वार्षिक कर देने पर निःशुल्क व्यापार का अधिकार मिल गया। ओर्म्स ने फर्रुखसीयर के इस फरमान को कम्पनी का महाधिकार पत्र (मैग्नाकार्टा) कहा।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी का गठन
सितम्बर 1599 ई. में लंदन में कुछ व्यापारियों ने लार्ड मेयर की अध्यक्षता में एक सभा का आयोजन किया। इसमें पूर्वी द्वीप समूहों के साथ व्यापार करने की कुछ योजनाएं बनायीं गयीं। इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए इन व्यापारियों ने एक कम्पनी का गठन किया।
इस कम्पनी का नाम "गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेन्टस ऑफ लन्दन ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इण्डीज" रखा गया। इसमें कुल 217 व्यापारी थे।
31 दिसम्बर 1600 ई. में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने एक शाही फरमान द्वारा इस कम्पनी को 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों से व्यापार करने की अनुमति प्रदान की। इस फरमान को चार्टर अधिनियम कहा गया।
कम्पनी और उसके व्यापार की देख रेख के लिए एक 26 सदस्यीय "कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स" अथवा निदेशक मंडल का गठन किया गया तथा कम्पनी का पहला गवर्नर "टॉमस स्मिथ" को बनाया गया।
Q-भारत आने वाला प्रथम ब्रिटिश यात्री कौन था?
@-जॉन मिल्डेन हॉल
Q-अंग्रेजों को "सुनहरा फरमान" कब प्रदान किया गया?
@-1632 ई. में गोलकुण्डा के सुल्तान ने अंग्रेजों को एक "सुनहरा फरमान" दिया। जिसके मुताबिक 500 पगोड़ा सालाना कर देने से उन्हें गोलकुण्डा राज्य के बन्दरगाहों में स्वतंत्रता पूर्वक व्यापार करने की अनुमति मिल गयी।
Q-अंग्रेजों ने कलकत्ता की जमींदारी किस सूबेदार से प्राप्त की थी?
@-अजीमुशान से
Q-किस अंग्रेज गवर्नर को औरंगजेब ने भारत से निष्कासित कर दिया था?
@-सर जॉन चाइल्ड को
Kepton hokins ko English Khan ki upadhi di
ReplyDeleteenglish khan or raja jems pratham
ReplyDeleteइंग्लिश खान की उपाधि
ReplyDeleteजेम्स द्वितीय
ReplyDeletewrong- james1 rajdoot bah kar aaya tha
DeleteJames first ka rajdoot bankar Tomas roo jahangeei ke darbaar m aaya.
ReplyDelete400 का मनसब, एक जागीर व "अंग्रेजी खान" की उपाधि से
ReplyDeleteRead dregun
ReplyDelete$$###अगर आपको ये पोस्ट पसन्द आयी हो तो ""share and comment"" जरूर कीजिए।###$$