भारत में पुर्तगालियों का आगमन

भारत में पुर्तगालियों का आगमन 1498 ई. में हुआ। जब पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा 20 मई 1498 में कालीकट स्थित "कप्पकडाबू" नामक बन्दरगाह पहुँचा।

कालीकट के तत्कालीन शासक "जमोरिन" ने उसका का स्वागत किया। वास्कोडिगामा पुर्तगाल के शासक डॉन हेनरीक के प्रतिनिधि के रूप में भारत आया था।

वास्कोडिगामा के आगमन से पुर्तगालियों और भारतीयों के मध्य व्यापार क्षेत्र में एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। वह भारत से लौटते समय अपने साथ जो मसाले लेकर गया। उन मसालों को पुर्तगाल में बेचकर उसने 60 गुना मुनाफा कमाया। जिससे अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को प्रोत्साहन मिला। धीरे धीरे पुर्तगालियों का भारत में आने का क्रम जारी हो गया।

Arrival of Portuguese in India

9 मार्च 1500 ई. में एक और पुर्तगाली व्यापारी पेड्रो अल्वारेज कैब्राल 13 जहाजों का नायक बनकर भारत आया। उसका अरब व्यापारियों से कड़ा संघर्ष हुआ। अन्त में अरब व्यापारी पराजित हुए।

अरबों को पराजित करने के बाद कैब्राल ने कोचीन तथा केन्नानोर के शासकों से मित्रता स्थापित की।
1502 ई. में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया। वास्कोडिगामा तीसरी बार भारत में 5 सितम्बर 1524 ई. में पुर्तगाली वाइसराय के रूप में आया। यहीं पर उसकी दिसम्बर 1524 ई. में मृत्यु हो गई। उसे कोचीन में दफनाया गया।

भारत में पुर्तगाली वाइसराय

1503 में पुर्तगालियों ने कोचीन में अपनी प्रथम व्यापारिक कोठी स्थापित की तथा 1505 में कुन्नूर में दूसरी कोठी स्थापित की।

अब पुर्तगालियों ने भारत तथा यूरोप के मध्य होने वाले व्यापार पर एकाधिकार करने के लिए एक नई नीति अपनाई। इस नीति के अंतर्गत व्यापारिक देख-रेख के लिए 3 वर्ष के लिए एक वाइसराय (गवर्नर) नियुक्त किया गया।

इस प्रकार भारत में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर या वाइसराय 1505 में फ्रांसिस्को-डी-अल्मेडा को नियुक्त किया गया। उसने सामुद्रिक नीति को अधिक महत्व दिया तथा हिन्द महासागर में पुर्तगालियों की स्थिति को मजबूत करने का प्रयत्न किया। इसने "शान्त जल की नीति" को अपनाया।

अल्मेडा ने भारत में राज्य स्थापित करने का प्रयत्न किया। इस प्रयास में उसने 1505 में अंजाडीवा, कैन्नूर तथा किलवा में दुर्ग स्थापित किये।

1509 ई. में उसने गुजरात, तुर्की और मिस्र के संयुक्त नौ-सैनिक बेड़े की पराजित किया। इसके बाद वह पुर्तगाल वापस चला गया।

अलफांसो-डी-अलबुकर्क (1509 से 1515 तक)

अल्मेडा के बाद 1509 ई. अलफांसो डी अलबुकर्क भारत में पुर्तगाली वाइसराय बनकर आया।

इससे पहले अलफांसो डी अलबुकर्क भारत में 1503 ई. में एक पुर्तगाली जहाजी बेड़े का नायक बनकर आया था।

वाइसराय के रूप में भारत आने के बाद उसने 1510 ई. में बीजापुर के शासक यूसुफ आदिल शाह से गोवा को छीनकर अपने अधिकार में कर लिया।

1511 ई. में अलबुकर्क ने मलक्का पर तथा 1515 में फारस की खाड़ी में स्थित होर्मुज बन्दरगाह पर अधिकार कर लिया।

अलबुकर्क के समय में पुर्तगालियों की जल सेना भारत में सबसे शक्तिशाली जल सेना थी।
 अलबुकर्क ने भारत में पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के उद्देश्य से भारतीय स्त्रियों से विवाह को प्रोत्साहन दिया।

 अलबुकर्क ने अपने अधिकार क्षेत्र में सती प्रथा को बंद करवा दिया। भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक अलफांसो-डी-अलबुकर्क को माना जाता है।

अलफांसो डी अलबुकर्क के बाद योग्य पुर्तगाली गवर्नरों का अभाव रहा। 1529 ई. "निनो-डी-कुन्हा" गवर्नर बनकर आया। यह 1515 के बाद आये पुर्तगाली गवर्नरों में सबसे योग्य था। इसने 1534 में बेसीन तथा 1535 ई. दीव पर अधिकार कर लिया। इसके समय में पुर्तगाली शासन का मुख्य केन्द्र कोचीन के स्थान पर गोवा बन गया।

कुन्हा 1538 ई. तक भारत में रहा। पुर्तगालियों ने चौल, मुंबई, सेंट टॉमस, मद्रास व हुगली में अपनी व्यापारिक कोठियां स्थापित की। 1559 में इन्होंने दमन पर भी अधिकार कर लिया। किन्तु ये अपने साम्राज्य की लम्बे समय तक रक्षा नहीं कर सके और शीघ्र ही पतन का शिकार हो गए।

भारत में पुर्तगालियों का पतन

भारत में पुर्तगालियों ने सबसे पहले प्रवेश किया। किन्तु 18वीं शताब्दी आते-आते भारतीय व्यापारिक क्षेत्र में उनका प्रभाव समाप्त हो गया।

दक्षिण पूर्व एशिया से आने वाले डचों ने पुर्तगालियों के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। डचों ने 1641 ई. में पुर्तगालियों से मलक्का दुर्ग जीत लिया। 1658 ई. में श्रीलंका और 1663 ई. में मालाबार के सभी दुर्गों को छीन लिया।

अंग्रेजों ने 1612 ई. में पुर्तगालियों को पराजित कर सूरत में अपना कारखाना स्थापित किया। 1622 में अंग्रेजों ने इनसे होर्मुज दुर्ग भी छीन लिया।

मुगलों तथा मराठों ने भी पुर्तगालियों का विरोध किया। मुगलों ने हुगली तथा मराठों ने साल्सेट एवं बेसीन पर अधिकार कर लिया।

पुर्तगालियों के पतन के महत्वपूर्ण कारकों में उनकी धार्मिक असहिष्णुता की नीति, अलबुकर्क के बाद अयोग्य उत्तराधिकारी, डच व अंग्रेजों जैसे प्रतिद्वन्दियों का आना, स्पेन द्वारा पुर्तगाल की स्वतन्त्रता का हरण, दोषपूर्ण व्यापार प्रणाली एवं भ्रष्ट शासन व्यवस्था आदि कारक प्रमुख थे।

Q-पांडिचेरी पर कब्जा करने वाली प्रथम यूरोपीय शक्ति कौन थी?
@-पुर्तगाली
Q-मुगल बादशाह शाहजहां ने हुगली में पुर्तगाली बस्तियों को क्यों नष्ट कर दिया था?
@-क्योंकि पुर्तगालियों ने हुगली को बंगाल की खाड़ी में समुद्री लूटपाट के लिए अड्डा बनाया हुआ था।
Q-भारत से सबसे अन्त में जाने वाली यूरोपीय शक्ति कौन सी थी?
@-पुर्तगाली सबसे पहले 1498 ई. में आये और सबसे बाद में 1961 ई. में गये।
Q-सर्वप्रथम भारत-जापान व्यापार प्रारम्भ करने का श्रेय किसे दिया जाता है?
@-पुर्तगालियों को

Post a Comment

5 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. वास्कोडिगामा की समाधि कोचीन में।
    और पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक फ्रांसिस्को द अल्बुकर्क।

    ReplyDelete

$$###अगर आपको ये पोस्ट पसन्द आयी हो तो ""share and comment"" जरूर कीजिए।###$$