भारत में दास प्रथा का अन्त लार्ड एलनबरो के कार्यकाल में 1843 ई. में किया गया। भारत में दासता प्राचीन काल से ही विद्यमान थी। किन्तु यहाँ यूनान, रोमन व अमरीकन नीग्रो प्रकार की दासता कभी नहीं थी।
भारत में दासों की बन्धुआ मजदूरों से तुलना कर सकते हैं। भारत में दासों से मानवतापूर्ण व्यवहार होता था जिसका पाश्चात्य देशों में कोई उदाहरण नहीं मिलता।
भारत में दासता के विषय पर एक बार 'चल समिति (committee of circuit)' ने लिखा था कि "भारत में दासों को घर के बच्चों के समान माना जाता है और वे अपनी स्वतंत्रता के स्थान पर अपनी दासता में अधिक प्रसन्न जीवन व्यतीत कर सकते हैं।"
उत्तर भारत में ये प्रायः घरों में काम करते थे और दक्षिण भारत में प्रायः कृषि में सहायता देते थे। जबकि यूरोपीय लोग भारतीय दासों के साथ उसी निर्दयता से व्यवहार करते थे जैसा कि यूरोप में होता था।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख मिलता है। सल्तनत काल में फिरोजशाह तुगलक ने दासों का विभाग 'दीवान-ए-बन्दगान' खोल रखा था।
दास प्रथा पर प्रतिबन्ध
मध्य काल में फिरोज तुगलक ने दासों के व्यापार पर रोक लगायी। इसके बाद मुगल सम्राट अकबर ने 1562 ई. में दास प्रथा को प्रतिबन्धित कर दिया।
1789 ई. में लार्ड कार्नवालिस ने दासों के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाया था।
यह पोस्ट भी पढ़ें-- सती प्रथा का अंत
1823 ई. में ड्यूक ऑफ ग्लोस्टर ने भारत में दास प्रथा को बन्द करने के लिए अंग्रेज अधिकारी लिस्टर स्टैनहोप से अनुरोध किया था।
1833 ई. के चार्टर अधिनियम में दासता को शीघ्रातिशीघ्र समाप्त करने को कहा गया। अतः चार्टर अधिनियम 1833 के आधार पर लार्ड एलनबरो ने 1843 ई. में एक्ट-5 पारित कर दासता को गैर कानूनी बना दिया और समस्त भारत में इसे अवैध घोषित कर दिया।
शिशु वध निषेध अधिनियम
भारत में शिशु वध प्रथा मुख्य रूप से बंगालियों तथा राजपूतों में प्रचलित थी। इस प्रथा के अंतर्गत बालिका शिशुओं को आर्थिक भार मानकर उनकी शैशव काल में ही हत्या कर दी जाती थी।
महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र दलीप सिंह ने उल्लेख किया है कि " उसने स्वयं अपने नेत्रों के सामने देखा कि उसकी अपनी बहनों को बोरी में बन्द करके नदी में फेंक दिया गया।" प्रबुद्ध भारतीयों तथा अंग्रेजों ने इस घृणित प्रथा की बहुत आलोचना और निन्दा की।
अतः सरकार ने गवर्नर जनरल जानशोर के समय 1795 ई. में बंगाल नियम-21 तहत नवजात कन्या हत्या तथा वेलेजली के समय 1804 ई. में नियम-3 के तहत शिशु हत्या को साधारण हत्या के बराबर मान लिया।
भारतीय रियासतों से कहा गया कि वे इस प्रथा को बन्द करने का प्रयत्न करें। इन नियमों में विस्तार करते हुए लार्ड विलियम बैंटिक ने राजपूताना के शिशु वध पर प्रतिबन्ध लगाया।
लार्ड हार्डिंग ने सम्पूर्ण भारत में बालिका शिशु हत्या को निषेध कर दिया।
अन्य पोस्ट-- विधवा पुनर्विवाह अधिनियम
Q-जानशोर ने 1795 ई. में बंगाल नियम-21 के तहत किस हत्या को साधारण हत्या माना?
@-कन्या शिशु हत्या को
Q-सर्वप्रथम दास प्रथा को किसने प्रतिबन्धित किया?
@-अकबर ने
Q-नर बलि प्रथा की समाप्ति के लिए कैम्पबेल की नियुक्ति किसने की?
@-लार्ड हार्डिंग ने
Q-नर बलि प्रथा को कब समाप्त किया गया?
@-1845 ई. में
Nice post
ReplyDelete$$###अगर आपको ये पोस्ट पसन्द आयी हो तो ""share and comment"" जरूर कीजिए।###$$