निम्न जातीय आन्दोलन दलितों और अस्पृश्य लोगों को उच्च वर्ग के समान अधिकार दिलाने के लिए किये गये। ये आन्दोलन हिन्दुओं की निम्न जातियों और उप-जातियों द्वारा किये गये।
इसका मुख्य कारण उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों का सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक आधार पर शोषण करना था।
इन आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य उच्च वर्गों के विशेषाधिकारों पर आक्रमण करना और अपने लिये समान अधिकार प्राप्त करना था।
जातिगत आन्दोलन दक्षिण-पश्चिमी भारत में मुख्य रूप से महाराष्ट्र में अधिक सक्रिय रहे। क्योंकि उत्तरी भारत की तुलना में दक्षिण भारत में उच्च वर्गों द्वारा निम्न जातियों का अधिक शोषण किया गया।
दक्षिण भारत में अधिक सक्रियता का दूसरा कारण यह भी है कि दक्षिण भारत में मध्य काल से ही विभिन्न सन्तों और विद्वानों द्वारा जातीय समानता पर अधिक बल दिया गया था, जिसके कारण वहाँ का निम्न सामाजिक वर्ग अधिक सजग था।
19वीं और 20वीं शताब्दी में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार, एक समान दण्ड संहिता-1861, दण्ड प्रक्रिया संहिता-1872, राष्ट्रीय जागरण का विकास, समानता और सामाजिक समतावाद पर आधारित आधुनिक विचारों के प्रसार आदि कारणों ने एक ऐसा सामाजिक और राजनैतिक वातावरण बना दिया जिसमें जाति प्रथा को न्याय संगत कहना असम्भव हो गया।
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अंग्रेजों की भी "बांटो और राज करो" की नीति ने भी इन आंदोलनों को बढ़ावा दिया।
प्रमुख निम्न जातीय आंदोलन
1-सत्य शोधक समाज
निम्न जातियों को ब्राह्मणवादी व्यवस्था से मुक्त कराने हेतु महात्मा ज्योतिबा फुले ने 1873 ई. में बम्बई महाराष्ट्र में 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना की थी।
इन्होंने स्त्रियों तथा निम्न जाति के लोगों को शिक्षित करने का प्रयत्न किया। इसके लिए 1851 ई. में पुणे में एक 'कन्या विद्यालय' खोला। इन्होंने अपनी पुस्तक 'गुलामगीरी' के माध्यम से ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी।
2-जस्टिस पार्टी आन्दोलन
1916 ई. में सी. एन. मुदालियर, श्री पी. त्यागराज चेट्टी तथा डॉ. टी. एम. नायर ने दक्षिण भारत में एक "उदारवादी संघ" की स्थापना की। जिसे बाद में 'जस्टिस पार्टी' नाम दिया गया।
यह ब्राह्मण विरोधी संस्था थी। 1937 ई. में रामास्वामी नायकर इसके अध्यक्ष चुने गये। इन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध आन्दोलन चलाया। इस आंदोलन के अंतर्गत 'जस्टिस' नामक समाचार पत्र भी निकाला गया।
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1944 ई. में जस्टिस पार्टी (न्याय दल) का नाम बदलकर "द्रविड़ कड़गम (द्रविड़ संघ)" रखा गया।
3-अरुविप्पुरम आंदोलन अथवा एझवा आन्दोलन
इस आन्दोलन की स्थापना 1888 ई. में श्री नारायण गुरु ने केरल में की थी। श्री नारायण गुरु केरल की एझवा जाति से सम्बन्धित थे। 1903 ई. में इन्होंने "नारायण धर्म परिपालन योगक्षेम" नामक संस्था की स्थापना की थी। इनके आन्दोलन मुख्य रूप से "अस्पृश्यता प्रथा" की समाप्ति के लिए थे।
4-डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी
महाराष्ट्र में विठ्ठल रामजी शिन्दे ने 1906 ई. में इस सोसायटी की स्थापना की। जिसका मुख्य उद्देश्य दलित जातियों में अपने अधिकारों के प्रति जागृति पैदा करना था।
5-वायकोम आन्दोलन
वायकोम आन्दोलन या सत्याग्रह 1924 ई. में के. पी. केशव मेनन तथा ई. वी. रामास्वामी नायकर द्वारा चलाया गया। यह आन्दोलन मन्दिर में निम्न जातियों के प्रवेश को लेकर चलाया गया।
Q-1932 ई. में हरिजन सेवक संघ की स्थापना किसने की थी?
@-महात्मा गांधी जी ने
Q-1920 में कोल्हापुर के किस महाराजा ने दलित वर्ग के उत्थान का प्रयत्न करते हुए आरक्षण की व्यवस्था की थी?
@-शाहू जी महाराज ने
Q-आत्म सम्मान आन्दोलन किसने चलाया था?
@-ई. वी. रामास्वामी नायकर ने
Q-तमिल भाषा में 'सच्ची रामायण' की रचना किसने की?
@-ई. वी. रामास्वामी नायकर ने
Q-1932 में बम्बई में "आल इण्डिया डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन" की स्थापना किसने की थी?
@-गांधी जी ने
Q-यदि भगवान अस्पृश्यता को सहन करते हैं तो मैं उन्हें कभी भगवान नहीं मानूँगा। उक्त कथन किसका है?
@-बाल गंगाधर तिलक का
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