सल्तनत कालीन कर व्यवस्था सुन्नी विद्वानों की हनीफी शाखा के वित्त सिद्धान्तों पर आधारित थी। दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों ने गजनवी के पूर्वाधिकारियों से यह परम्परा ग्रहण की थी।
इस काल में कर को दो भागों में विभाजित किया गया था।
पहला-मुस्लिमों से लिया जाने वाला कर
दूसरा-गैर-मुस्लिमों से लिया जाने वाला कर
पहले प्रकार के कर में जकात, उश्र एवं दूसरे प्रकार के कर में जजिया, खराज एवं खुम्स आदि आते थे।
सल्तनत कालीन मुस्लिम कर
●जकात
यह कर केवल सम्पन्न वर्ग के मुसलमानों से लिया जाता था। इस कर की वसूली में बल प्रयोग पूर्णतः वर्जित था। जकात कर दो प्रकार की संपत्तियों पर लगाया जाता था--प्रत्यक्ष सम्पत्ति और अप्रत्यक्ष सम्पत्ति।
प्रत्यक्ष सम्पत्ति में जानवर तथा कृषि उत्पाद तथा अप्रत्यक्ष सम्पत्ति में सोना, चांदी व व्यापार की वस्तुएं आती थी। प्रत्यक्ष सम्पत्ति में जकात कर आय 2.5% लिया जाता था। जबकि अप्रत्यक्ष सम्पत्ति पर यह कर व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता था। इस कर का सम्पूर्ण भाग मुसलमानों के कल्याण पर खर्च किया जाता था।
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●उश्र
यह केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर था। जिस भूमि पर प्राकृतिक साधनों द्वारा सिंचाई होती थी वहां पर यह पैदावार का 1/10 भाग तथा जिस भूमि पर कृत्रिम साधनों द्वारा सिंचाई होती थी वहां यह पैदावार का 1/5 भाग लिया जाता था। इस कर से वक्फ, नाबालिग एवं दास भी मुक्त नहीं थे। इस कर की वसूली में बल प्रयोग किया जा सकता था।
सल्तनत कालीन गैर-मुस्लिम कर
●जजिया
यह गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला कर था। ये कर गैर मुस्लिमों को इसलिए देना होता था क्योंकि वे सैनिक सेवा से मुक्त थे। यह 10 से 40 टंका तक लिया जाता था। जजिया कर देने वालों को तीन भागों में बांटा गया था। 1-उच्च श्रेणी--40 टंका, 2-मध्यम श्रेणी--20 टंका, 3-निम्न श्रेणी--10 टंका। ब्राह्मण, संत, वृद्ध, निर्धन, स्त्री व अल्पवयस्क इस कर से मुक्त थे। फिरोज तुगलक ने इस कर को ब्राह्मणों पर भी लगाया।
●खराज
यह गैर मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर था। जो उपज का 1/3 भाग लिया जाता था। अलाउद्दीन खिलजी ने उपज का 1/2 भाग लिया।
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●खुम्स
यह लूट का धन अथवा भूमि में गढ़ा हुआ धन होता था। इस धन का 1/5 भाग राजकोष में जमा होता था तथा 4/5 भाग सैनिकों में बांट दिया जाता था। किन्तु अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक ने 4/5 भाग राजकोष में जमा करवाया। शेष 1/5 भाग सैनिकों में वितरित किया।
उपर्युक्त करों के अतिरिक्त आयात कर भी लगाया जाता था। जो व्यापारिक वस्तुओं पर 2.5% तथा घोड़ो पर 5% होता था। अलाउद्दीन खिलजी ने मकान एवं चारागाह पर तथा फिरोजशाह ने सिंचाई के साधनों पर कर लगाया।
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