कुतुबुद्दीन ऐबक का जीवन|Biography of Qutubuddin Aibak

कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। वह बचपन में ही अपने परिवार से बिछड़ गया। उसे एक व्यापारी निशापुर के बाजार में लाया। जहाँ काजी फखदुद्दीन अब्दुल अजीज कुकी ने उसे खरीद लिया।

कुतुबुद्दीन ऐबक

 उस समय तुर्कों में अपने गुलामों को योग्य बनाने की परम्परा थी। वे अपने गुलामों को साहित्य, कला और सैनिक शिक्षा प्रदान करते थे।

 कुतुबुद्दीन ऐबक बाल्यकाल से ही प्रतिभा का धनी था। उसने शीघ्र ही सभी कलाओं में कुशलता प्राप्त कर ली।

 काजी फखदुद्दीन अब्दुल अजीज कुकी की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों ने ऐबक को एक व्यापारी को बेंच दिया। जो उसे गजनी लाया जहां मुहम्मद गोरी ने ऐबक को खरीद लिया।

 कुतुबुद्दीन ऐबक "ऐबक" नामक तुर्क जनजाति का था। ऐबक एक तुर्की शब्द है जिसका अर्थ होता है "चन्द्रमा का देवता"।

कुतुबुद्दीन ऐबक गोरी के सहायक के रूप में


 मुहम्मद गोरी के दास परिवार में शामिल होने के बाद ऐबक ने अपनी बुद्धिमानी, साहस और उदार प्रकृति से गोरी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
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 गोरी ने उसकी स्वामी भक्ति, उदारता व साहस से प्रभावित होकर उसे "अमीर-ए-आखूर" (अश्वशाला का अधिकारी) बनाया। इस पद पर रहते हुए ऐबक ने गोर, बामियान व गजनी के युद्धों में सुल्तान की सेवा की।

 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में कुतुबुद्दीन ने अहम भूमिका निभायी। जिससे गोरी विजयी हुआ। इस युद्ध में विजय के बाद गोरी ने ऐबक को भारत के विजित प्रदेशों का प्रबन्धक नियुक्त किया।

 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1197 ई. में ऐबक ने गुजरात के शासक भीमदेव को तथा 1202 ई. में महोबा के राजा परमार्दिदेव को परास्त किया।

 इस प्रकार उसने अपने स्वामी को न केवल भारत के विभिन्न प्रदेशों को जीतने में सहायता की बल्कि गोरी की अनुपस्थिति में विजित प्रदेशों पर आधिपत्य भी बनाये रखा।

कुतुबुद्दीन ऐबक शासक के रूप में


 मुहम्मद गोरी का कोई पुत्र नहीं था। 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की आकस्मात मृत्यु हो गयी। अतः उसकी मृत्यु के बाद उसके तीन प्रमुख विश्वासपात्र दासों ताजुद्दीन एल्दौज, नासिरुद्दीन कुबाचा और कुतुबुद्दीन ऐबक ने गोरी साम्राज्य को आपस में बांट लिया।

 एल्दौज को गजनी, कुबाचा को सिंध और मुल्तान तथा कुतुबुद्दीन को उत्तरी भारत के प्रान्त प्राप्त हुए। 25 जून 1206 ई. में ऐबक ने लाहौर में अपना राज्याभिषेक करवाया।

 सिंहासनारूढ़ होने के समय  उसने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की बल्कि अपने को "मलिक एवं सिपहसालार" की पदवी से संतुष्ट रखा।

 कुतुबुद्दीन ने अपने नाम से न तो सिक्के जारी किये और न कभी अपने नाम के खुतवे पढ़वाये। ऐबक ने "लाहौर" को अपनी राजधानी बनाया।

कुतुबुद्दीन ऐबक की कठिनाइयां


 सिंहासन पर बैठते समय ऐबक को मुहम्मद गोरी के अन्य उत्तराधिकारी गयासुद्दीन मुहम्मद, ताजुद्दीन एल्दौज एवं नासिरुद्दीन कुबाचा के विद्रोह का सामना करना पड़ा।
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 इन विद्रोहियों को शान्त करने के लिए ऐबक ने वैवाहिक सम्बन्धों को आधार बनाया। उसने स्वयं ताजुद्दीन एल्दौज की पुत्री से विवाह किया। नासिरुद्दीन कुबाचा से अपनी बहन का विवाह किया तथा इल्तुतमिश से अपनी पुत्री का विवाह किया।

 कुतुबुद्दीन ऐबक के राज्याभिषेक के लगभग दो वर्ष पश्चात गोरी के उत्तराधिकारी गयासुद्दीन मुहम्मद ने ऐबक को सुल्तान के रूप स्वीकार करते हुए 1208 ई. में सिंहासन, छत्र, राजकीय पताका व नक्कारा भेंट किया। इस तरह ऐबक एक स्वतंत्र शासक के रूप में भारत में तुर्की साम्राज्य का संस्थापक बना।

भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक का राजनैतिक जीवन


 भारत में कुतुबुद्दीन के राजनैतिक जीवन को तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है।

●1192 से 1206 ई. तक की अवधि--इस अवधि में ऐबक ने गोरी के प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। इस अवधि में उसका समय सैनिक गतिविधियों में व्यतीत हुआ।
●1206 से 1208 ई. तक की अवधि--इस अवधि में वह गोरी की भारतीय सल्तनत का "मालिक एवं सिपहसालार" था। उसका यह समय राजनैतिक सन्धियों एवं कार्यों में व्यतीत हुआ।
●1206 से 1210 ई. तक की अवधि--इस काल में वह विजित भारतीय प्रदेशों का स्वतंत्र शासक रहा। इस अवधि में उसका अधिकांश समय दिल्ली सल्तनत की रूप रेखा बनाने में बीता।

ऐबक का मूल्यांकन

 दिल्ली सल्तनत का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था। शासक बनने के बाद उसने नये प्रदेश जीतने की अपेक्षा जीते हुए प्रदेशों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया।

 वह मात्र 4 वर्ष तक ही शासक रहा। इस बीच उसने भारत में तुर्की साम्राज्य की मजबूत नींव डाली। ऐबक को अपनी उदारता और दानी प्रवृत्ति के कारण "लाखबख्श" कहा गया।

 साहित्य एवं स्थापत्य कला में भी ऐबक की रुचि थी। उसके दरबार में "हसन निजामी एवं फख-ए-मुदब्बिर" जैसे विद्वान रहते थे।

 स्थापत्य कला के क्षेत्र में ऐबक के नाम के साथ कुव्वत-उल-इस्लाम, अढ़ाई दिन का झोपड़ा, कुतुबमीनार के निर्माण का नाम जोड़ा जाता है।

अपने शासन के चार वर्ष बाद 1210 ई. में लाहौर में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गयी।

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