इल्तुतमिश इल्बरी जनजाति का तुर्क था। उसके पिता इस जनजाति के सरदार थे। अतः उसका बचपन समृद्ध वातावरण में बीता। किन्तु उसके भाइयों ने उसे धोखे से एक व्यापारी को बेंच दिया। क्योंकि वे इल्तुतमिश की सुन्दरता और बुद्धिमत्ता से ईर्ष्या करते थे।
एक दास के रूप में बिकते-बिकते इल्तुतमिश दिल्ली के बाजार में पहुँचा। जहाँ कुतुबुद्दीन ऐबक ने उसे तथा एक अन्य दास तमगाज रुमी को एक लाख जीतल में खरीद लिया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने इल्तुतमिश की प्रतिभा को देखकर "सर-ए-जहांदार" (अंगरक्षकों का प्रधान) का महत्वपूर्ण पद दिया। अपनी मेहनत और ईमानदारी से वह उन्नति करते हुए "अमीर-ए-शिकार" के पद तक पहुँच गया। अन्त में उसे दिल्ली सल्तनत का सबसे महत्वपूर्ण 'बदायूं का इक्ता' सौंपा गया।
1205 ई. में खोखरों का दमन करने में इल्तुतमिश ने बड़े साहस व उत्साह के साथ मुहम्मद गोरी की सहायता की। गोरी उसके रणकौशल से बहुत प्रभावित हुआ।
गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को आदेश दिया कि वह इल्तुतमिश को दासता से मुक्त कर दे। अतः ऐबक ने उसे दासता से मुक्त कर दिया और "अमीर-उल-उमरा" की उपाधि प्रदान की।
इल्तुतमिश शासक के रूप
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के समय इल्तुतमिश उसका दामाद और बदायूं का इक्तादार था। ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के तुर्क अमीरों ने आरामशाह को गद्दी पर बिठाया। वह एक अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। अतः तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश को सुल्तान का पद स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया। उसने तत्काल निमंत्रण स्वीकार कर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
दिल्ली के निकट "जड" नामक स्थान पर आरामशाह व इल्तुतमिश के बीच युद्ध हुआ जिसमें आरामशाह को बंदी बनाकर हत्या कर दी गयी। इस तरह 1210 ई. में ऐबक वंश के बाद इल्बरी वंश का शासन प्रारम्भ हुआ।
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अनेक इतिहासकारों ने इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना है। उसने दिल्ली सल्तनत की राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानान्तरित किया।
खलीफा से सुल्तान पद की स्वीकृति
इल्तुतमिश ने सुल्तान पद की स्वीकृति किसी गोर से नहीं बल्कि फरवरी 1229 ई. में बगदाद के खलीफा अल मुन्तसिर बिल्लाह से प्राप्त की थी।
इल्तुतमिश खलीफा से अधिकार पत्र प्राप्त करने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम वैधानिक सुल्तान था।
खलीफा का दूत बगदाद से विशिष्ट अधिकार पत्र तथा सम्मान सूचक वस्त्र (खिलअत) लेकर दिल्ली आया। इस विशिष्ट अधिकार पत्र में इल्तुतमिश को "सुल्तान-ए-आजम" की उपाधि दी गयी थी। यह अधिकार पत्र मिलने के बाद इल्तुतमिश को सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाने में सहायता मिली। खिलअत मिलने के बाद इल्तुतमिश ने "नासिर अमीर उल मोमिनीन" की उपाधि ग्रहण की।
इस प्रकार इल्तुतमिश एक वैध सुल्तान तथा दिल्ली सल्तनत एक वैध स्वतन्त्र साम्राज्य बना। इल्तुतमिश ने अपने सिक्कों पर अपने को खलीफा का दूत प्रदर्शित किया। उसने सर्वप्रथम अब्बासी खलीफा अल मुस्तनसिर के नाम से युक्त सिक्के चलवाए।
इल्तुतमिश की समस्याएं
●सर्वप्रथम इल्तुतमिश को "कुत्बी" अर्थात कुतुबुद्दीन ऐबक के समय के सरदारों तथा 'मुइज्जी' अर्थात मुहम्मद गोरी के समय के सरदारों के विरोध का सामना करना पड़ा। इल्तुतमिश ने इन विद्रोही सरदारों का सफलतापूर्वक दमन किया।
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●1215 ई. से 1217 ई. के बीच इल्तुतमिश को अपने दो प्रबल प्रतिद्वन्दी एल्दौज और कुबाचा से संघर्ष करना पड़ा। 1215 ई. में एल्दौज को तराइन के मैदान में पराजित किया। 1217 ई. में कुबाचा ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली।
●इल्तुतमिश के समय भारत में मंगोलों के आक्रमण का खतरा उत्पन्न हुआ। जब मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खां "जलालुद्दीन मांगबर्नी" का पीछा करते हुए सिन्धु नदी तक आया। चंगेज खां ने इल्तुतमिश के दरबार में एक दूत भेजा और कहा कि वह जलालुद्दीन मांगबर्नी की कोई सहायता न करें।
इल्तुतमिश ने मंगोल जैसे शक्तिशाली आक्रमणकारी से बचने के लिए 'मांगबर्नी' की कोई सहायता नहीं की। मंगोल आक्रमण का भय 1228 ई. में मांगबर्नी के भारत से वापस जाने पर टल गया।
इल्तुतमिश के प्रमुख अभियान
●बंगाल अभियान
1225 ई. में सुल्तान इल्तुतमिश ने बंगाल के स्वतंत्र शासक "हेमामुद्दीन एवज खिलजी" के विरुद्ध अभियान किया। हेमामुद्दीन एवज खिलजी ने बिना युद्ध किये सुल्तान की अधीनता में शासन करना स्वीकार कर लिया। किन्तु सुल्तान के दिल्ली वापस लौटते ही उसने पुनः विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को भेजा।
1226 ई. में महमूद ने एवज खिलजी को पराजित कर उसकी राजधानी लखनौती पर अधिकार कर लिया। लगभग 2 वर्ष पश्चात नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु हो गयी। अवसर का लाभ उठाकर मलिक इख्तियारुद्दीन बल्ख ने विद्रोह कर बंगाल की गद्दी पर अधिकार कर लिया। 1230 ई. में स्वयं सुल्तान ने जाकर इस विद्रोह को दबाया। संघर्ष में बल्ख मारा गया। इस प्रकार बंगाल एक बार फिर दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया।
●रणथंभौर अभियान
1226 ई. में इल्तुतमिश ने रणथंभौर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। यह उसकी बहुत बड़ी सफलता थी। क्योंकि रणथंभौर अजेय दुर्ग समझा जाता था। माना जाता है कि इसके पहले सत्तर शासक उस पर विजय पाने में असफल रहे थे।
●मंदौर अभियान
1227 ई. में उसने परमारों की राजधानी मंदौर पर अधिकार कर लिया।
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●ग्वालियर अभियान
1231 ई. में इल्तुतमिश ने ग्वालियर के किले का घेरा डाला। वहाँ के परिहार शासक मंगलदेव ने 11 माह तक नगर की वीरता पूर्वक रक्षा की। किन्तु अन्त में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
इसके अतिरिक्त 1233 ई. में चन्देलों के विरुद्ध, 1234 से 35 ई. में कालिंजर, उज्जैन व भिलाई के विरुद्ध सफल अभियान किये। दोआब क्षेत्र के विद्रोहियों का दमन किया।
अवध में ",पिरथू विद्रोह" इल्तुतमिश के ही शासनकाल में हुआ था। जिसका उसने सफलता पूर्वक दमन किया।
इल्तुतमिश की मृत्यु
इल्तुतमिश की मृत्यु 30 अप्रैल 1236 ई. में हुई। जब वह खोखरों के दमन के लिए बामियान (बयाना) की ओर प्रस्थान किया। किन्तु मार्ग में वह बीमार हो गया। इस कारण उसे वापस दिल्ली लाया गया। जहाँ उसकी मृत्यु हो गयी। खोखरों के विरुद्ध यह उसका अन्तिम अभियान था।
इल्तुतमिश की मुद्रा व्यवस्था
दिल्ली सल्तनत की मुद्रा प्रणाली में इल्तुतमिश का सर्वाधिक योगदान रहा। वह पहला तुर्क शासक था जिसने "शुद्ध अरबी सिक्के" चलवाए। उसने चांदी का टंका और तांबे का जीतल नामक दो प्रमुख सिक्के चलवाए। उसका चांदी का टंका 175 ग्रेन का था।
सिक्कों पर खलीफा का नाम अंकित करवाया तथा स्वयं अपने लिए "शक्तिशाली सम्राट, धर्म और राज्य का तेजस्वी सूर्य, सदा विजयी इल्तुतमिश" जैसे शब्द अंकित करवाये।
सिक्कों पर हिन्दुओं के प्रचलित प्रतीक चिन्ह "शिव का नन्दी और चौहान घुड़सवार" भी होते थे। इल्तुतमिश प्रथम सुल्तान था जिसके सिक्के पश्चिमी देशों के सिक्कों के समान थे।
साहित्य एवं स्थापत्य के क्षेत्र में योगदान
इल्तुतमिश एक विजेता और अच्छा प्रशासक होने के साथ साथ कला और संस्कृति का पोषक था। वह विद्वानों और योग्य व्यक्तियों का सम्मान करता था। उसके दरबार में "मिनहाज-उस-सिराज और मलिक ताजुद्दीन" जैसे विद्वान रहते थे।
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निजामुलमुल्क मुहम्मद जुनैदी, मलिक कुतुबुद्दीन हसन गोरी और फखरुल-मुल्क इसामी जैसे योग्य व्यक्तियों को उसने दरबार में आश्रय दिया था। उसने निजामुलमुल्क मुहम्मद जुनैदी को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। मदरसा-ए-मुइज्जी (दिल्ली) तथा नासिरी मदरसा की स्थापना इल्तुतमिश ने करवायी।
स्थापत्य कला के क्षेत्र में इल्तुतमिश का योगदान महत्वपूर्ण है। उसने दिल्ली तथा दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में सुन्दर भवनों का निर्माण करवाया तथा कुतुबमीनार को पूर्ण करवाया। इसके अतिरिक्त उसने जोधपुर में अतारिकन का दरवाजा, बदायूं में जामा मस्जिद व हौज ए शम्सी तथा शम्सी ईदगाह, दिल्ली में एक मदरसा और मस्जिद का निर्माण करवाया।
1231 ई. में उसने सुल्तानगढ़ी नामक मकबरा बनवाया। इल्तुतमिश को भारत में प्रथम मकबरा निर्मित कराने का श्रेय प्राप्त है।
इल्तुतमिश की उपलब्धियां
●प्रथम मुस्लिम शासक जिसने शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया।
●प्रथम तुर्क सुल्तान जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलवाये।
●इक्ता व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया।
●राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया।
●दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान जिसने केन्द्र के नियंत्रण में एक स्थायी सेना का गठन किया।
●भारत में प्रथम मकबरा निर्मित करवाने का श्रेय इसी को दिया जाता है।
●इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
●तुर्कान-ए-चिहालगानी का गठन
अजम के विभिन्न भागों से लाये गये तुर्क दासों में से इल्तुतमिश ने 40 दासों का एक दल बनाया। जिसे तुर्कान-ए-चिहालगानी कहा गया। इस दल के सभी सदस्य पूरी तरह सुल्तान के नियंत्रण में थे तथा सुल्तान के प्रति वफादार थे।
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