रजिया सुल्तान|Razia Sultan

रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की प्रथम और अन्तिम मुस्लिम शासिका थी। उसका जन्म 1205 ई. बदायूं में हुआ था।

जब इल्तुतमिश के पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु हो गयी तब इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाया। किन्तु इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश बड़े पुत्र रुकनुद्दीन फिरोजशाह को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया।

रुकनुद्दीन विलासी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। अतः दिल्ली की जनता व अमीरों ने मिलकर उसे पदच्युत कर दिया और रजिया सुल्तान को दिल्ली के सिंहासन पर बैठाया।

रजिया

रजिया में समस्त प्रशासनिक गुण एवं योग्यतायें थी। राजगद्दी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने के पश्चात उसने प्रशासन का पुनर्गठन किया। जिससे राज्य में शान्ति स्थापित हो गयी।

रजिया सुल्तान की समस्याएं


 रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर दिल्ली की जनता व दिल्ली के तुर्क अमीरों के सहयोग से बैठी। जिससे दिल्ली के बाहर के अन्य तुर्क अमीर जैसे-निजामुलमुल्क जुनैदी, मलिक अलाउद्दीन जानी, मलिक सैफुद्दीन कूची, मलिक इजुद्दीन कबीर खां एवं मलिक इजुद्दीन सलारी आदि रजिया के प्रबल विरोधी बन गये। इन सभी ने मिलकर उसको पदच्युत करने के उद्देश्य से दिल्ली की ओर कूच किया।
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 रजिया सुल्तान ने अवध के इक्तादार नुसरतुद्दीन तायसी को विद्रोहियों को शान्त करने के लिए भेजा। किन्तु सैफुद्दीन कूची ने उसे बन्दी बना लिया। अतः रजिया ने विद्रोही संगठन के विनाश का निश्चय किया।

 सेना के साथ वह दिल्ली से बाहर निकली इस समय रजिया की सैन्य स्थिति कमजोर थी। अतः उसने कूटनीति से काम लिया। उसने इजुद्दीन सलारी इजुद्दीन कबीर खां को गुप्त रूप से अपनी ओर मिला लिया। अब उसने वजीर निजामुलमुल्क जुनैदी व अन्य विद्रोही मलिकों को कैद करने की योजना बनायी।

 मलिकों को इस योजना का पता चल गया और वे शिविर छोड़कर भाग गये। इस प्रकार उसने विद्रोह को कुचलने में सफलता पायी।

रजिया सुल्तान के कार्य


सुल्तान की शक्ति एवं सम्मान में वृद्धि करने तथा प्रशासन से सीधा सम्बन्ध स्थापित करने के लिए रजिया ने अपने व्यवहार में परिवर्तन किया। उसने पर्दा प्रथा को त्यागकर पुरुषों की तरह "कुबा" (कुर्ता) एवं "कुलाह" (टोपी) पहनकर दरबार में उपस्थित होना प्रारम्भ किया।

 उसने विद्रोही अमीरों के दमन के बाद शासन का पुर्नगठन आरम्भ किया। उसका प्रमुख लक्ष्य शासन से तुर्की गुलाम सरदारों के प्रभाव को समाप्त करना था। इसके लिए रजिया सुल्तान ने अपने विश्वासपात्र सरदारों को पदोन्नत किया।

 उसने इख्तियारुद्दीन एतगीन को "अमीर-ए-हाजिब" तथा एक अबीसीनियन मलिक जमालुद्दीन याकूत को "अमीर-ए-आखूर" (अस्तबल का प्रमुख) बनाया।

 जमालुद्दीन याकूत रजिया का कृपा पात्र था। वह रजिया को घोड़ पर बैठते समय हाथों का सहारा देता था।

 अमीर-ए-आखूर के पद पर केवल तुर्की अधिकारी ही नियुक्त किये जाते थे। गैर तुर्क के अमीर-ए-आखूर बनने से तुर्क अमीर विरोध में होने लगे।

रजिया सुल्तान का पतन


रजिया ने तुर्क सामन्तों की शक्ति को तोड़ने के लिए गैर तुर्क सरदारों को प्रोत्साहन एवं प्रोन्नति देना प्रारम्भ किया।
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 गैर तुर्क सरदारों की प्रोन्नति देख तुर्क सरदारों में असंतोष बढ़ने लगा। अतः वे रजिया को पदच्युत करने की सोचने लगे। इस आशय की पूर्ति हेतु सर्वप्रथम लाहौर के इक्तादार कबीर खां अयाज ने विद्रोह किया। किन्तु रजिया ने विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन कर दिया।

 इस विद्रोह के दमन के दस दिन बाद तवर हिन्द (भटिंडा) के इक्तादार इख्तियारुद्दीन अल्तुनिया ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने के लिए रजिया सुल्तान तवर हिन्द पहुँची।

 अल्तुनिया ने रजिया को पराजित कर भटिण्डा के किले में कैद कर दिया। अब तुर्क अमीरों ने इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहराम शाह को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया।

रजिया का सिंहासन हेतु पुनः प्रयास


रजिया को सत्ता से हटाने में अल्तुनिया ने जो भूमिका निभाई थी उसके अनुसार उसे कोई लाभ नहीं मिला। अतः वह आन्तरिक रूप से असंतुष्ट को गया।

 रजिया ने अल्तुनिया के इस असन्तोष का लाभ उठाकर उससे सम्पर्क किया और विवाह कर लिया। वह अल्तुनिया की सहायता से अपना सिंहासन पुनः प्राप्त करना चाहती थी। अल्तुनिया को भी अपने सम्मान और पद में वृद्धि की आशा थी।

अल्तुनिया ने खोखरों, जाटों और राजपूतों को एकत्र कर एक सेना तैयार की। अल्तुनिया रजिया के साथ अपनी सेना लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा। किन्तु बहराम शाह ने उसे पराजित कर दिया।

 वापस लौटते समय कैथल (हरियाणा) नामक स्थान पर डकैतों ने 25 दिसम्बर 1240 ई. में अल्तुनिया तथा रजिया सुल्तान को मार डाला।

रजिया सुल्तान का मूल्यांकन


 रजिया का शासनकाल अत्यन्त सीमित रहा। वह मात्र 3 वर्ष 6 माह तक ही शासन कर पायी। निश्चित ही वह इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों में सबसे योग्य थी। उसमें सभी बादशाही गुण विद्यमान थे। वह राजनैतिक दूरदर्शिता और योग्यता से परिपूर्ण थी।
 सर्वप्रथम उसने तुर्क सामन्त वर्ग की शक्ति को तोड़ने और गैर तुर्क शासक वर्ग की शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया। उसने ख्वारिज्म के शासक हसन करगुल को सैनिक सहायता देने से इन्कार कर इल्तुतमिश की तरह मंगोल आक्रमण से दिल्ली सल्तनत की रक्षा की।

 रजिया की असफलता का मूल कारण शासक वर्ग में व्याप्त उसके प्रति विरोध की भावना थी। उसका स्त्री होना भी उसकी असफलता का एक कारण माना जाता है।

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