जीवों में पायी जाने वाली प्रोटीन को संरचना, स्रोत तथा गुणों के आधार पर तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।
●स्रोत के आधार पर प्रोटीन का वर्गीकरण
स्रोत के आधार पर प्रोटीन को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली प्राणी जगत से प्राप्त होने वाली प्रोटीन, दूसरी वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाली प्रोटीन।
1-प्राणी स्रोत से पायी जाने वाली समस्त प्रोटीन को जन्तु प्रोटीन कहते हैं। मांस, मछली, अण्डे, दूध तथा दूध से बनने वाले पदार्थ आदि के प्रोटीन इस समूह में आते हैं।
2-वनस्पति जगत जैसे- पेड़ पौधों से पायी जाने वाली प्रोटीन को वनस्पति प्रोटीन कहते हैं। अनाज, दाल, सूखे मेवे, तिल आदि में उपस्थित प्रोटीन इस समूह में आती है।
गुणों के आधार पर प्रोटीन का वर्गीकरण
प्रोटीन का वर्गीकरण इसके भौतिक तथा रासायनिक गुणों के आधार पर भी किया जाता है। गुणों के आधार पर प्रोटीन को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
1-सरल या शुद्ध प्रोटीन
वे प्रोटीन जो जल अपघटन के पश्चात केवल अमीनो अम्ल में ही अपघटित होते हैं। सरल या शुद्ध प्रोटीन की श्रेणी में आते हैं। अणुओं की संरचना और आकृति के आधार पर ये दो प्रकार के होते हैं।
●गोलाकार प्रोटीन (globular protein)
ये जल, नमक, अम्लों और क्षारों के विलयनों में घुलनशील होती हैं। ये संरचना में जटिल अणुओं वाली प्रोटीन्स हैं जो अपने घोलकों में सुगमता से विसरणशील कोलाइडल घोल बनाती हैं।
ग्लोबुलर प्रोटीन्स के अणु वलित और कुण्डलित होकर प्रायः गोल से बने रहते हैं। ये अणु संकुचनशील नहीं होते हैं। इनका विशेष महत्व उपापचयी क्रियाओं में होता है।
सभी एंजाइम, कई हॉर्मोन्स, रोगाणुओं से लड़ने वाले एंटीबॉडीज, अण्डों की एल्बुमिन, रुधिर प्लाज्मा की ग्लोब्युलिन, हीमोग्लोबिन की ग्लोबिन, पेशियों की मायोग्लोबिन, न्यूक्लिओप्रोटीन की हिस्टोन, अनाज की ग्लुटेलिन, प्लाज्मा की फाइब्रिनोजन, दालों की प्रोलैमिन आदि सब गोलाकार प्रोटीन के उदाहरण हैं।
●तन्तुवत प्रोटीन
ये जल में अघुलनशील संरचनात्मक प्रोटीन हैं जो जन्तु की शरीर रचना में भाग लेती हैं। इनके अणु लम्बे, धागेनुमा और संकुचनशील होते हैं।
संयोजी ऊतकों, कण्डराओं, उपास्थियों, हड्डियों आदि की कोलैजन, इलास्टिन एवं रेटिकुलिन प्रोटीन।
त्वचा, सींगों, नाखूनों, पंखों, बालों आदि की किरैटिन प्रोटीन।
रेशम की फाइब्रोइन, पेशियों की ऐक्टिन तथा मायोसीन, रक्त के थक्के की फाइब्रिन। उपर्युक्त सभी प्रोटीन तन्तुवत प्रोटीन्स के उदाहरण हैं।
2-अनुबद्ध प्रोटीन्स (conjugated proteins)
जब सरल प्रोटीन से कोई प्रोस्थेटिक समूह संयुक्त हो जाता है तब इस प्रकार के प्रोटीन बनते हैं। इसी प्रोस्थेटिक समूह के रासायनिक संघटन के आधार पर अनुबद्ध प्रोटीन निम्नलिखित प्रकार की होती हैं।
●फॉस्फोप्रोटीन्स-- फॉस्फोरिक अम्ल से जुड़ी प्रोटीन जैसे-दूध की कैसीन।
Phosphoprotein--> protein+phosphoric acid. Example: casein (milk), Ovavittelin (egg yolk)
●न्यूक्लिओप्रोटीन्स-- हिस्टोन नामक प्रोटीन से न्यूक्लिक अम्लों के जुड़ने से न्यूक्लिओप्रोटीन का निर्माण होता है। न्यूक्लिओप्रोटीन कोशिकाओं के केन्द्रक में क्रोमैटिन बनाती हैं।
Nucleoprotein--> Protein + Nucleic Acid
●ग्लाइकोप्रोटीन्स-- प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट के संयोग से बनती हैं। जैसे- रुधिर की ग्लोब्युलिन तथा संयोजी ऊतकों, उपास्थियों, आहारनाल, लार आदि में पाया जाने वाला श्लेष्म इसी का बना होता है। ग्लाइकोप्रोटीन्स को म्यूकोप्रोटीन्स भी कहते हैं।
Glycoprotein--> Protein + Carbohydrates
●क्रोमोप्रोटीन्स-- ये प्रोटीन्स तथा रंगा कोशिकाओं (colour pigment) के यौगिक हैं। रुधिर की हीमोग्लोबिन एवं हीमोग्लोसायनिन, माइटोकॉन्ड्रिया की साइटोक्रोम इसके उदाहरण हैं।
●लाइपोप्रोटीन्स-- जब प्रोटीन से लिपिड्स या वसा संयुक्त होती है तब इस प्रकार के प्रोटीन्स बनते हैं। जैसे- अण्डे की जर्दी की लाइपोविटेलिन।
3-व्युत्पन्न प्रोटीन्स (Derived proteins)
इस समूह में वे प्रोटीन सम्मिलित हैं जो सरल या अनुबद्ध प्रोटीन के अधूरे जल अपघटन या विकृतीकरण (denaturation) से व्युत्पन्न होते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन्स छोटी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएं होती हैं जो प्रोटीन के पाचन में कुछ समय के लिए बनती हैं। इस समूह की प्रोटीन को दो उपसमूहों में बांटा जाता है।
●प्राथमिक व्युत्पन्न प्रोटीन-- ये प्रोटीन उन प्रक्रमों से बनती हैं, जिनके द्वारा प्रोटीन अणु तथा उनके गुणों में बहुत कम परिवर्तन आते हैं। जैसे- मेटाप्रोटीन, स्कन्दित प्रोटीन आदि।
●द्वितीयक व्युत्पन्न प्रोटीन-- ये प्रोटीन प्राकृतिक प्रोटीन पर जल, ताप, एंजाइम तथा अन्य रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से बनते हैं। जैसे- प्रोटियोसिस, पैप्टोन्स, पेप्टाइड्स, अमीनो अम्ल।
अमीनो अम्लों की उपस्थिति के आधार पर प्रोटीन का वर्गीकरण
●पूर्ण प्रोटीन-- वे प्रोटीन जिनमें सभी आवश्यक अमीनो अम्ल इस अनुपात में उपस्थित रहते हैं कि यदि आहार में सिर्फ यही प्रोटीन सम्मिलित हो पाये तो भी शरीर की वृद्धि एवं विकास समुचित रूप से होता है। पूर्ण प्रोटीन कहे जाते हैं। प्राणी जगत से प्राप्त होने वाली सभी प्रोटीन इस समूह में आती हैं। जैसे- दूध की कैसीन, अण्डे की एल्ब्युमिन आदि तथा सोयाबीन की ग्लाइसिनिन।
●आंशिक रूप से पूर्ण प्रोटीन-- वे प्रोटीन जिनमें एक या दो आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी होती है, आंशिक रूप से पूर्ण प्रोटीन कहलाती हैं। इस प्रकार की प्रोटीन आहार में ग्रहण करने से शारीरिक वृद्धि नहीं होती। ये प्रोटीन शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत निरन्तर करती रहती हैं। दालों, अनाजों आदि की प्रोटीन इस समूह में आती हैं। अनाजों की प्रोटीन में लाइसिन तथा दालों की प्रोटीन में मिथियोनिन नामक अमीनो अम्ल की कमी पायी जाती है।
●अपूर्ण प्रोटीन-- वे प्रोटीन जिनमें कई आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी होती है अपूर्ण प्रोटीन कहलाती हैं। ये प्रोटीन अनुपयोगी होती हैं। मक्के में पायी जाने वाली जेन (zein) तथा फलों की जेलेटिन इसके उदाहरण हैं।
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