कॉर्बोक्सिलिक समूह युक्त कार्बनिक अम्ल जो वसा के निर्माण में भाग लेते हैं, वसीय अम्ल कहलाते हैं। वसीय अम्ल अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे- पाल्मिटिक, स्टीयरिक, ओलीक आदि।
संतृप्त वसीय अम्ल
जिन वसीय अम्लों में कार्बन-कार्बन परमाणुओं के मध्य द्वि-बन्ध (double bond) नहीं पाया जाता है। संतृप्त वसीय अम्ल कहलाते हैं। जैसे- ब्यूटीरिक अम्ल, पामीटिक अम्ल, स्टीयरिक अम्ल तथा कैप्रीलिक अम्ल आदि।
संतृप्त वसा अम्लों से निर्मित वसायें भी संतृप्त होती हैं। इन अम्लों से निर्मित वसायें 20℃ से कम ताप पर जमने लगती हैं। अधिकांश जन्तु-वसायें संतृप्त अम्लों के संयोजन से बनी होती हैं। इसीलिए सर्दी के मौसम ये ठोस या अर्द्धठोस हो जाती हैं। जैसे- घी, चर्बी, मक्खन आदि।
असंतृप्त वसीय अम्ल
वसा के निर्माण में भाग लेने वाले वह अम्ल जिनमें कार्बन-कार्बन परमाणुओं के मध्य द्वि-बन्ध उपस्थित होता है। असंतृप्त वसीय अम्ल कहलाते हैं। जैसे- लिनोलीक अम्ल, ओलीक अम्ल ऐरिचिडोनिक अम्ल आदि।
असंतृप्त वसा अम्लों से निर्मित वसायें भी असंतृप्त होती हैं। ये सदा तरल अवस्था में रहती हैं। अधिकांश पादप वसायें जैसे- मूंगफली का तेल, तिल का तेल, सरसों का तेल, सूरजमुखी का तेल आदि असंतृप्त वसायें हैं।
आवश्यक वसीय अम्ल
शरीर में समस्त जैविक क्रियाओं के सुचारू रूप से संचालन के लिए वसीय अम्लों की आवश्यकता होती है। इनमें से कुछ वसीय अम्ल शरीर में उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु ये शरीर के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। अतः इन्हें बाहर से ग्रहण करना पड़ता है। इसीलिए इन्हें आवश्यक वसीय अम्ल कहते हैं। जैसे- लिनोलीक अम्ल, ऐरिचिडोनिक अम्ल आदि।
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लिनोनीक अम्ल एक आवश्यक वसीय अम्ल है। यह शरीर की रक्त वाहिनियों को सेमीपरमिएबल बनता है। शरीर से निकलने वाले पसीने की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए रक्त वाहिकाओं का सेमीपरमिएबल होना आवश्यक होता है।
अन्य पोस्ट-- वसा के स्रोत
शरीर में लिनोनीक अम्ल की मात्रा अधिक होने पर यह लिनोलेनिक अम्ल में परिवर्तित हो जाता है तथा लिनोलेनिक अम्ल की अधिक मात्रा ऐरिचिडोनिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है।
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