पृथ्वी के भू-पटल पर पाये जाने वाले सभी प्रकार के मुलायम व कठोर पदार्थ "चट्टान" कहे जाते हैं। चट्टानें ग्रेनाइट तथा बालुका पत्थर की भाँति कठोर भी हो सकती हैं और चीका मिट्टी तथा बालू की भाँति मुलायम भी। इनका निर्माण विभिन्न प्रकार के खनिजों के सम्मिश्रण से हुआ है।
कुछ चट्टानें एक ही खनिज से निर्मित होती हैं। जैसे- बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, संगमरमर आदि और कुछ चट्टानें एक से अधिक खनिजों के सम्मिश्रण से बनती हैं। जैसे-ग्रेनाइट, स्फटिक, फेल्सफार और अभ्रक आदि तथा कुछ चट्टानें अनेक प्रकार की धातु तथा अधातु खनिजों के जटिल मिश्रण से बनती हैं। जैसे-एलुमिना, कोग्लोमरेट, लिमोनाइट अयस्क आदि।
पृथ्वी के क्रस्ट में तत्वों की संख्या लगभग 110 है, किन्तु इसमें 8 तत्व ही प्रमुख (98.59%) रूप से पाये जाते हैं।
1-ऑक्सीजन (46.8%),
2-सिलिकन (27.7%),
3-एल्युमिनियम (8.13%),
4-लोहा (5%),
5-कैल्सियम (3.63%),
6-सोडियम (2.83%),
7-पोटैशियम (2.49%),
8-मैग्नीशियम (2.09%)।
अन्य तत्व अत्यन्त सूक्ष्म (1.41%) मात्रा में होते हैं।
यद्यपि भू-पटल में खनिजों की संख्या 2000 से भी अधिक है। परन्तु केवल 24 खनिजों को ही "चट्टान निर्माता खनिज" की संज्ञा दी जाती है। इनमें से भी मात्र 6 खनिज मुख्य रूप से पाये जाते हैं। जैसे-फेल्सपार, क्वार्टज, पोयरॉक्सीस, एम्फीबोल्स, अभ्रक व ओलीविन आदि।
चट्टान निर्माणकारी खनिज वर्गों में सिलिकेट समूह प्रमुख हैं। इसके बाद ऑक्साइड तथा कार्बोनेट समूह आते हैं।
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चट्टान निर्माणकारी खनिज वर्ग
●सिलिकेट समूह--->फेल्सपार, क्वार्टज व अभ्रक आदि।
●कार्बोनेट समूह--->कैल्साइट व डोलोमाइट आदि
●सल्फाइड्स समूह--->पाइराइट व लौह सल्फाइड आदि।
●ऑक्साइड समूह--->बॉक्साइट, हेमेटाइट एवं मैग्नेटाइट आदि।
चट्टानों के प्रकार
1-आग्नेय चट्टान (Igneous Rocks)
आग्नेय शब्द लेटिन भाषा के इग्रीस से बना है। जिसका अर्थ है आग। ज्वालामुखी उद्गार के समय भू-गर्भ से निकलने वाला लावा धरातल पर जमकर ठण्डा हो जाने के पश्चात् आग्नेय शैलों में परिवर्तित हो जाता है।
आग्नेय चट्टानों को "प्राथमिक चट्टानें" भी कहते हैं। क्योंकि पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात् सर्वप्रथम इन्हीं का निर्माण हुआ। ये रवेदार, पर्तविहीन एवं कठोर प्रकृति की चट्टानें हैं। इन चट्टानों में "जीवाश्म" नहीं पाये जाते हैं।
अछिद्रमय होने के कारण रासायनिक अपक्षय का इन चट्टानों पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। किन्तु भौतिक व यांत्रिक अपक्षय का अधिक प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण इन चट्टानों में विघटन और वियोजन होता है।
रूपान्तरित तथा अवसादी चट्टानें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनसे ही निर्मित होती हैं। क्रस्ट का लगभग 90% भाग आग्नेय चट्टानों से बना होता है। ग्रेनाइड, बेसाल्ट, पेग्माटाइट, डायोराइट, ग्रैंबो, पिचस्टोन, प्यूमिस आदि आग्नेय चट्टानों के उदाहरण हैं।
आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण
◆उत्पत्ति के आधार आग्नेय चट्टानों को दो वर्गों में बांटा गया है।
★आंतरिक आग्नेय शैल
जब मैग्मा सतह से नीचे ही ठण्डा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो आंतरिक आग्नेय शैल का निर्माण होता है। इसके दो उपवर्ग हैं।
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●पातालीय चट्टानें (Plutonic Rocks)
इस प्रकार की आग्नेय चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के अन्दर अधिक गहराई में होता है। इनका नामकरण यूनानी देवता "प्लूटो" नाम पर किया गया है, जो पाताली देवता माने जाते हैं। चूँकि पातालिक चट्टानों के बनने में का जमाव व ठण्डा होना अधिक गहराई में होता है, जहाँ पर तापमान अधिक होता है। अतः यहाँ लावा के ठण्डा होने की गति मन्द होती है। इस कारण इन चट्टानों में रवे अधिक व बड़े-बड़े होते हैं। जैसे- ग्रेनाइड, ग्रेबो व डाइओराइट आदि।
●मध्यवर्ती चट्टानें
ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला मैग्मा या लावा धरातल पर न पहुँचकर मार्ग में मिलने वाली दरारों, छिद्रों एवं नलियों में ही जमकर ठोस हो जाता है, तो ऐसी चट्टानों को मध्यवर्ती चट्टानें कहा जाता है। कालान्तर में अपरदन क्रिया के उपरान्त ये चट्टानें धरातल पर दृष्टिगोचर होने लगती हैं। डोलेराइट तथा मैग्नेटाइट इन चट्टानों के उदाहरण हैं। मध्यवर्ती चट्टानों के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं
•लैकोलिथ या छत्रशिला
इनका निर्माण लावा के गुम्बदाकार जमाव से होता है।
•भित्तिशिला या डाइक
जब लावा बाहर निकलते समय अवसादी चट्टानों के बीच एक लम्बवत दीवार व बाँध के रूप में जम जाता है। तो उसे भित्तिशिला कहते हैं। जैसे-सिंहभूमि जिले में पाये जाने वाले डाइक
•पत्रकशिला या सिल
जब लावा अवसादी चट्टानों की परतों में प्रवेश कर समानान्तर तहों के रूप में जम जाता है। तो उसे पत्रकशिला कहते हैं। यह छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में पाये जाते हैं।
•लैपोलिथ
अवसादी चट्टानों में जब लावा जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है। तो उस आकृति को लैपोलिथ कहा जाता है। इस प्रकार की चट्टानें दक्षिणी अमेरिका में मिलती हैं।
•फैकोलिथ (Phacolith)
फैकोलिथ भूमि के भीतर लावा का जमाव होता है।
•बैथोलिथ (Batholith)
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ये मुख्यतः पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ ज्वालामुखी क्रियाशील होते हैं, धरातल के नीचे खड़े ढाल वाले गुम्बद के रूप में लावा के जमाव से बनते हैं।
★बाह्म आग्नेय शैल
ज्वालामुखी उद्भेदन के समय कभी कभी मैग्मा भू-पर्पटी के ऊपर आ जाता है। तो तेजी से ठण्डा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है और बाह्म चट्टान का निर्माण करता है। इसे "ज्वालामुखी चट्टान" भी कहते हैं। इन चट्टानों के रवे बहुत छोटे होते हैं। जैसे बेसाल्ट चट्टानें,। इन चट्टानों के क्षरण से ही काली मिट्टी का निर्माण होता है, जिसे रेगड़ कहते हैं। रंध्रविहीन ग्लासी मैग्मा के अन्तर्गत ऑब्सीडियन, प्यूमिस, परलाइट व पिचस्टोन आते हैं।
◆रासायनिक संरचना के आधार पर आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं।
●अम्लीय चट्टानें
इनमें बालू तथा सिलिका की मात्रा 65 से 85% तक होती है। जैसे-ग्रेनाइड, रायोलाइट, पिचस्टोन एवं ऑब्सीडियम आदि।
●क्षारीय चट्टानें
इनमें सिलिका की मात्रा 45 से 55% तक होती है। शेष लोहा, चूना व मैग्नीशियम के अंश होते हैं। जैसे-बेसाल्ट व ग्रैंबो।
आग्नेय चट्टानें प्रायद्वीपीय भारत में अधिक पायी जाती हैं। छोटा नागपुर की गुम्बदनुमा पहाड़ियां, राँची का पठार, राजस्थान का अरावली पर्वत तथा राजमहल की श्रेणी इसी प्रकार की चट्टानों से बने हैं। अजन्ता की गुफाएँ आग्नेय चट्टानों को ही काट कर बनायी गयी हैं।
अधिकांश खनिज व धातु अयस्क इसी प्रकार की चट्टानों में पाए जाते हैं। लौह अयस्क, सोना, चाँदी, जस्ता, ताँबा, मैंगनीज, सीसा, निकिल, क्रोमाइट एवं प्लेटिनम आदि महत्वपूर्ण धातु खनिज आग्नेय चट्टानों में पाए जाते हैं। ग्रेनाइड जैसी कठोर चट्टानों का उपयोग भवन निर्माण व भवनों को सजाने में किया जाता है।
2-अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
पृथ्वी तल पर आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण के फलस्वरूप निर्मित चट्टानों को "अवसादी चट्टानें" कहते हैं। इनकी रचना परतों के रूप में होने के कारण इन्हें "प्रस्तरित या परतदार चट्टान" भी कहते हैं। इनके निर्माण में जैविक अवशेषों का भी योगदान होता है।
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अधिकांश जीवाश्म एवं खनिज तेल इसी प्रकार की चट्टानों में पाये जाते हैं। सम्पूर्ण भू-पृष्ठ के लगभग 75% भाग पर अवसादी शैलों का विस्तार है। परन्तु क्रस्ट निर्माण में इनका योगदान मात्र 5% है।
अवसादी चट्टानों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया गया है।
●निर्जीव अवसादी चट्टानें---> प्रवाल, लाइम स्टोन, चिकनी मिट्टी, sand स्टोन आदि।
●जैव अवसादी चट्टानें---> खड़िया, जिप्सम, डोलोमाइट, कोयला, आयल शैल आदि।
●रासायनिक क्रिया से निर्मित अवसादी चट्टानें---> सेंधा नमक, ऊलाइट, stalactite, Stalagmite आदि।
अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ
●चट्टानें भिन्न भिन्न रूप की होती हैं जिनका निर्माण छोटे बड़े भिन्न-भिन्न कणों से होता है।
●इन चट्टानों में परतें होती हैं जो एक दूसरे पर जमीं होती हैं।
●इन चट्टानों में वनस्पति एवं जीव जन्तुओं के जीवाश्म पाये जाते हैं। इनसे कोयला, स्लेट, संगमरमर, नमक, पेट्रोलियम आदि खनिज पाये जाते हैं।
●ये चट्टानें अपेक्षतया मुलायम होती हैं।
●ये छिद्रमय होती हैं।
3-रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)
उच्च ताप एवं दबाव के कारण आग्नेय तथा अवसादी चट्टानों के संगठन एवं स्वरुप में परिवर्तन आ जाता है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप बनी चट्टानों को कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें कहते हैं।
यह सर्वाधिक कठोर एवं दृढ़ चट्टानें होती हैं। इनमें जीवाश्म नहीं मिलते। किन्तु इन चट्टानों में हीरा, संगमरमर, अभ्रक एवं क्वार्टजाइट आदि पाये जाते हैं।
◆आग्नेय शैलों के रूपान्तरण से बनी रूपान्तरित चट्टानें
●ग्रेनाइड के रूपांतरण से नीस
(ग्रेनाइड--->ग्रेनाइड चट्टानें कठोर, क्रिस्टलीय व मोटे दाने वाली चट्टानें होती हैं। ये पृथ्वी के गर्भ में विस्तृत आकार में पायीं जाती हैं। ये चट्टानें ऑर्थोक्लेज, फेल्सपार, माइका, क्वार्टज तथा हार्न ब्लैंड आदि खनिजों से बनती हैं।)
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●बेसाल्ट के रूपांतरण से एम्फीबोलाइट व सिस्ट
(बेसाल्ट--->बेसाल्ट चट्टानें कठोर व महीन दाने वाली गहरे हरे रंग से लेकर काले रंग तक की होती हैं। नीले बेसाल्ट को ट्रेप कहते हैं। इनमें फेल्सपार, औगाइट, मैग्नेटाइट आदि खनिज प्रमुखता से पाये जाते हैं। सामान्तया इनमें क्वार्टज का अभाव होता है। दक्षिण भारत में बेसाल्ट अधिकता में पाया जाता है राजमहल पर्वत माला बेसाल्ट चट्टानों के लिए प्रसिद्ध है।)
◆अवसादी चट्टानों के रूपान्तरण से बनी रूपान्तरित चट्टानें
अवसादी रूपान्तरित
●शैल स्लेट
●चुना पत्थर संगमरमर
●चॉक एवं डोलोमाइट संगमरमर
●बालुका पत्थर क्वार्टजाइट
●कांग्लोमेरेट क्वार्टजाइट
●बिटूमिनस कोयला ग्रेफाइट व हीरा
c-रूपान्तरित चट्टानों के पुनः रूपान्तरण से बनी चट्टानें
●स्लेट से फाइलाइट
●फाइलाइट से सिस्ट
●ग्रैंबो से सरपेंटाइन
चट्टान चक्र
पृथ्वी पर मुख्य रूप से आग्नेय, अवसादी व रूपान्तरित चट्टानें पायी जाती हैं। इनकी रचना की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। जिसे चट्टान चक्र कहते हैं।
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ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जनकारी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी शिक्षा
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