सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएं

सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताओं में सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, धार्मिक जीवन, कला एवं संस्कृति, राजनैतिक एवं सामाजिक संगठन आदि का अध्ययन करते हैं।

राजनैतिक संगठन

सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 600 वर्षों तक निरन्तर कायम रही। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ कोई न कोई उच्च केन्द्रीय राजनीतिक संगठन रहा होगा।

dr. R. S. शर्मा के अनुसार सिंधु सभ्यता के लोगों ने सबसे अधिक ध्यान वाणिज्य और व्यापार की ओर दिया। अतः हड़प्पा सभ्यता का शासन सम्भवतः "वणिक वर्ग" के हाथों में था। कुछ अन्य विद्वान जैसे- हंटर के अनुसार यहाँ की शासन व्यवस्था जनतान्त्रिक पद्धति से चलती थी।

◆सिन्धु घाटी सभ्यता की सामाजिक विशेषताएं


सैन्धव समाज तीन वर्गों में विभाजित था। विशिष्ट वर्ग, खुशहाल मध्यम वर्ग, अपेक्षाकृत कमजोर  वर्ग। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि दुर्ग में निवास करने वाले लोग पुरोहित वर्ग के थे।
नगर क्षेत्र में व्यापारी, अधिकारी, सैनिक एवं शिल्पी रहते थे। जबकि नगर के निचले हिस्से में अपेक्षाकृत कमजोर वर्ग जैसे- कृषक, कुम्भकार, बढ़ई, नाविक, सोनार, जुलाहे तथा श्रमिक रहते थे। हड़प्पा सभ्यता में सम्भवतः दास प्रथा प्रचलित थी।

सिन्धु घाटी के निवासी खाने पीने, वस्त्र एवं आभूषणों के शौकीन थे। आभूषण सोने, चाँदी एवं माणिक्य के बनाये जाते थे। हाथी दांत तथा शंख का उपयोग अलंकरण तथा चूड़ियां बनाने के लिए किया जाता था। दर्पण ताँबे के बने थे जबकि कंघियाँ और सुइयाँ हाथी दांत की बनी हुई थीं।
हड़प्पा से एक श्रृंगारदान मिला है तथा चन्हूदड़ो से एक अंजनशालिका तथा लिपिस्टिक प्राप्त हुई है। नौसारो से स्त्रियों की मांग में सिन्दूर लगाये जाने के साक्ष्य मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए पाँसे खेलना, शिकार तथा नृत्य आदि किया करते थे।

●स्त्रियों की दशा

सबसे अधिक नारी मृण्मूर्तियां मिलने के कारण सैन्धव समाज मातृसत्तात्मक माना जाता है। परन्तु लोथल से तीन युगल शवाधान तथा कालीबंगा से एक युगल शवाधान मिला है जिससे अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ सती प्रथा का प्रचलन था।

◆सिंधु सभ्यता की आर्थिक विशेषताएं


सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन अत्यन्त विकसित अवस्था में था। आर्थिक जीवन के प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे।

कृषि

सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रतिवर्ष लायी गयी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी कृषि कार्य हेतु महत्वपूर्ण मानी जाती थी। इस उपजाऊ मैदान में मुख्य रूप से गेहूं तथा जौ की खेती की जाती थी। हड़प्पाई लोगों को कुल 9 फसलें ज्ञात थी। जौ की दो किस्में, गेहूं की तीन किस्में, कपास , खजूर, तरबूज, मटर, राई, सरसों और तिल।

कालीबंगा से "जुते हुए खेत" के साक्ष्य मिले हैं। मोहनजोदड़ो तथा बनवाली से मिट्टी के हल के खिलौने मिले हैं। कृषि कार्य के लिये सम्भवतः नदियों का जल, वर्षा का जल व कुँओं का उपयोग किया जाता था। बनावली से बढ़िया किस्म का जौ प्राप्त हुआ है। लोथल से चावल के अवशेष तथा रंगपुर से धान की भूसी प्राप्त हुई है।

मोहनजोदड़ो व अन्य स्थलों से सूती कपड़े के साक्ष्य मिले हैं। जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ कपास की खेती भी की जाती थी। कपास की खेती का विश्व में सबसे प्राचीनतम साक्ष्य "मेहरगढ़" से प्राप्त होता है। कपास सैन्धव वासियों की मूल फसल थी। यहीं से कपास यूनान गयी। इसी कारण यूनानवासी सिन्ध क्षेत्र को sindon कहने लगे।
इन्हें भी जानें-- हड़प्पा संस्कृति के स्थल
अनाज सम्भवतः कर के रूप में वसूला जाता था, क्योंकि प्रमुख नगरों से अन्नागार प्राप्त हुए हैं। लोथल से आटा पीसने की "पत्थर की चक्की के दो पाट" मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों तथा मोहरों पर अनेक पेड़ पौधों का अंकन मिलता है। इसमें पीपल, खजूर, नीम, नींबू एवं केला आदि प्रमुख हैं।

पशुपालन

हड़प्पाई लोग बहुत सारे पशु पालते थे। वे बैल, गाय, भैस, बकरी, भेड़, सुअर, कुत्ता, बिल्ली, गधे, ऊँट, गैंडे, बाघ, हिरन आदि से परिचित थे। उन्हें कूबड़ वाला सांड अधिक प्रिय था। हाथी और घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके हैं। परन्तु गुजरात के सुरकोटडा से घोड़े के अस्थिपंजर, राणाघुंडई से घोड़े के दाँत, लोथल से घोड़े की हड्डियां प्राप्त हुई। ऊंट की हड्डियां अनेक पुरास्थलों से बड़ी संख्या में पायी गयीं हैं। लेकिन किसी मुद्रा पर ऊँट का चित्र नहीं मिला है।

शिल्प एवं उद्योग धंधे

इस समय ताँबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था। तांबा राजस्थान के खेतड़ी से तथा टिन अफगानिस्तान से मगाया जाता था। सम्भवतः कांस्य शिल्पियों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था। कसेरों के अतिरिक्त राजगीरों तथा आभूषण निर्माताओं का समुदाय भी सक्रिय था।

मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है। कालीबंगा से मिले एक बर्तन में सूती कपड़े की छाप मिली है। यहीं से सूती वस्त्र में लिपटा हुआ एक उस्तरा भी मिला है। इन साक्ष्यों के आधार पर ऐसा लगता है कि इस समय सूती वस्त्र एवं बुनाई उद्योग काफी विकसित था।
मेसोपोटामिया को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती वस्त्र सम्भवतः प्रमुख सामग्री थे।

 हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त विशाल इमारतों से स्पष्ट है कि स्थापत्य महत्वपूर्ण शिल्प था। हड़प्पाई लोग नाव बनाने का कार्य भी करते थे। वे मिट्टी की मूर्तियां भी बनाते थे। मिट्टी के बर्तन बनाने का शिल्प अत्यन्त विकसित था।

सिन्धु घाटी सभ्यता के मृदभांड

इस समय बनने वाले सोने चाँदी के आभूषणों के लिए सोना चाँदी सम्भवतः अफगानिस्तान से तथा रत्न दक्षिण भारत से मगाया जाता था।
इस समय कुम्हार के चाक से निर्मित मृद्भांड काफी प्रचलित था। जिस पर गाढ़ी लाल चिकनी मिट्टी से पुताई कर काले रंग के ज्यामितीय एवं प्रकृति से जुड़े डिजाइन बनाये जाते थे।

युद्ध सम्बन्धी उपकरण

सिन्धु सभ्यता का मूल आधार कृषि एवं व्यापार था। ये लोग युद्ध से विमुख शांति प्रिय लोग थे। किन्तु अपनी सुरक्षा के प्रति पर्याप्त सजग थे। उन्होंने अपने नगरों को विशाल रक्षा प्राचीरों से सुरक्षित किया था। हड़प्पा सभ्यता से ऐसी सामग्री बहुत कम प्राप्त हुई हैं जिसे निश्चय पूर्वक अस्त्र शस्त्र की श्रेणी में रखा जा सके।

व्यापार और वाणिज्य

हड़प्पाई लोग सिन्धु सभ्यता क्षेत्र के भीतर पत्थर, धातु शल्क, आदि का व्यापार करते थे। लेकिन वे जो वस्तुयें बनाते थे उसके लिए कच्चा माल नगरों में उपलब्ध नहीं था। अतः उन्हें बाह्म देशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना पड़ा।

तैयार माल की खपत अपने क्षेत्रों में नहीं हो पाती थी अतः उन वस्तुओं का निर्यात बाह्म देशों में करना पड़ता था। इस प्रकार कच्चे माल की आवश्यकता तथा तैयार माल की खपत की आवश्यकता ने बाह्म देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाया।

बांट और मापतौल का व्यापारिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान था। हड़प्पा संस्कृति के बाटों की सबसे बड़ी विशेषता उनका घनाकार और 16 के गुणकों में होना था।

मोहनजोदड़ो से सीप तथा लोथल से हाथी दाँत से निर्मित एक पैमाना मिला है। हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार के यातायात के लिए नाव  बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का प्रयोग करते थे। बैलगाड़ियों में प्रयुक्त पहिये ठोस होते थे।

व्यापारिक सम्बन्ध

सैन्धव वासियों का मध्य एवं पश्चिमी एशिया के देशों के साथ घनिष्ट व्यापारिक सम्बन्ध था। अफगानिस्तान, फारस खाड़ी क्षेत्र, ईरान और ईराक से व्यापारिक सम्बन्ध के प्रमाण मिलते हैं।

लाजवर्द मणि एवं चाँदी अफगानिस्तान से आयात की जाती थी। अफगानिस्तान का बदख्शाँ क्षेत्र लाजवर्द मणि के लिए प्रसिद्ध था।
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने अफगानिस्तान में अपने व्यापारिक उपनिवेश बसाये थे। जिसमें शुर्तुगुई नामक व्यापारिक बस्ती प्रमुख हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग इन क्षेत्रों में सूती वस्त्र, हाथी दाँत से बनी वस्तुयें एवं इमारती लकड़ी आदि निर्यात करते थे।

मेसोपोटामिया के साथ व्यापारिक सम्बन्ध

मेसोपोटामिया तथा सिन्धु सभ्यता के बीच व्यापार उन्नत अवस्था था। मेसोपोटामिया में प्राप्त सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित अभिलेखों एवं मुहरों पर  "मेहुला" का जिक्र मिलता है। मेहुला सिन्धु क्षेत्र का प्राचीन नाम है।

सिन्धु सभ्यता से मेसोपोटामिया को सूती वस्त्र, इमारती लकड़ी, हाथी दाँत एवं पशु-पक्षी निर्यात किये जाते थे। मोहनजोदड़ो से मेसोपोटामिया का क्लोराइड प्रस्तर का टुकड़ा तथा हड़प्पा से खानेदार मनके मिले हैं। सैन्धव वासियों ने मिस्र के साथ भी व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।

आंतरिक व्यापार सम्बन्ध

सिन्धु सभ्यता का आन्तरिक व्यापार सम्बन्ध अत्यन्त विकसित अवस्था में था। गाँवों से खाद्य सामग्री आती थी और बदले में सूती वस्त्र एवं धातु की बनी वस्तुयें दी जाती थी। उद्योग धन्धे एवं शिल्पकार्यों के लिए कच्चा माल गुजरात, सिन्ध, राजस्थान, दक्षिण भारत, बलूचिस्तान आदि से मगाया जाता था।

मनके बनाने के लिए गोमेद गुजरात से आता था। तांबे का प्रधान श्रोत राजस्थान में स्थित खेतड़ी की खानें थीं। सोना कर्नाटक में स्थित "कोलार की हड्डी की खानों" से मिलता था।

◆सिन्धु सभ्यता की धार्मिक विशेषताएं


हड़प्पा सभ्यता के धार्मिक जीवन के बारे में अधिकांश जानकारी पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त होती है। जिनमें मिट्टी की मूर्तियां, पत्थर की छोटी मूर्तियां, मुहरें तथा मृद्भांड प्रमुख हैं। हड़प्पावासी एक ईश्वरीय सत्ता में विश्वास रखते थे जिसके दो रूप थे। परम् पुरुष और परम् स्त्री।

मातृदेवी की पूजा

सिन्धु सभ्यता में मातृशक्ति की पूजा सर्वप्रधान थी। यहाँ से सबसे अधिक नारी की मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। हड़प्पा से प्राप्त एक मुहर में स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है। यह सम्भवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है। इससे मालूम होता है कि हड़प्पाई लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा करते थे।

पशुपति की पूजा

हड़प्पा सभ्यता में पशुपति की पूजा प्रचलित थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर में तीन मुख्य वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा है। उसके सिर पर तीन सींग है। उसके दाहिने तरफ एक हाथी तथा एक बाघ और बायीं तरफ एक गैंडा और एक भैंसा खड़े हुए दिखाये गये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आज के भगवान शिव की पूजा उस समय पशुपति के रूप में होती थी।

पशुपति नाथ

पशु पूजा

पशुओं में कूबड़ वाला साँड़ इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर में संश्लिष्ट पशु की आकृति मिली है उसके तीन सिर हैं, जिसमें ऊपर के दो सिर बकरे के तथा नीचे का तीसरा सिर भैंसे का है। मार्शल के अनुसार पशुओं की पूजा शक्ति के रूप में होती थी।
नाग पूजा

नाग पूजा के प्रचलन के भी संकेत मिलते हैं। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा पर एक देवता के दोनों ओर एक एक नाग बिठाया गया है।

वृक्ष पूजा

सिन्धु वासी वृक्ष पूजा दो रूपों में करते थे- जीवन्त रूप में और प्रकृति रूप में। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा में एक पीपल के वृक्ष की दो टहनियों के बीच से एक पुरुष आकृति को निकलते हुए दिखाया गया है।

मूर्ति पूजा

सिन्धु सभ्यता के किसी भी पुरास्थल के उत्खनन से मन्दिर के साक्ष्य नहीं मिले हैं। किन्तु सम्भवतः सिन्धु सभ्यता में मूर्ति पूजा प्रचलित थी। इसके उदाहरण मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर अंकित देवता की आकृति है। इसके अतिरिक्त अनेक पुरास्थलों से मातृदेवी की मृण्मूर्तियां मिली हैं।

अग्नि पूजा

लोथल, कालीबंगा एवं बनवाली से अनेक हवनकुंड और यज्ञवेदियां मिली हैं। जिससे स्पष्ट होता है कि अग्नि पूजा भी प्रचलित थी।

भूत प्रेत में विश्वास

सिन्धु सभ्यता से बड़ी संख्या में ताबीज मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि वे भूत प्रेत, जादू टोना में विश्वास करते थे।
अन्त्येष्टि संस्कार

सिन्धु सभ्यता के अन्त्येष्टि संस्कार विधियों से उनके पारलौकिक जीवन मे विश्वास की पुष्टि होती है। अन्त्येष्टि संस्कार की तीन विधियां प्रचलित थी-पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण, दाह संस्कार। कब्रिस्तान बस्ती से बाहर होते थे।

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9 Comments
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  1. शिक्षा जगत में आपका विशेष योगदान युं ही बना रहे......अच्छा लगा,बने रहे

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  2. Thanks it was very useful for us

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