अशोक के शिलालेख प्राचीन इतिहास के साक्ष्य के रूप में महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनसे तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति का पता चलता है।
अशोक के शिलालेखों में प्रशासनिक व्यवस्था एवं धम्म से सम्बन्धित अनेक बातों का पता चलता है। इन लेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने सफलता प्राप्त की।
किन्तु जेम्स प्रिंसेप "देवानांपिय" की पहचान सिंहल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है।
अशोक के शिलालेख की खोज सर्वप्रथम 1750 ई. में पाद्रेटी फेंथैलर ने की थी।
शिलालेख का अर्थ
शिलालेख का अर्थ उन लेखों से है जो पत्थर की पट्टियों या चट्टानों को खोदकर लिखे गये हो। अर्थात वह शिला या पत्थर जिस पर लेख खुदा या अक्षर उत्कीर्ण किये गए हो शिलालेख कहलाता है।
अशोक के शिलालेखों की भाषा
भारत में पाये जाने वाले प्राचीनतम ऐतिहासिक शिलालेख अशोक के हैं। जो मुख्यतः ब्राह्मी लिपि में लिखे गये हैं।
कुछ शिलालेख खरोष्ठी, आरमेइक, यूनानी लिपियों में लिखे गये हैं। जैसे-शाहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं।
कुछ लघु शिलालेखों में आरमेइक तथा यूनानी लिपि पायी जाती है जैसे-शरेकुना (कन्धार) से प्राप्त शिलालेख में यूनानी तथा आरमेइक लिपि का प्रयोग किया गया है। तथा अफगानिस्तान के लमगान से प्राप्त "पुलेदारुत्त" शिलालेख आरमेइक भाषा में है।
अशोक के शिलालेखों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-दीर्घ शिलालेख, लघु शिलालेख। दीर्घ शिलालेखों की संख्या 14 है।
अशोक के 14 शिलालेख
इनकी संख्या 14 है इन्हें चतुर्दश शिलालेख भी कहा जाता है। जो आठ विभिन्न स्थानों शाहबाजगढ़ी (पाकिस्तान के पेशावर जिले में), मानसेहरा (पाकिस्तान के हजारा जिले में), कालसी (उत्तराखंड के देहरादून जिले में), गिरिनार (काठियावाड़), धौली (ओडिशा के पुरी जिले), जौगढ़ (ओडिशा के गंजाम जिले में), एर्रगुडि(आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में), सोपारा (महाराष्ट्र के थाना जिले में) से प्राप्त हुए।
14 शिलालेखों में वर्णित विषय
पहला शिलालेख-- इसमें पशुबलि की निंदा की गई है। पशुबलि निषेध के बारे में इस प्रकार लिखा गया है--
"यहाँ कोई जीव मारकर बलि न दिया जाये और न ही कोई ऐसा उत्सव किया जाये जिसमें पशुबलि या मल्ल युद्ध हो पहले प्रियदर्शी राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ो जीव मांस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने के समय सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं-दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जायेगें"
दूसरा शिलालेख-- इसमें अशोक ने मनुष्य और पशु दोनों की चिकित्सा व्यवस्था का उल्लेख किया है।
तीसरा शिलालेख-- इसमें राजकीय अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि वे हर पांच वर्ष के उपरान्त राज्य के दौरे पर जायें। इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है साथ ही इस शिलालेख में अशोक से अल्पव्यय और बचत को भी धम्म का अंग माना है।
चौथा शिलालेख-- इस शिलालेख में भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा की गयी है।
पाँचवां शिलालेख-- इससे धम्म महामात्रों के नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है।
छठां शिलालेख-- इसमें आत्म-नियंत्रण की शिक्षा दी गयी है। तथा इसी लेख में यह घोषणा की गयी है कि "हर क्षण और हर स्थान पर-चाहे वो रसोईघर हो, अंतःपुर या उद्यान हो। सब जगह मेरे प्रतिवेदक मुझे प्रजा के हाल से परिचित रखें। मैं प्रजा का कार्य सब जगह करता हूँ।
सातवाँ शिलालेख-- इसमें कहा गया है कि सभी सम्प्रदाय के लोग सब जगह निवास करें क्योंकि सब संयम और चित्त की शान्ति चाहते हैं।
आठवां शिलालेख-- इसमें अशोक की धम्म यात्राओं का उल्लेख मिलता है।
नोवां शिलालेख-- इसमें सच्ची भेंट और सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख है।
दसवाँ शिलालेख-- इसमें अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचें तथा सभी लोग धम्म का पालन करें।
ग्यारहवाँ शिलालेख-- इसमें धम्म की व्याख्या की गयी है। इसमें अशोक ने कहा है-धम्म जैसा कोई दान नहीं, धम्म जैसी कोई प्रशंसा नहीं, धम्म जैसा कोई बंटवारा नहीं और धम्म जैसी कोई मित्रता नहीं।
बारहवाँ शिलालेख-- स्त्री महामात्रों की नियुक्ति तथा सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात कही गयी है। इसमें अशोक ने कहा है कि सभी सम्प्रदाय के सार में वृद्धि हो, क्योंकि सबका मूल संयम है। लोग दूसरे सम्प्रदाय की निंदा न करें।
तेरहवाँ शिलालेख-- इसमें कलिंग युद्ध का वर्णन तथा अशोक का हृदय परिवर्तन एवं पड़ोसी राजाओं का विवरण मिलता है।
चौदहवाँ शिलालेख-- अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्ररित किया है।
प्रथक कलिंग शिलालेख- इसमें अशोक ने प्रजा के प्रति पितृतुल्य भाव प्रकट किया है। तथा कलिंग राज्य के प्रति अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है।
अशोक के लघु शिलालेख
इनके माध्यम से अशोक के व्यक्तिगत जीवन के विषय में जानकारी मिलती है जैसे-मास्की अभिलेख में अशोक ने अपने आपको बुद्ध शाक्य कहा है। इसी अभिलेख में उसका नाम अशोक मिलता है।
भाब्रू या वैराट अभिलेख में अशोक का नाम प्रियदर्शी मिलता है। नेत्तूर, उडेगोलन, गुर्जरा तथा मास्की लघु शिलालेखों में अशोक का नाम अशोक मिलता है। एर्रगुड़ि अभिलेख ब्रूस्ट्रोफेडन शैली में लिखा गया है।
प्रमुख लघु शिलालेख प्राप्ति स्थल
गुर्जरा दतिया (मध्य प्रदेश)
ब्रह्मगिरि ब्रह्मगिरि (कर्नाटक)
रूपनाथ जबलपुर (मध्य प्रदेश)
सहसाराम शाहाबाद (बिहार)
भाब्रू जयपुर (राजस्थान)
मास्की रायचूर (कर्नाटक)
एर्रगुड़ि कर्नूल (आंध्र प्रदेश)
अहरौरा मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
उडेगोलन बेल्लारी (कर्नाटक)
नेत्तूर मैसूर (कर्नाटक)
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ReplyDeleteMost important information thank you so much
ReplyDeleteThnkx
ReplyDeleteAmbalal tejawat
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ReplyDeleteकौनसा शिलालेख कहा से मिला ये कोई नहीं बताता।
ReplyDeleteजैसे अशोक का पहला शिलालेख कहा से मिला, दूसरा कहा से मिला।
Good Information sir
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