राम कृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद नन्द ने 1 मई 1897 ई. में कलकत्ता के निकट बारानगर में की थी। बाद (1899) में इस मिशन का मुख्यालय "बेलूर" स्थानांतरित किया गया। इसका दूसरा मुख्यालय अल्मोड़ा के पास "मायावती" नामक स्थान पर बनाया गया। यह मिशन मुख्य रूप से "वेदान्त दर्शन" पर आधारित था।
राम कृष्ण मिशन का उद्देश्य
इसका 'उद्देश्य' मानव हित के लिए रामकृष्ण परमहंस ने जिन तत्वों की व्याख्या की उनका प्रचार करना तथा मनुष्य की शारीरिक, मानसिक व परमार्थिक उन्नति के लिए उन तत्वों का जीवन में किस प्रकार प्रयोग हो सके का ज्ञान करना था।
इस मिशन के अतिरिक्त स्वामी विवेकानंद ने 1896 ई. में न्यूयॉर्क में "वेदान्त सोसायटी" तथा कैलिफोर्निया में "शान्ति आश्रम" की स्थापना की थी।
स्वामी विवेकानंद को "नव हिन्दूवाद" का प्रमुख प्रचारक माना जाता है। स्वामी जी ने अपने विचारों को "प्रबुद्ध भारत" नामक अंग्रेजी पत्रिका तथा "उद्बोधन" नामक बंगाली पत्रिका में प्रकाशित किया।
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रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण परमहंस का मूल नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। वह कलकत्ता में गंगा नदी के पूर्वी तट पर स्थित दक्षिणेश्वर में "काली देवी" मन्दिर के पुजारी थे। ये दक्षिणेश्वर संत के नाम से विख्यात थे। इन्होंने भैरवी और तोतापुरी जैसे सन्तों से साधना ज्ञान लिया।
परमहंस जी ने भारतीय विचार एवं संस्कृति में अपनी पूर्ण निष्ठा जतायी। वे सभी धर्मों में सत्यता का अंश मानते थे। उनके अनुसार "संसार के सभी धर्म सच्चे रूप में ईश्वर तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं।" उन्होंने धर्म की एकता और मानव सेवा पर सर्वाधिक बल दिया।
रामकृष्ण जी ने मूर्तिपूजा को ईश्वर प्राप्ति का साधन माना किन्तु उन्होंने चिन्ह और कर्मकाण्ड की तुलना में आत्म शुद्धि पर अधिक बल दिया। वह ईश्वर प्राप्ति के लिए निःस्वार्थ और अनन्य भक्ति में आस्था रखते थे। उन्होंने तीनों प्रकार की (तांत्रिक, वैष्णव, अद्वैत) साधना कर अंत में "निर्विकल्प समाधि" की स्थिति को प्राप्त कर लिया। अतः उन्हें लोग "परमहंस" कहने लगे।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. में कलकत्ता में हुआ था। उनके बचपन का नाम "नरेन्द्र नाथ" था। 1880 ई. में इनकी भेंट रामकृष्ण परमहंस से हुई और ये उनके शिष्य बन गये। यहाँ पर स्वामी जी ने हिन्दू दर्शन के साथ-साथ पाश्चात्य दर्शन का भी अध्ययन किया।
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1891 ई. में इन्होंने सम्पूर्ण भारत की यात्रा की और यहाँ की गरीबी और भुखमरी का प्रत्यक्ष अनुभव किया। रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रचार प्रसार का मुख्य श्रेय इन्हीं को जाता है। इन्होंने रामकृष्ण की शिक्षाओं का साधारण भाषा में वर्णन किया। इन्होंने अपनी विद्वतापूर्ण विवेचना से लोगों का बहुत प्रभावित किया।
भारत भ्रमण के दौरान स्वामी जी राजस्थान गये। राजस्थान में खेतड़ी रियासत के महाराजा कुँवर अजीत राज सिंह के सुझाव पर इन्होंने ने अपना नाम बदलकर विवेकानंद रख लिया।
स्वामी विवेकानंद ने 1893 ई. में अमेरिका के "शिकागो" शहर में आयोजित "प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन" में हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। इनकी अमेरिका यात्रा का खर्च महाराजा कुँवर अजीत राज सिंह ने वहन किया।
19 सितम्बर 1893 ई. में स्वामी विवेकानंद ने प्रथम विश्व धर्म संसद में अपने ओजपूर्ण भाषण में भौतिकवाद और अध्यात्मवाद के मध्य सन्तुलन बनाने की बात कही।
विवेकानंद ने पूरे संसार में एक ऐसी संस्कृति की कल्पना की जो पश्चिमी देशों के भौतिकवाद एवं पूर्वी देशों के अध्यात्मवाद के बीच तालमेल स्थापित कर सम्पूर्ण विश्व को खुशियां प्रदान कर सके।
स्वामी जी के भाषण के विषय में 'द न्यूयार्क हेराल्ड' ने लिखा कि "विवेकानंद का भाषण सुनने के पश्चात ऐसा लगता है कि भारत जैसे देश में जहाँ स्वामी जी जैसे ज्ञानी रहते हैं, सुधारने के लिए पश्चिम से सुधारक भेजने की बात कितनी मूर्खतापूर्ण है।"
स्वामी विवेकानंद ने ऐसे धर्म में अपनी आस्था को नकारा जो किसी विधवा के आँसू नहीं पोछ सकता व किसी अनाथ को रोटी नहीं दे सकता। उनके अनुसार भूखे व्यक्ति से धर्म की बात कहना ईश्वर तथा मानवता का अपमान है।
स्वामी जी ने एक समाज सुधारक के रूप में यह माना कि ईश्वर तथा मुक्ति पाने के अनेक रास्ते हैं और मानव की सेवा ईश्वर की सेवा है क्योंकि मानव ईश्वर का रूप है। स्वामी जी ने कहा कि हम मानवता को वहां ले जाना चाहते हैं जहाँ न वेद हैं, न बाइबिल है, न कुरान है लेकिन यह काम वेद, बाइबिल व कुरान के समन्वय द्वारा किया जा सकता है।
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अतः मानवता को सीख देनी होगी कि सभी धर्म उस अद्वितीय धर्म की ही विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं जो एकत्व है। सभी को छूट है कि वे जो मार्ग अनुकूल लगे उसको चुन लें। विवेकानंद ने कोई राजनैतिक सन्देश नहीं दिया। फिर भी उन्होंने अपने लेखों तथा भाषणों द्वारा नई पीढ़ी में एक नवीन आत्मगौरव की भावना जगाई तथा भारतीय संस्कृति में एक नया विश्वास एवं भारत के भविष्य में एक नया आत्म विश्वास भरा। उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी कि आने वाले समय में समस्त विश्व पर सर्वहारा वर्ग और दलित वर्ग का शासन होगा। इसकी शुरुआत रूस अथवा चीन से होगी।
स्वामी विवेकानंद ने 4 वर्षों तक विदेश की यात्रा की। उन्होंने सम्पूर्ण अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और जर्मनी की यात्रा की। वे 1897 ई. में वापस भारत लौटे। स्वदेश आने के बाद इन्होंने "रामकृष्ण मिशन" की स्थापना की। 1899 ई. में ये पुनः अमेरिका गये। वहां से 1900 ई. में पेरिस में आयोजित "द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन" में भाग लेने फ्रांस गये।
द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन का शीर्षक था-कांग्रेस हिस्ट्री ऑफ रिलिजन्स। विदेश से आने के बाद 4 जुलाई 1902 ई. में कलकत्ता में इनका देहावसान हो गया।
स्वामी विवेकानंद ने मानव सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया तथा मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद का समर्थन किया। इसी कारण इन्हें "नव हिन्दू जागरण" का संस्थापक कहा जाता है।
सुभाष चन्द्र बोस ने स्वामी जी के बारे में लिखा है कि "जहाँ तक बंगाल का सम्बन्ध है, हम विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का 'आध्यात्मिक पिता' कह सकते हैं।
स्वामी जी ने अपनी पुस्तक "मैं समाजवादी हूँ" के माध्यम स्वर्ण वर्गों से निम्न वर्गों के साथ मिलकर जीने का आवाहन किया। स्वामी जी के बाद उनकी शिष्या "सिस्टर निवेदिता (मूल नाम मारग्रेट नोबल, आयरिश मूल की)" रामकृष्ण मिशन के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रचार प्रसार किया।
IMPORTANT QUESTION
Q-रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किसे सृजन की प्रतिमा कहा था?
@-स्वामी विवेकानंद को
Q-"विवेकानंद में बुद्ध का हृदय और शंकराचार्य की बुद्धि थी तथा वे आधुनिक भारत के निर्माता थे" यह कथन किसका है?
@-सुभाष चन्द्र बोस का
Q-रामकृष्ण परमहंस का विवाह किसके साथ हुआ था?
@-शारदा मणि मुखोपाध्याय के साथ
Q-विवेकानंद ने न्यूयार्क में किस संस्था की स्थापना की थी?
@-वेदान्त सोसायटी की (1896)
Q-विवेकानंद के भाषण के विषय में किस पत्र ने अपना लेख दिया?
@-द न्यूयार्क हेराल्ड
Q-'जिस प्रकार सभी धाराएं अपने जल को सागर में ले जाकर मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के सारे धर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं' यह कथन किसका है?
@-स्वामी विवेकानंद
Q-राजयोग, कर्मयोग एवं ज्ञानयोग किस समाज एवं धर्म सुधारक की रचना हैं?
@-स्वामी विवेकानंद की
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