जीवाणु भोज्य पदार्थों को विषाक्त करते हैं। गर्मी के मौसम में बैक्टीरिया ज्यादा प्रभावी होते हैं। बैक्टीरिया मिट्टी, हवा, धूल, पानी द्वारा भोजन तक पहुँचते हैं।
भोजन विषाक्त करने वाले हानिकारक जीवाणुओं को मुख्यतः 4 श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। ●क्लास्ट्रीडियम, ●सालमोनेल्ला, ●स्टेफलीकोकाई, ●बोटयूलिज्म।
●क्लास्ट्रीडियम वेलकोर्ड
इस श्रेणी के जीवाणु ज्यादातर बासी भोजन में पाये जाते हैं, इनकी वृद्धि 30-50°C तापक्रम पर होती है। ये मिट्टी, वायु, पानी, मनुष्य, जानवरों के मल में उपस्थित रहते हैं। ये भोजन में मक्खियों तथा मनुष्य के गन्दे हाथों से पहुँचते हैं। इन जीवाणुओं के शरीर में पहुँचने के 8 से 24 घण्टे के भीतर विषाक्तता के लक्षण दिखाई देते हैं। इससे पेट में दर्द, दस्त तथा मांसपेशियों में ऐंठन होती है। कभी-कभी जी-मिचलाना तथा उल्टी भी होती है।
●सालमोनेला टाइफी
इस श्रेणी के जीवाणु डायरिया आदि रोग फैलाते हैं। इन जीवाणुओं का आवास मूल रूप से मनुष्य, जानवर और पक्षियों की आँतें हैं। ये जीवाणु मनुष्य, जानवर के मल के अतिरिक्त मांस और अण्डों में भी पाये जाते हैं। इस श्रेणी के अन्तर्गत कई जातियों के बैक्टीरिया पाये जाते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा हानिकारक जीवाणु सालम टाइफीम्यूरियम होता है।
शरीर में पहुँचकर ये जीवाणु कितनी देर में अपना प्रभाव डालेंगे, यह जीवाणुओं की संख्या और व्यक्ति विशेष की रोगप्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है। इन जीवाणुओं के शरीर में पहुँचने के कुछ घण्टों के बाद ही ये अपना कार्य आरम्भ कर देते हैं और विषाक्तता के लक्षण दिखने प्रारम्भ हो जाते हैं। इसके प्रमुख लक्षण- पेट में दर्द, दस्त, शारीरिक कमजोरी उल्टी, सिरदर्द इत्यादि हैं।
इन जीवाणुओं से रक्षा के लिये खाने वाली कच्ची भोज्य सामग्री, फल, सब्जियों को अच्छी तरह से धोना चाहिये। मांस को भी भली प्रकार से धोकर उपयोग में लाना चाहिये। धोने के लिये प्रयोग किया जाने वाला पानी भी स्वच्छ होना चाहिये।
●स्टैफलीकोकाई समूह के जीवाणु
मूल रूप से इस श्रेणी के जीवाणु से नाक, त्वचा, फोड़े, फुन्सियों, मनुष्य के बाल में घाव आदि होते हैं। इन स्थानों की श्लेष्मा तथा घावों से निकली मवाद में इनकी बहुत ज्यादा मात्रा पाई पाती है। नमीयुक्त भोज्य पदार्थों को अगर उष्णता वाले स्थान पर रखा जाये तो भी यह जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं। जिन भोज्य पदार्थों में यह जीवाणु पहुँच जाते हैं, उनके स्वाद, गन्ध में विभिन्नता आ जाती है। इस श्रेणी के जीवाणु से विषाक्त भोजन खाने के 1 से 5 घण्टे के अन्दर भोज्य विषाक्तता के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। उच्च तापक्रम पर भोजन पकाने से ये जीवाणु स्वयं खत्म हो जाते हैं।
●बाटुलिज्म श्रेणी के जीवाणु
ये जीवाणु धूल, मिट्टी, पानी में पाये जाते हैं। इन्हीं माध्यमों से ये खाद्य पदार्थों में प्रविष्ट कर जाते हैं। ये जीवाणु बदबूदार गैसें उत्पन्न करते हैं जिससे संरक्षित भोज्य पदार्थ विषाक्त हो जाते हैं। अगर इन भोज्य पदार्थों का प्रयोग करें तो इन्हें दुबारा उच्च तापक्रम पर गर्म करना चाहिये, क्योंकि ये जीवाणु उच्च तापक्रम पर नष्ट हो जाते हैं। इन जीवाणु की विशेषता है कि ये बिना वायु के भी जीवित रहते हैं। इसलिये सील बन्द भोज्य पदार्थों में भी इनकी बढ़ोतरी सम्भव रहती है।
शरीर के अन्दर ये जीवाणु प्रवेश कर कब्ज की शिकायत करते हैं तथा 12 से 24 घण्टे के अन्दर विषाक्तता के लक्षण स्पष्ट होते हैं। बेचैनी महसूस करना, सिरदर्द, चक्कर आना, मांसपेशियों का कमजोर होना, गले की स्नायु का लकवाग्रस्त होना जैसे लक्षण स्पष्ट होते हैं।
बोटयूलिज्म विषाक्तता में उत्पन्न होने वाले विष के कारण स्नायु संस्थान कमजोर हो जाते हैं। श्वसन और हृदय को भी लकवा होने की प्रबल सम्भावना होती है। इस विषाक्तता के प्रभाव के 3 से 6 दिन के अन्दर लगभग 70 % रोगी की मृत्यु हो जाती है। इस विषाक्तता में एन्टीटाक्सिक सीरम का इन्जेक्शन दिया जाता है। इस विषाक्तता में कोई भी भोज्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिये। पेट को एकदम खाली कर देना चाहिये।
$$###अगर आपको ये पोस्ट पसन्द आयी हो तो ""share and comment"" जरूर कीजिए।###$$