प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त|plate tectonics theory

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त को वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का विकास माना जाता है। स्थलीय दृढ़ भू-खण्ड को प्लेट कहते हैं। पृथ्वी का निर्माण विभिन्न प्लेटों से हुआ है। ये प्लेटें अपने ऊपर स्थित महाद्वीप तथा महासागरीय भागों को अपने प्रवाह के साथ स्थानान्तरित करती हैं। पुराचुम्बकत्व एवं सागर नितल प्रसरण के प्रमाणों से स्पष्ट हो गया है कि महासागरीय नितल में भी प्रसार हो रहा है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त का प्रतिपादन


 प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धान्त हैरी हेस ने दिया था। किन्तु इसकी वैज्ञानिक व्याख्या W. J. मोर्गन ने की। यह सिद्धान्त महाद्वीपीय प्रवाह, समुद्र तली प्रसारण, ध्रुवीय परिभ्रमण, द्वीप चाप व महासागरीय कटक आदि पर प्रकाश डालता है।


 इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी की भू-पर्पटी अनेक छोटी व बड़ी प्लेटों में विभक्त है। ये प्लेटें 100km की मोटाई वाले स्थलमण्डल से निर्मित होती हैं एवं दुर्बल मण्डल (एस्थेनोस्फेयर) पर तैरती हैं। दुर्बल मण्डल पूर्णतया सिलिकॉन व मैग्नीशियम का बना है व अपेक्षाकृत अधिक घनत्व का है।
 प्लेटीय संचलन का मुख्य कारण "तापीय संवहन तरगों की चक्रीय प्रक्रिया" का होना है। प्लेटों की संख्या 100 तक बताई गई है। किन्तु अभी तक केवल 7 बड़ी व 20 छोटी प्लेटों को ही पहचाना जा सका है। बड़ी प्लेटें इस प्रकार हैं

1-अंटार्कटिक प्लेट
2-उत्तरी अमेरिकी प्लेट
3-दक्षिणी अमेरिकी प्लेट
4-प्रशान्त महासागरीय प्लेट
5-इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट
6-अफ्रीकी प्लेट व यूरेशियाई प्लेट।
 छोटी प्लेटों में कोकास प्लेट, नजका प्लेट, अरेबियन प्लेट, फिलीपीन प्लेट, कैरोलिन प्लेट, फ्यूजी प्लेट, स्कोशिया प्लेट, कैरेबियन प्लेट, तिब्बत प्लेट, सोमाली प्लेट, नुबियन प्लेट, जुआन-डी-फूका प्लेट एवं बर्मी प्लेट आदि प्रमुख हैं।

 प्लेटें पूर्णतः महासागरीय, पूर्णतः महाद्वीपीय अथवा मिश्रित हो सकती हैं। जो इस बात निर्भर करता है कि प्लेट का अधिकांश भाग किससे सम्बद्ध है। जैसे प्रशान्त प्लेट पूर्णतया महासागरीय है एवं यूरेशियाई व अंटार्कटिका प्लेट पूर्णतया महाद्वीपीय है। जबकि अमेरिकी व भारतीय प्लेट मिश्रित प्रकार का है।

 प्लेटों के किनारे ही भू-गर्भिक क्रियाओं के दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि इन्हीं किनारों के सहारे भूकम्पीय, ज्वालामुखीय तथा विवर्तनिक घटनाएं घटित होती हैं। सामान्तया प्लेटों के किनारे तीन प्रकार के होते हैं।

रचनात्मक किनारा (Constructive Margin)

 तापीय संवहन तरगों के उपरिमुखी स्तम्भों के ऊपर अवस्थित दो समान अथवा असमान घनत्व तथा मोटाई वाली प्लेटें एक दूसरे के विपरीत दिशा में गतिशील होती हैं। तो दोनों के मध्य भू-पर्पटी में दरार बन जाती है। जिसके सहारे एस्थेनोस्फेयर का मैग्मा ऊपर आता है और ठोस होकर नवीन भू-पर्पटी का निर्माण करता है। अतः इन प्लेट किनारों को रचनात्मक किनारा कहते हैं। तथा इस तरह की प्लेटें "अपसारी प्लेटें" कहलाती हैं। इसका सर्वोत्तम उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है।

विनाशात्मक किनारा (Destructive Margin)

 तापीय संवहन तरगों के अधोमुखी स्तम्भों के ऊपर अवस्थित दो प्लेटें आमने सामने संचालित होकर टकराती हैं। तो अधिक घनत्व वाली प्लेट कम घनत्व वाली प्लेट के नीचे धँस जाती हैं। इस क्षेत्र को "बेनी ऑफ मेखला या बेनी ऑफ जॉन" कहते हैं। चूँकि यहाँ प्लेट का विनाश होता है। अतः इसे विनाशात्मक किनारा कहते हैं। इन प्लेटों को "अभिसारी प्लेट" कहा जाता है। अभिसारी प्लेट की अंतःक्रिया तीन प्रकार से हो सकती है।

•जब एक अभिसारी प्लेट महाद्वीपीय तथा दूसरी महासागरीय हों तो महासागरीय प्लेट अधिक भारी होने के कारण महाद्वीपीय प्लेट के नीचे अधिगमित हो जाती है जिससे एक गर्त का निर्माण होता है एवं उसमें अवसादों के निरन्तर जमाव व वलन से मोड़दार पर्वतों का निर्माण होता है। रॉकी व एंडीज पर्वत इसके मुख्य उदाहरण हैं। बेनी ऑफ जॉन या अधोगमित क्षेत्र का पिघला हुआ मैग्मा भू-पर्पटी को तोड़ते हुए ज्वालामुखी का निर्माण करता है। जैसे अमेरिकी प्लेट का पश्चिमी किनारा जहाँ पर्वतों का निर्माण हुआ है, ज्वालामुखी उद्गार देखने को मिलते हैं। एंडीज के आंतरिक भागों में कोटोपेक्सी व चिंबाराजो जैसे ज्वालामुखी का पाया जाना इस अंतःक्रिया द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
•जब दोनों प्लेट महासागरीय हों तो अपेक्षाकृत भारी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे धँस जाती है। जिससे के फलस्वरूप महासागरीय गर्तों और ज्वालामुखी द्वीपों की एक श्रृंखला सी बन जाती है।

•जब दोनों प्लेट महाद्वीपीय हों तो अधिगमित क्षेत्र इतना प्रभावी नहीं हो पाता कि ज्वालामुखी उत्पन्न हो सकें। परन्तु ये क्षेत्र भू-गर्भिक रूप से अस्थिर होते हैं। अतः यहाँ बड़े मोड़दार पर्वतों का निर्माण होता है। यूरेशियन प्लेट व इंडियन प्लेट के टकराने से टेथिस भूसन्नति के अवसादों के वलन व प्लेटीय किनारों के मुड़ाव से उत्पन्न 'हिमालय पर्वत' इसका अच्छा उदाहरण है।

संरक्षी प्लेट (Conservative Margin)

 जब दो प्लेट एक दूसरे के समानान्तर खिसकती हैं तो उनमें कोई अन्तर्क्रिया नहीं हो पाती है। अतः इन्हें संरक्षी किनारा कहते हैं। इन प्लेटों के खिसकने के कारण रूपान्तरित भ्रंश का निर्माण होता है। तथा प्लेट के किनारों के धरातलीय क्षेत्र में अन्तर नहीं होता है। इस प्लेट सीमा को शीयर सीमा कहते हैं। कैलिफोर्निया के निकट निर्मित सान एंड्रियास फॉल्ट रूपान्तरित भ्रंश का उदाहरण है।

प्लेटों की गति के कारण


 पृथ्वी की सभी छोटी तथा बड़ी प्लेटें गतिशील हैं। इनकी गति करने के निम्नलखित कारण हैं।

पृथ्वी का घूर्णन (Rotation of the Earth)

 पृथ्वी के धरातल पर भू-मध्य रेखीय भाग अधिक तीव्र गति से घूर्णन करता है। इसलिए भू-मध्य रेखीय भागों पर केन्द्रापसारी बल अधिक लगता है। यह बल ध्रुवों की ओर जाने पर धीरे धीरे कम होता जाता है। इसके कारण यदि कोई प्लेट ध्रुवीय भाग पर स्थित है तो वह भू-मध्य रेखा की ओर प्रवाहित होती है। जैसे भारतीय प्लेट दक्षिणी ध्रुव से भू-मध्य रेखा की ओर प्रवाहित हो रही है। और यदि कोई प्लेट देशान्तर के सहारे उत्तर से दक्षिण फैली है। तो इसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम होता है। उपरोक्त प्रभाव की व्याख्या आयलर ने की थी। अतः इसे "आयलर सिद्धान्त" कहते हैं।
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हॉट-स्पॉट (Hot-spot)

 प्लेट के नीचे मैंटल भाग में किसी किसी स्थान पर रेडियोधर्मी तत्वों की अधिकता होती है। जिसके कारण वहाँ भू-तापीय ऊर्जा उत्पन्न हो जाती हैं। इस क्षेत्र को हॉट स्पॉट कहा जाता है। इस स्थान से ऊर्जा संवहनीय तरगों द्वारा ऊपर उठती है। इन तरगों को प्लूम कहते हैं। इन प्लूम को ही प्लेट के संचलन का प्रमुख कारण माना जाता है।

प्लेटों की गति

विश्व की सभी प्लेटों की गति असमान है। महासागरीय प्लेटों की औसत गति 5 सेमी. प्रति वर्ष तथा महाद्वीपीय प्लेटों की औसत गति 2 सेमी. प्रति वर्ष है। ग्रीनलैंड प्लेट 20 सेमी. प्रति वर्ष की दर से सर्वाधिक गति से प्रवाहित हो रही है। भारतीय प्लेट गोंडवानालैंड से अलग होने के बाद 12 सेमी. प्रति वर्ष की गति से प्रवाहित हुई। किन्तु यह क्रिटेशियस युग में तिब्बत के द्रास से टकराने के बाद 5 सेमी. प्रतिवर्ष की गति से उत्तर पूर्व दिशा में प्रवाहित होने लगी।

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4 Comments
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  1. Thanks for upload this topics
    Very helpful topic.

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  2. Good but compition exmae me jo choose the correct ans. Puchhe jate hai us tarah se dal dijiye

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