सल्तनत कालीन न्याय व्यवस्था|Sultanate justice system

सल्तनत कालीन न्याय व्यवस्था इस्लामी कानून, शरीयत, कुरान एवं हदीस पर आधारित थी। सुल्तान न्याय का सर्वोच्च अधिकारी होता था। सभी मुकद्दमों का अन्तिम निर्णय करने की क्षमता उसमें निहित थी।

 धार्मिक मुकद्दमों का निर्णय करते समय सुल्तान मुख्य सद्र एवं मुफ्ती की सहायता लेता था। जबकि धर्मनिरपेक्ष मुकद्दमों में सुल्तान काजी की सलाह लेता था।

सल्तनत कालीन न्याय व्यवस्था

 सल्तनत काल में न्याय सम्बन्धी कार्यों के लिए एक पृथक विभाग की स्थापना की गयी थी। जिसे "दीवान-ए-कजा" कहा जाता था। इस विभाग का अध्यक्ष 'काजी-ए-मुमालिक अथवा काजी-ए-कुजात' कहलाता था।

सल्तनत कालीन प्रान्तीय न्यायालय


 केन्द्र की तरह प्रान्तों में भी न्याय व्यवस्था प्रचलित थी। प्रान्तों में चार प्रकार के न्यायालय थे।
वली या गवर्नर का न्यायालय

 वली अथवा गवर्नर प्रान्त का सर्वोच्च अधिकारी होता था। उसका प्रमुख कार्य न्याय करना था। वली सभी प्रकार के मुकद्दमों की सुनवाई कर सकता था। इसलिए प्रान्त में उसके न्यायालय का क्षेत्राधिकार सबसे अधिक था।
काजी-ए-सूबा का न्यायालय

 प्रान्त में वली के बाद "काजी-ए-सूबा" आता था। इसकी नियुक्ति सुल्तान द्वारा मुख्य काजी की सिफारिश पर की जाती थी। काजी-ए-सूबा दीवानी तथा फौजदारी दोनों मुकद्दमों की सुनवाई करता था। वह प्रान्त के सभी काजियों के कार्यों की देख-रेख करता था।

दीवान-ए-सूबा का न्यायालय

 इसके न्यायालय का क्षेत्राधिकार बहुत सीमित था। वह केवल भू-राजस्व सम्बन्धी मामलों का निर्णय करता था।

सद्र-ए-सूबा का न्यायालय--इसके अधिकार भी सीमित थे।

 बड़े नगरों में "अमीर-ए-दाद" नामक न्यायिक अधिकारी होता था। इसका कार्य अपराधियों को गिरफ्तार करना तथा काजी की सहायता से मुकद्दमों का निर्णय करना था। इसकी सहायता के लिए "नायब-ए-दादबक" नामक अधिकारी होते थे।
 न्याय के निचले स्तर पर ग्राम पंचायतें होती थी। जो भूमि वितरण सम्बन्धी कार्य एवं स्थानीय झगड़ो का निपटारा करती थी।

 सल्तनत काल में दण्ड व्यवस्था कठोर थी। अपराध की गम्भीरता को देखते हुए क्रमशः मृत्युदण्ड, अंग-भंग एवं सम्पत्ति को हड़पने का दण्ड दिया जाता था।

सल्तनत काल में मुख्यतः चार प्रकार के कानूनों का प्रचलन था।
सामान्य कानून--व्यापार आदि से सम्बन्धित ये कानून मुस्लिम तथा गैर मुस्लिम दोनों पर लागू होते थे
देश का कानून--मुस्लिम शासकों द्वारा शासित देशों में प्रचलित स्थानीय नियम कानून
फौजदारी कानून--यह कानून मुस्लिम एवं गैर मुस्लिम दोनों पर समान रूप से लागू होता था।

गैर मुस्लिमों का धार्मिक एवं व्यक्तिगत कानून
 हिन्दुओं के सामाजिक एवं धार्मिक मामलों में दिल्ली सल्तनत का अतिसूक्ष्म हस्तक्षेप होता था। उनके मुकद्दमों की सुनवाई पंचयतों में विद्वान पण्डित एवं ब्राह्मण किया करते थे।
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