अधिगम एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें मानसिक प्रक्रियाओं की अभिव्यक्ति व्यवहारों द्वारा होती है। मानव व्यवहार अनुभवों के आधार पर परिवर्तित और परिमार्जित होते रहते हैं। अतः अधिगम प्रक्रिया में दो तत्व निहित होते हैं। परिपक्वता और पूर्व अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता। अधिगम पूर्व अनुभव द्वारा व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन होता है। अधिगम की क्रिया जीवन में सदा और सर्वत्र चलती रहती है, बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता हुआ अपने अनुभवों से लाभ उठाता हुआ, वातावरण के प्रति जो उपर्युक्त प्रतिक्रिया करता है वही अधिगम होता है।
मनोवैज्ञानिकों ने अधिगम की प्रकृति को समझने के लिए ढेर सारा साहित्य इकट्ठा किया है। जब हम अधिगम की विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण करते हैं तो अधिगम की प्रकृति के सन्दर्भ में निम्न बिन्दु स्पष्ट होते हैं--
●अधिगम की क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन होता है।
●व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह कुछ समय तक बना रहता है, और अगर आलोप हो जाए तब भी व्यक्ति द्वारा कुछ प्रयासों के पश्चात फिर वह परिवर्तन हो जाता है।
●व्यवहार में परिवर्तन पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।
●अधिगम द्वारा व्यवहार में जो परिवर्तन आता है वह बाह्य रूप से दिखाई देने वाला या न दिखाई देने वाला हो सकता है।
●अधिगम द्वारा हुए व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों में परिपक्वता नशावृत्ति, थकान, तथा मूल प्रवृत्तियात्मक व्यवहार शामिल नहीं होते।
●एक बार व्यवहार में परिवर्तन होने के पश्चात् नवीन परिस्थिति में उस परिवर्तित व्यवहार का संशोधन हो सकता है।
●अधिगम के द्वारा व्यक्ति के ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोक्रियात्मक क्षेत्रों में व्यवहारों का विकासात्मक परिवर्तन होता है।
●अधिगम व्यक्ति में सामाजिक या असामाजिक दोनों प्रकार के व्यवहार पैदा कर सकता है।
●अधिगम त्रुटि रहित या त्रुटिपूर्ण हो सकता है।
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