●अधिगम के फलस्वरूप व्यवहार में स्थायी परिवर्तन होते हैं-- व्यक्ति अपने अनुभवों के आधार पर सीखता है जैसे एक शिशु जिसे आग के बारे में कोई पूर्व अनुभव नहीं है वह आग की तरफ उत्सुकता से बढ़ता है वह उसे पकड़ने का प्रयास करता है जिससे वह जलन अनुभव करता है और इस अनुभव के आधार पर दुबारा आग को पकड़ने का प्रयास नहीं करेगा और यह व्यवहार परिवर्तन ही अधिगम है।
●संपूर्ण जीवन ही अधिगम है--
व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक वातावरण के साथ सक्रिय अन्तःक्रिया करता रहता है जिसके फलस्वरूप वह जीवनपर्यन्त अधिगम करता है।
●अधिगम के फलस्वरूप जो परिवर्तन होते हैं वह स्थायी होते हैं--
अधिगम द्वारा व्यवहारों में परिवर्तन होते हैं जिनका स्वरूप स्थायी होता है अगर किसी व्यक्ति ने साइकिल चलाना सीखा है और कई वर्षों तक नहीं चलाई फिर भी वह थोड़े अभ्यास के बाद साइकिल पुनः चला पाता है।
●अधिगम एक समायोजन की प्रक्रिया है--
व्यक्ति हर स्थिति में अपने वातावरण में समायोजित होने का प्रयास करता है जिसके फलस्वरूप वह अपने व्यवहारों में संशोधन, नए व्यवहारों को ग्रहण करता है। ताकि वह अपनी समायोजित अवस्था में रह सके।
●अधिगम की प्रक्रिया सार्वभौमिक है--
प्रत्येक जीवित प्राणी अधिगम करता है। मनुष्य में अधिगम की क्षमता सर्वाधिक होती है।
●अधिगम व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही हैं--
अधिगम एक व्यक्तिगत कार्य है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही सीखने की प्रक्रिया से होकर निकलता है परन्तु व्यक्ति सामाजिक वातावरण में रहकर भी बहुत कुछ सीखता है।
●अधिगम विकास की प्रक्रिया है--
अधिगम द्वारा व्यक्ति का निरन्तर विकास होता है। हर अवस्था पर व्यक्ति अपने भविष्य के विकास के लिए नए लक्ष्य बनाता है और उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करता है और इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप उसके विकास की प्रक्रिया चलती रहती है।
●अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता है--
अधिगम के बारे में जानने के लिए व्यक्ति के व्यवहारों का अध्ययन करना पड़ता है क्योंकि अधिगम को देखा नहीं जा सकता बल्कि व्यक्ति के व्यवहारों में हुए परिवर्तनों से उसके बारे में पता लगाया जा सकता है।
●अधिगम उद्देश्यपूर्ण एवं विवेकपूर्ण होता है--
सीखने में सफलता निश्चित उद्देश्यों की उपस्थिति से ही संभव है। सीखना एक विवेकपूर्ण कार्य है। बिना बुद्धि या विवेक के सीखने की प्रक्रिया संतोषजनक ढंग से नहीं चलती।
●अधिगम स्थानान्तरणीय है--
एक प्रकार की परिस्थिति में सीखे गए कौशलों अथवा समस्या के समाधानों का उपयोग व्यक्ति मिलती-जुलती दूसरी परिस्थितियों में कर लेता है, अर्थात अधिगम का स्थानान्तरण हो जाता है। इस प्रकार अधिगम स्थानान्तरणीय है।
●अधिगम उत्तेजना तथा अनुक्रिया के मध्य एक संबंध है--
किसी उत्तेजना के साथ सही अथवा वांछित अनुक्रिया का संबंध स्थापित करना ही अधिगम है।
●अधिगम ज्ञानात्मक, भावात्मक व मनोक्रियात्मक पक्ष से संबंधित है--
मनुष्य जो कुछ सीखता है उसका क्षेत्र ज्ञानात्मक, भावात्मक व मनोक्रियात्मक होता है क्योंकि वह ज्ञान का संग्रह करता है, भावनाओं को ग्रहण करता है तथा क्रियाओं को करने हेतु दक्षताओं को भी संकलित करता है।
अधिगम की विशेषताओं का विश्लेषण
अधिगम द्वारा व्यवहार में जो बदलाव आता है, वह स्थाई व अस्थाई के मध्य वाली स्थिति में होता है। इसे अपेक्षाकृत स्थाई का नाम दिया जा सकता है इसीलिए सिखाने के द्वारा बालक के व्यवहार में जो परिवर्तन होता है वह अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ होता है परन्तु उसके अवांछनीय लक्ष्य संगत या अनुपयोगी सिद्ध होने की दशा में पुनः अपेक्षित परिवर्तन लाने की भूमिका भी उचित अधिगम द्वारा निभाना सम्भव है।
अधिगम की प्रक्रिया एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया है। यह किसी व्यक्ति विशेष, जाति, प्रजाति तथा देश-प्रदेश की सम्पत्ति नहीं है। इस संसार में जितने भी जीवधारी हैं, वे अपने-अपने तरीके से अनुभवों के माध्यम से कुछ-न-कुछ सीखते रहते हैं। यह सोचना या दावा करना कि किसी जाति विशेष में जन्मा बालक ही अन्य से अच्छी तरह सीख सकता है, बिल्कुल निराधार और भ्रामक है। प्रत्येक प्राणी में सीखने की पर्याप्त क्षमता होती है। जो भी अन्तर इस बारे में देखने को मिलते हैं, उनमें प्राप्त अनुभवों तथा अवसरों का भी विशेष योगदान होता है।
अधिगम द्वारा एक प्रकार से व्यक्ति में बदलाव होता है। अधिगम की प्रक्रिया एवं उसका प्रतिफल अधिगमकर्ता के व्यवहार में बदलाव लाने से सम्बन्धित है। किसी भी प्रकार का सीखना क्यों न हो इसके द्वारा विद्यार्थी में परिवर्तन लाने की भूमिका सदैव ही निभाई जाती है। इस बात पर ध्यान देना नितान्त आवश्यक है कि व्यवहार में होने वाला बदलाव अपेक्षित दिशा व दशा में होना चाहिए।
अधिगम की प्रमुख विशेषता यह है कि यह जीवन पर्यन्त चलती है। इसकी शुरुआत बालक जन्म से पहले माँ के गर्भ में हो जाती है। जन्म के बाद वातावरण में प्राप्त अनुभवों के द्वारा इस कार्य में पर्याप्त तेजी आ जाती है और औपचारिक तथा अनौपचारिक, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष इन सभी अनुभवों के माध्यम से व्यक्ति जीवन पर्यन्त कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं।
अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत प्राप्त अनुभवों के नवीन समायोजन तथा पुनर्गठन का कार्य चलता ही रहता है। जो कुछ पूर्व अनुभवों के आधार पर सीखा हुआ होता है, उसमें नवीन व्यवस्था या समायोजन का कार्य चलते रहना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ने की विशेष आवश्यकता और विशेषता बन जाती है। सभी प्रकार के अधिगम के पीछे किसी न किसी प्रकार का उद्देश्य निहित होता है। हमारे सीखने की प्रक्रिया इसी उद्देश्य या लक्ष्य की प्राप्त की दिशा में आगे बढ़ती है। जैसे-जैसे हमें इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिलती रहती है हम अधिक उत्साह से सीखने के कार्य में लगे रहते हैं।
अधिगम की प्रक्रिया काफी हद तक क्रियाशीलता पर निर्भर होती है। वातावरण के साथ सक्रिय अनुक्रिया करना सीखने की एक आवश्यक शर्त है। जो बालक जितनी अच्छी तरह से पूर्ण सक्रिय होकर वातावरण के साथ अपेक्षित अनुक्रिया करेगा वह उतना ही सीखने के मार्ग पर आगे बढ़ सकेगा। वातावरण में उद्दीपकों की उपस्थिति चाहे कैसी भी सक्षम क्यों न हो सीखने वाले के द्वारा अगर सक्रिय होकर अनुक्रिया नहीं की जाएगी तो सीखने का कार्य आगे ही कैसे बढ़ेगा ? इस तरह सीखने की प्रक्रिया में यह विशेषता होती है कि यह सीखने वाले से वातावरण के साथ पर्याप्त क्रियाशीलता चाहती है , जिससे अनुभवों के जरिये सीखने की प्रक्रिया को श्रेष्ठ बनाया जा सके।
अधिगम में स्थानान्तरण की विशेषता भी पाई जाती है जो कुछ भी एक परिस्थिति में सीखा जाता है, उसका अर्जन किसी भी दूसरी परिस्थिति में सीखने के कार्य में बाधक या सहायक बनकर अवश्य ही आगे आ जाता है।
वृद्धि एवं विकास के सभी आयामों, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, सौन्दर्यात्मक तथा भाषण सम्बन्धी विकास आदि में अधिगम हर कदम पर सहायता पहुँचाता है।
अधिगम निश्चित लक्ष्य को पूरा करने में काफी सहायक हो सकता है। इसके द्वारा विद्यार्थी निर्धारित शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उचित प्रयत्न कर सकते हैं। इस प्रकार के उद्देश्य की पूर्ति द्वारा बालकों में अपेक्षित ज्ञान और समझ, सूझ-बूझ, कुशलताएँ, रुचि तथा दृष्टिकोण आदि का विकास करना सम्भव है।
सीखने के परिणामस्वरूप सीखने वाले को अपने तथा अपने वातावरण से उचित समायोजन के कार्य में पर्याप्त सहायता मिलती है। जो अधिगम एक प्रमुख विशेषता मानी जाती है। शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बालक के व्यक्तित्त्व का सर्वांगीण और सन्तुलित विकास करना होता है और सीखने की प्रक्रिया सभी तरह से इस कार्य में अच्छी तरह सहायता पहुँचाती है।
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