यदि किसी कार्य को उपयुक्त विधि द्वारा किया जाये तो उस कार्य में आशातीत सफलता मिलती है। इसी प्रकार जब कोई नया पाठ सीखना हो तो उसके लिये किसी उपयुक्त तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न विधियों का प्रयोग किया हैं। जिनमें से कुछ विधियों को मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर मनोवैज्ञानिक अधिक उपयोगी और प्रभावशाली मानते हैं। इन विधियों को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया गया है--
●परीक्षण करके सीखना
अन्वेषण कार्य भी एक प्रकार का अधिगम हैं। किसी बात की खोज करते समय भी कई बातें सीखने को मिलती हैं। बालक इस खोज को परीक्षण द्वारा कर सकते हैं। परीक्षण के बाद ही वह किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। इस प्रकार, वह जिन बातों को सीखते हैं, वे उसके ज्ञान का अभिन्न अंग बन जाते हैं। जैसे वे इस बात का परीक्षण कर सकते हैं कि गर्मी का ठोस और तरल पदार्थों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वे इस बात को पुस्तक में पढ़कर भी सीख सकते हैं। लेकिन यह परीक्षण करके सीखने के जितना महत्वपूर्ण नहीं होता है।
●सामूहिक विधियों द्वारा सीखना
किसी बात को सीखने में सामूहिक व व्यक्तिगत विधियाँ काफी सहायक हैं। इन दोनों में सामूहिक विधियों को अधिक उपयोगी और प्रभावशाली माना गया है। कोलसोनिक के अनुसार- "बालक को प्रेरणा प्रदान करने, उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उसके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने, उसके सामाजिक समायोजन को अनुप्राणित करने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए व्यक्तिगत विधियों की तुलना में सामूहिक विधियाँ कहीं अधिक प्रभावशाली हैं ।" सामूहिक विधियों को विभिन्न भागों में बांट सकते हैं जिनमें वाद-विवाद विधि, तर्क विधियाँ, विचार गोष्ठी विधि तथा बेसिक विधि प्रमुख हैं।
●करके सीखने की विधि
अधिगम प्रक्रिया में यह विधि काफी सराहनीय है। डॉ. मेस के अनुसार "स्मृति का स्थान मस्तिष्क में नहीं, वरन् शरीर के अवयवों में है। यही कारण है कि हम करके सीखते हैं ।" बालक जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी से जल्दी सीखते हैं। कारण यह है कि उसे करने में वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते हैं और योजना को पूर्ण करते हैं, फिर वे यह देखते हैं कि उनके प्रयास सफल हुए या नहीं। अगर नहीं, तो वे अपनी गलतियों को मालूम करके, उनमें सुधार करने का प्रयास करते हैं।
●निरीक्षण करके सीखना
इस सन्दर्भ में योकम एवं सिम्पसन ने कहा कि “निरीक्षण सूचना प्राप्त करने, आधार सामग्री एकत्र करने और वस्तुओं तथा घटनाओं के बारे में सही विचार प्राप्त करने का एक साधन है।" बालक जिस वस्तु का निरीक्षण करते हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीखते हैं क्योंकि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं या प्रयोग करते हैं या उसके बारे में बातचीत करते हैं इस तरह वे अपनी एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उनके स्मृति पटल पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है।
●मिश्रित विधि द्वारा सीखना
मिश्रित विधि के तहत दो प्रकार की विधियाँ आती हैं-- पूर्ण विधि और आंशिक विधि। पहली विधि में छात्रों को पहले पाठ्य-विषय को विभिन्न खण्डों में बाँट दिया जाता है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार इन दोनों विधियों को मिलाकर सीखने के लिए मिश्रित विधि का प्रयोग किया जाता है।
●सीखने की स्थिति का संगठन करने के विधि
अधिगत प्रक्रिया को आसान व सार्थक बनाने हेतु उसे संगठित व सुव्यवस्थित करना बहुत ही जरूरी होता है। यह तभी सम्भव हो सकता है, जब विद्यालय का निर्माण इस प्रकार किया जाय कि उसमें सीखने की सभी क्रियाएँ उपलब्ध हों और सीखने की सभी विधियों का प्रयोग किया जाए।
उपरोक्त समस्त विधियाँ व्यक्ति के मनोविज्ञान पर आधारित है। इन विधियों के प्रयोग से अधिगम तथा शिक्षण, दोनों ही प्रभावशाली हो जाते हैं।
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