अधिगम व्यक्ति के व्यवहार में निरन्तर सुधार है। सीखना प्रत्येक दिशा में और कई प्रकार से होता है। अधिगम के प्रकार को बताना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि इसका वर्गीकरण अनेक आधारों पर किया जा सकता है।
अधिगम के क्षेत्र के आधार पर अधिगम के प्रकार
अधिगम ज्ञानात्मक, भावात्मक व मनोक्रियात्मक क्षेत्रों से संबंधित रहता है। इसी आधार पर अधिगम के निम्न प्रकार देखे जा सकते हैं--
●संवेदी गति अधिगम (Sensory Motor Learning)-- इस अधिगम में कौशल अर्जन सम्बन्धी ज्ञान आता है और व्यक्ति द्वारा विभिन्न प्रकार की कुशलता अर्जित की जाती है। जैसे तैरना, साइकिल चलाना, टाइपिंग इत्यादि। इस प्रकार के अधिगम में तीन चरण होते हैं--
(i) ज्ञानात्मक (Cognitive Phase)-- इस चरण में व्यक्ति सीखे जाने वाले कौशल के बारे में सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त करता है। वह कौशल के अभ्यास करने की योजना बनाता है वह संभावित त्रुटियों के सन्दर्भ में विश्लेषण करता है।
(ii) दृढ़ीकरण (Fixation)-- इस चरण में सही व्यवहार प्रारूपों का तब तक अभ्यास किया जाता है जब तक कि गलत अनुक्रिया की संभावना शून्य नहीं हो जाती। यह स्थिति दृढ़ीकरण कहलाती है।
(iii) स्वचलित स्थिति (Autonomous Phase)-- इस चरण में किसी कौशल में कार्य करने की गति में वृद्धि करने की आवश्यकता होती है। यह चरण कौशल में पूर्ण निपुणता का द्योतक है। इस स्थिति में व्यक्ति निपुणता के कारण किसी कार्य को यन्त्रवत रूप में करता है।
●गामक अधिगम (Motor Learning)-- गामक अधिगम में बालक विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में शरीर के अंगों के संचालन एवं गति पर नियंत्रण करना सीखता है।
●बौद्धिक अधिगम (Intellectual Learning)-- इसके अन्तर्गत ज्ञानोपार्जन सम्बन्धी समस्त क्रियाएँ आती हैं। जो निम्नलिखित हैं--
(i) प्रत्यक्षीकरण अधिगम ( Perceptual Learning )-- इसमें बालक प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक स्तर पर ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से सम्पूर्ण परिस्थिति को देखकर व सुनकर प्रतिक्रिया करता व सीखता है।
(ii) प्रत्ययात्मक अधिगम (Conceptual Learning)-- इस प्रकार के सीखने में उसे तर्क, कल्पना और चिन्तन का सहारा लेना पड़ता है।
(iii) साहचर्यात्मक अधिगम (Associative Learning)-- प्रत्ययात्मक अधिगम इसी अधिगम की सहायता से सम्पन्न होता है। इस प्रकार का अधिगम स्मृति के अन्तर्गत आता है।
●रसानुभूतिपरक अधिगम (Appreciation Learning)-- इस प्रकार के सीखने में बालक में संवेगात्मक या भावुकतापूर्ण वर्णन या घटना से प्रभावित होकर मूल्यांकन करने अर्थात गुण-दोष विवेचना करने तथा सौन्दर्य बोध की क्षमता आ जाती है।
अधिगम प्रक्रिया के आधार पर अधिगम का प्रकार
●स्मृति अधिगम-- इस प्रकार के अधिगम में बालक अर्थपूर्ण तथ्यों को स्मृति में धारण करता है वह यंत्रवत तरीके से तथ्यों को याद करता है।
●चिन्तन स्तर अधिगम-- इस प्रकार के अधिगम में बालक अपने समक्ष प्रस्तुत की गई समस्या के समाधान के लिए प्रेरित होता है। वह समस्या समाधान हेतु सीखे गए तथ्यों , नियमों एवं सिद्धांतों का विश्लेषण करके नियम आदि बनाता है।
●समझ स्तर अधिगम-- इस अधिगम में बालक तथ्यों का बोध करता है व उन्हें समझने का प्रयास करता है विभिन्न तथ्यों में अंतर करता है उनका वर्गीकरण करता है आदि। बोध द्वारा प्राप्त अनुभव बालक की स्मृति का स्थायी अंग बन जाते हैं तथा वह समस्या समाधान में इन तथ्यों का प्रयोग कर पाता है।
●सरल अधिगम-- बालक जब स्वतः ही स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए कुछ सीख जाता है, तो उसे स्वतंत्र अधिगम कहते हैं।
●स्वायत्ता अधिगम-- इस प्रकार के अधिगम में बालक प्राकृतिक रूप में सीखता है। वह अपनी अंतर्दृष्टि के आधार पर समस्याओं का विश्लेषण कर उन्हें सुलझाता है।
●आकस्मिक अधिगम-- यह अधिगम अनायास ही घटित हो जाता है। इसमें अधिगम कर्ता न तो सचेत होता है और न ही उसके द्वारा अधिगम हेतु किसी प्रकार का प्रयास किया जाता है।
●कठिन अधिगम-- कठिन अधिगम में संगठित एवं जटिल प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं। इस अधिगम में कठिनता का स्तर बढ़ता ही जाता है। इसमें बालक को ज्ञान एवं क्रिया में सामन्जस्य करना होता है। जैसे संगीत में सुर, लय एवं ताल को सीखना तथा उसके बाद राग एवं अलाप आदि कठिन प्रक्रियाओं को सीखना।
●उद्देश्यपूर्ण अधिगम-- इस प्रकार के अधिगम में जानबूझ कर एवं सचेत प्रयास करने पड़ते हैं। इसमें उद्देश्यों का पहले ही निर्धारण कर लिया जाता है। यह एक संगठित अधिगम होता है।
कठिनाई स्तर के आधार पर अधिगम के प्रकार
गेने ने अपनी पुस्तक The Conditions of Learning में अधिगम के आठ भेद बताये हैं, जिसे वह निष्पादन परिवर्तन कहता है। गेने द्वारा बताये गये अधिगम के भेदों को कठिनता के स्तर के आधार पर एक क्रम में रखा जा सकता है। गेने के अनुसार अधिगम के ये आठ भेद निम्नलिखित हैं--
1- संकेतक अधिगम (Signal Learning)-- यह एक प्रकार का रूढ़िगत अनुकूलन है। इसमें एक संकेत विशेष से अधिगम हो जाता है। जैसे पावलॉव के प्रयोगानुसार घण्टी रूपी उद्दीपन से लार स्त्राव की अनुक्रिया का घटित होना।
2- उद्दीपन अनुक्रिया अधिगम (Stimulus Response Learning)-- इस प्रकार के अधिगम में बालक किसी विभेदकारी उद्दीपन के प्रति एक-एक सही अनुक्रिया सीख लेता है। थॉर्नडाइक के बिल्ली के प्रयोग द्वारा इसे समझा जा सकता है।
3- शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Association Learning)-- शाब्दिक संयोजन, शाब्दिक शृंखलाओं का अधिगम है।
4- श्रंखला अधिगम (Chain Learning)-- इस प्रकार के अधिगम में अलग-अलग उद्दीपन अनुक्रियाओं के मध्य एक संयोजन स्थापित किया जाता है तथा उनके मध्य एक सम्बन्ध स्थापित कर सम्बन्धों की एक श्रृंखला सी बन जाती है।
5- विभेदन अधिगम (Discrimination Learning)-- इस अधिगम के अन्तर्गत बालक भिन्न-भिन्न उद्दीपनों के प्रति अनुकूलन से भिन्न-भिन्न प्रकार की अनुक्रियाएँ करना सीख जाता है तथा उसमें एक जैसे उद्दीपनों में भेद करने की एवं उनके अनुसार अनुक्रिया करने की क्षमता आ जाती है।
6- सम्प्रत्यय अधिगम (Concept Learning)-- यह अधिगम विभेदन पर आधारित है। इस अधिगम में बालक में उद्दीपनों के प्रत्ययों के अनुसार अनुक्रिया करने की क्षमता आ जाती है।
7- नियम अधिगम (Rule Learning)-- इस अधिगम को महाप्रत्यय अधिगम भी कहते हैं क्योंकि नियम का शाब्दिक रूप में भी अभिव्यक्ति संभव है। इस अधिगम में बालकों द्वारा विचार का समायोजन किया जाता है।
8- समस्या समाधान अधिग्रम (Problem Solving Learning)-- इस अधिगम में बालक पूर्व में सीखे गए नियमों का संयोग खोजता है तथा उनका प्रयोग नवीन समस्यात्मक परिस्थितियों को हल करने के लिये करता है। यह अधिगम नियम अधिगम का प्राकृतिक विस्तार है।
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