अधिगम या सीखना एक बहुत ही सामान्य और आम प्रचलित प्रक्रिया है। जन्म के तुरन्त बाद से ही व्यक्ति सीखना प्रारम्भ कर देता है और फिर जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। सामान्य अर्थ में 'सीखना' व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है। (Learning refers to change in behaviour) परन्तु सभी तरह के व्यवहार में हुए परिवर्तन को सीखना या अधिगम नहीं कहा जा सकता।
अधिगम अंग्रेजी भाषा Learning शब्द का हिन्दी अनुवाद है। जिसका अर्थ होता है सीखना। Learning शब्द की उत्पत्ति जर्मन भाषा Lernen शब्द से हुए है। अधिगम एक व्यापक, सतत व जीवन पर्यन्त चलने वाली सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
अधिगम की परिभाषाएं
वुडवर्थ के अनुसार- “नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया, सीखने की प्रक्रिया है।"
गेट्स एवं अन्य के अनुसार- "अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाना ही अधिगम या सीखना है।"
मॉर्गन और गिलीलैण्ड के अनुसार- "अधिगम या सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में कुछ परिमार्जन हैं, जो कम से कम कुछ समय के लिए प्राणी द्वारा धारण किया जाता है।"
क्रो एवं क्रो के अनुसार, "सीखना, आदतों, ज्ञान एवं अभिवृत्तियों का अर्जन है।"
क्रानब्रेक के अनुसार, "सीखना अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में बदलाव द्वारा व्यक्त होता है।
स्किनर के विचारानुसार, "सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।"
प्रो. उदय पारीक के शब्दों में, "सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राणी किसी परिस्थिति में प्रतिक्रिया के कारण, नये प्रकार के व्यवहार को ग्रहण करता है जो किसी सीमा तक प्राणी के सामान्य व्यवहार को बाध्य एवं प्रभावित करता है।"
एन.एल. मन के अनुसार, “सीखने से तात्पर्य किसी व्यक्ति के व्यवहार को लगभग स्थायी रूप से रूपान्तरित करने की प्रक्रिया से है। यह रूपान्तरण उस व्यक्ति के कार्य करने एवं उसके कार्यों का परिणाम अथवा उसके अवलोकन का फल होता है।"
जी.डी. बोआज के अनुसार- "सीखना या अधिगम एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें, ज्ञान एवं दृष्टिकोण अर्जित करता है जो कि सामान्य जीवन की माँगों को पूरा करने के लिए आवश्यक है।
अधिगम की परिभाषाओं का यदि एक संयुक्त विश्लेषण किया जाए, तो सीखने का स्वरूप बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। इस तरह के विश्लेषण करने पर हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
(i) सीखना व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है ( Learning is the change in behaviour )-- प्रत्येक सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है। अगर परिस्थिति ऐसी है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन नहीं होता है, तो उसे हम सीखना नहीं कहेंगे। व्यवहार में परिवर्तन एक अच्छा एवं अनुकूली परिवर्तन भी हो सकता है या खराब में कुसमंजित परिवर्तन भी हो सकता है।
जैसे-बालक जैसे ही या जन्म लेता है, वैसे ही वह रोना प्रारंभ कर देता है। वास्तविक रूप से इसलिए रोना प्रारंभ करता है कि उसे बड़ी जोर से भूख लगी है, माँ उसे दूध पिलाती है और उसे पालने में छोड़ देती है।
इस तथ्य की व्याख्या इस रूप से की जा सकती है, भूख लगी बालक तड़पड़ाने लगा और उसने रोना प्रारंभ कर दिया। माँ की ममता जाग उठी और उसने बच्चे को दूध पिला दिया, बच्चा शान्त हो गया। जब भी उसे भूखा लगी, उसने रोना प्रारंभ कर दिया और दूध मिल गया। कालान्तर में उसकी यह आदत बन गई कि भूख लगने पर रोना चाहिए, क्योंकि रोए बिना दूध नहीं मिलता।
जो बालक कुछ बोल नहीं सकता , उसका रुदन ही उसकी वाणी है। इस प्रकार एक परिस्थिति में बालक की क्रिया सहज है परन्तु दूसरी परिस्थिति में उसकी क्रिया सीखना है। इसी को हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि सीखना व्यवहारगत बदलाव है।
(ii) व्यवहार में परिवर्तन अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप होता है (The change in behaviour occurs as a function of practice or experience)-- सीखने की प्रक्रिया में व्यवहार में जो परिवर्तन होता है, वह अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप होता है। जैसे- छोटे बालक के सामने जलता दीपक ले जाने पर वह दीपक की लौ को पकड़ने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसका हाथ जलने लगता है। वह हाथ को पीछे खींच लेता है। पुनः जब कभी उसके सामने दीपक लाया जाता है तो वह अपने पूर्व अनुभव के आधार पर लौ पकड़ने के लिए, हाथ नहीं बढ़ाता है, वरन् उससे दूर हो जाता है। इसी विचार को स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया करना कहते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अनुभव के आधार पर बालक के स्वाभाविक व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है।
(iii) व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन होता है (There is relatively permanent change in behaviour)-- ऊपर दी गयी परिभाषाओं में इस बात पर विशेष रूप से बल डाला गया है कि सीखने में व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन होता है।
अतः कहा जा सकता है कि सीखना या अधिगम एक व्यापक, सतत् एवं जीवन पर्यन्त चलने वाली महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म के उपरांत ही सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन भर कुछ न कुछ सीखता रहता है। धीरे-धीरे वह अपने को वातावरण से समायोजित करने का प्रयत्न करता है। समायोजन के दौरान वह अपने अनुभवों से अधिक लाभ उठाने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया को मनोविज्ञान में सीखना कहते हैं।
जिस व्यक्ति में सीखने की जितनी अधिक शक्ति होती है, उतना ही उसके जीवन का विकास होता है। सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति अनेक क्रियाएं एवं उपक्रियाएं करता है। अतः सीखना किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है।
इसे निम्न उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है । न्यूटन उद्यान में बैठा पढ़ रहा था। एक फल वृक्ष से टूट कर जमीन पर आ गिरा। इससे उसका ध्यान भंग हुआ। वह इस घटना के बारे में सोचने लगा। ऐसे यह घटना स्वाभाविक थी, लेकिन न्यूटन ने यह पता लगाने की कोशिश की कि फल टूटने के बाद जमीन पर ही क्यों गिरा? आसमान में क्यों नहीं गया? अपने इस प्रश्न के उत्तर में उसने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल की खोज की। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी नवीन तथ्य का ज्ञान होना भी अधिगम है किसी परिस्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया।
अधिगम किसी स्थिति के प्रति सीखी हुई प्रतिक्रिया है। जैसे- कोई व्यक्ति अपने हाथ में आम लिए चले जा रहा है, एक भूखे बन्दर की नजर उस पर पड़ती है, वह आम को हमारे हाथ से छीनकर ले जाता है, बन्दर की यह प्रतिक्रिया सीखी हुई नहीं, अपितु स्वाभाविक है। इसके विपरीत एक बालक जो आम खाना चाहता है, साथ ही भूखा भी है। वह उस व्यक्ति हाथ में आम देखता है। वह उस व्यक्ति आम छीनता नहीं है, वरन् हाथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं सीखी हुई है।
इस प्रकार अधिगम का आशय व्यक्ति द्वारा अपने अनुभवों में वृद्धि माना जा सकता है। पुस्तक पढ़ना अथवा प्रवचन सुनना आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से 'सीखना' नहीं माना जाता है। वर्तमान समय में प्रचलित अधिगम की समत विधियाँ आधुनिक मनोविज्ञान की देन हैं। उदाहरण की तौर पर क्रियात्मक कार्यक्रम, कार्य करके सीखना, वस्तु से प्रत्यक्ष-परिचय, योजना पद्धति, आत्मक्रियाशीलता और विद्यालय में वास्तविक परिस्थितियों से साक्षात्कार करके सीखना आदि।
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